लंबे मंथन के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अपनी इंडियन जस्टिस पार्टी (इंजपा) का भाजपा में विलय करके भाजपा के टिकट पर दिल्ली उत्तर-पश्चिम सीट से सांसद बने उदित राज यह अनुमान ही नहीं लगा पाए कि काफी पहले से ही पार्टी उनका टिकट काटने वाली है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता का कहना है कि वे पार्टी के साथ तालमेल ही नहीं बना पाए। कई नेता भाजपा की विचारधारा के साथ शुरू से ही आते हैं और कई बाद में आकर भी पार्टी को आत्मसात कर लेते हैं।
उदित राज ने ऐसा नहीं किया। गुप्ता का कहना है उनका या अन्य का मानना है कि अनुसूचित जाति-जनजाति कानून में प्रस्तावित बदलाव का विरोध करना, न्यायपालिका समेत उच्च पदों पर आरक्षण की मांग करना, उनका स्टिंग होना या दिल्ली की पहली सूची में नाम न होने पर बगावती तेवर अपनाना टिकट न दिए जाने का कारण नहीं थे। पार्टी की अपनी गणना में जीतने वाले उम्मीदवार को टिकट देना प्राथमिकता तो है ही संगठन को प्रमुखता देना भी एक मुख्य कारण हैं। माना जा रहा है कि अगर उदित राज बगावती तेवर न अपनाते तो पूर्वी दिल्ली के सांसद रहे महेश गिरी की तरह उनको भी भविष्य में पार्टी का साथ मिलता। पिछली बार भाजपा ने सात में से दो टिकट पार्टी में नए लोगों को दिया था। इस बार दोनों के टिकट काटकर दोनों सीटों पर क्रिकेटर गौतम गंभीर और गायक हंसराज हंस को टिकट दिया है।
भाजपा नेताओं को पता है कि इस बार 2014 जैसी भाजपा के पक्ष में हवा नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उससे पहले कल्याण सिंह ने भाजपा की छवि सवर्ण मतदाताओं से इतर बनाई था। माना जाता है कि पार्टी ने 2014 के चुनाव को जातिगत राजनीति को ध्वस्त करके जीता था। उसके बाद वैसा ही माहौल बनाए रखने के लिए भाजपा नेतृत्त्व सजग था और जैसा कि अनुसूचित जाति-जनजाति कानून में सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने बदलाव की कोशिश की तो सरकार ने अध्यादेश लाकर उसे विफल कर दिया। प्रधानमंत्री ने पूरे पांच साल में ऐसा एक भी अवसर ऐसा नहीं छोड़ा होगा जिससे उनका और उनके सरकार की छवि दलित समर्थक की न बनती होगी। दिल्ली में उदित राज हर साल आयोजन करके आपनी हैसियत का एहसास कराते रहे हैं।
दिल्ली भाजपा के आंतरिक सर्वे में सात में से ज्यादातर सीटों पर उम्मीदवार बदलने का सुझाव आया था। कहा जा रहा था कि अगर कांग्रेस और ‘आप’ में गठबंधन हो जाता तो ज्यादातर उम्मीदवार बदल जाते। इसी के चलते भाजपा का सभी सीटों पर सांसद होने के बावजूद सात में से चार उम्मीदवारों की सूची 21 अप्रैल को आई जब लगभग तय हो गया कि ‘आप’ और कांग्रेस में गठबंधन नहीं हो रहा है। जिन तीन सीटों के टिकट 22 अप्रैल को घोषित किए गए उसमें नई दिल्ली सीट से मीनाक्षी लेखी का नाम शामिल था, जिनके बारे में कहा जा रहा था कि उनके बजाए इसी सीट के रहने वाले गौतम गंभीर को टिकट दिया जाएगा और सात में से एक सीट महिला को देने की परंपरा के चलते उत्तर-पश्चिम सीट से पूर्व सांसद अनिता आर्य या मीरा कांवरिया को उतारा जाएगा।
कहा तो यह भी जा रहा है कि प्रधानमंत्री के पक्ष में अदालती लड़ाई लड़ने से मीनाक्षी लेखी का टिकट बचा। श्रीश्री रविशंकर के शिष्य महेश गिरी का भी टिकट कटा लेकिन न तो उन्होंने इस पर कोई बयान दिया और न ही बगावत की। दिल्ली में पार्टी उदित राज के चलते असहज स्थिति में पहुंची। उदित राज कांग्रेस के पक्ष में और भाजपा के खिलाफ प्रचार में लगे हुए हैं। पिछले चुनाव में भाजपा ने सभी सातों सीटों पर एक-एक लाख से ज्यादा अंतर से जीत दर्ज की थी। ‘आप’ दूसरे नंबर पर थी, इस बार इसमें कुछ बदलाव हो सकता है।