कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) के दिल्ली के सातों सीटों पर उम्मीदवार उतारने के साथ ही यह तय हो गया कि 2009 के लोकसभा चुनाव की तरह ही इस बार भी दिल्ली की सातों सीटों पर भाजपा के साथ तिकोना मुकाबला होगा। चुनाव प्रचार में तेजी आने के बाद केवल यह तय होना है कि किस सीट पर कौन सा दल या उम्मीदवार वोटकटवा साबित होगा। एक तरफ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल काफी पहले अपने उम्मीदवार घोषित कर कांग्रेस पर गठबंधन का दबाव डाल रहे थे, वहीं दूसरी ओर अपने भाषणों में कांग्रेस को वोटकटवा भी साबित करने में लगे हुए थे। गठबंधन की कवायद ने भाजपा के टिकटों की घोषणा को भी रोक दिया था। 23 अप्रैल को नामांकन पत्र भरे जाने के दो दिन पहले भाजपा ने और अंतिम दिन कांग्रेस ने उम्मीदवार घोषित किए। दोनों दलों में कुछ सीटों पर उम्मीदवारी पर नाराजगी होते हुए भी 26 अप्रैल को नाम वापसी आते-आते दिल्ली का राजनीतिक माहौल बदल गया और आक्रामक प्रचार कर रही ‘आप’ उम्मीदवारों के नामांकन पत्र रद्द करवाने में अपनी ताकत लगाने लगी। 12 जुलाई को दिल्ली के करीब 1 करोड़ 43 लाख मतदाता 164 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे। नतीजे 23 मई को आएंगे।

कांग्रेस का ओर से दिल्ली उत्तर-पूर्व सीट से पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित समेत कई उम्मीदवारों ने ‘आप’ को बैकफुट पर ला दिया है। अब ‘आप’ नेता अपनी दिल्ली सरकार के कामकाज का ज्यादा बखान नहीं कर पा रहे हैं और न ही शीला के 15 सालों के कामों को नकार पा रहे हैं। अभी दिल्ली की सभी सातों सीटों पर भाजपा के सांसद हैं। दो को हटाकर नई दिल्ली से फिर मीनाक्षी लेखी, दक्षिणी दिल्ली से रमेश बिधूड़ी, पश्चिमी दिल्ली से प्रवेश वर्मा, दिल्ली उत्तर-पूर्व से मनोज तिवारी और चांदनी चौक से केंद्रीय मंत्री डॉ हर्षवर्धन उम्मीदवार हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 46 फीसद से ज्यादा वोट लाकर ‘आप’ को पराजित किया था। कांग्रेस के सभी सातों पूर्व सांसद तीसरे नंबर पर रहे।

कांग्रेस के पिछले चुनाव में दिल्ली उत्तर-पूर्व से खड़े और 2009 में सांसद रहे जयप्रकाश अग्रवाल को चांदनी चौक से उम्मीदवार बनाया है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली पूर्वी दिल्ली से, अजय माकन नई दिल्ली से, महाबल मिश्र पश्चिमी दिल्ली से, राजेश लिलोठिया दिल्ली उत्तर- पश्चिम से और बॉक्सर विजेंदर सिंह दक्षिणी दिल्ली से उम्मीदवार बनाए गए हैं। ‘आप’ ने पूर्वी दिल्ली से आतिशी, पश्चिमी दिल्ली से बलवीर सिंह जाखड़, नई दिल्ली से बृजेश गोयल, दक्षिणी दिल्ली से राघव चढ्ढा, दिल्ली उत्तर-पश्चिम से गुगन सिंह, दिल्ली उत्तर-पूर्व से दिलीप पांडेय और चांदनी चौक से पंकज गुप्ता को उम्मीदवार बनाया है।
कांग्रेस को मुख्य रूप से दलित, अल्पसंख्यक, कमजोर वर्ग, पूर्वांचल के प्रवासी और दिल्ली देहात के लोगों का बड़ा समर्थन था। अब इन सभी वर्ग में कांग्रेस से ज्यादा पैठ ‘आप’ की है। माना जाता है कि अल्पसंख्यक उसी दल के साथ जाएगा जो भाजपा को हराता दिखे। कांग्रेस और ‘आप’ में गठबंधन न होने पर यह सतही तौर पर गैर भाजपा मतों के विभाजन से भाजपा की राह आसान दिख रही है, ऐसा कहना अभी जल्दबाजी होगी। अभी दलों की बड़ी सभाएं नहीं शुरू हुई हैं। गर्मी ज्यादा होने से प्रचार प्रभावित हो रहा है। अमूमन लोक सभा चुनाव गर्मी में होते हैं, इस बार गर्मी ज्यादा है। अगले हफ्ते दिल्ली की चुनावी तस्वीर साफ होगी। वैसे तीनों प्रमुख दलों के उम्मीदवार चुनाव प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

टिकट को लेकर खूब हुई माथापच्ची
भाजपा ने आरक्षित दिल्ली उत्तर-पश्चिम से उदित राज के बदले पंजाबी गायक हंसराज हंस और पूर्वी दिल्ली सीट से महेश गिरि के बजाए क्रिकेटर गौतम गंभीर को उतारा है। ‘आप’ ने अपने सभी और कांग्रेस ने तीन उम्मीदवार बदले हैं। ‘आप’ के पहले घोषित उम्मीदवारों में से एक बदला गया है, वहीं कांग्रेस से पहले दिल्ली उत्तर-पश्चिम के उम्मीदवार राजकुमार चौहान का टिकट बदलने पर सार्वजनिक रूप से नाराजगी जताई थी। पहले घोषित करके पूर्व सांसद रमेश कुमार का टिकट 1984 के दंगों के आरोप में उनके भाई सज्जन कुमार की गिरफ्तारी के चलते बदला गया और महाबल मिश्र के बदले पहले पहलवान सुशील कुमार को पश्चिम दिल्ली से टिकट देने पर विचार किया जा रहा था। महाबल को टिकट मिल गया और वे पूरी ताकत से चुनाव मैदान में जुटे हुए हैं।

दिल्ली में दिलचस्प रहा है मुकाबला
इस बार और 2009 के चुनाव से पहले कांग्रेस और भाजपा में सीधा मुकाबला होते रहने पर देश की हवा का दिल्ली पर असर होता है। 1977 में सातों साटें जनता पार्टी को मिली तो 1980 में नई दिल्ली सीट पर चुनाव लड़ रहे अटल बिहारी वाजपेयी के अलावा छह सीटें कांग्रेस ने जीती। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में सभी सीटें कांग्रेस ने जीती, जबकि 1989 में सातों सीटें कांग्रेस हारी। 1991 और 1996 में भाजपा ने पांच-पांच, 1998 में छह और 1999 में सातों सीटें भाजपा ने जीती। 2004 में कांग्रेस को छह और 2009 में सातों सीटें कांग्रेस ने जीती। 2014 में देश में हवा बदली को सभी सीटें वापस भाजपा ने जीती। इस बार कोई हवा अभी तक दिख नहीं रही है। 2015 के विधानसभा चुनाव में ‘आप’ को 70 में 67 सीट और 54 फीसद वोट मिले। उसके बाद ‘आप’ हर चुनाव में कमजोर होती गई। राजौरी गार्डन विधानसभा उप चुनाव में उसके उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई। 2017 के निगम चुनाव में अगर बगावत न होती तो कांग्रेस दूसरे नंबर पर होती जैसा राजौरी गार्डन विधानसभा उप चुनाव और 2016 में निगमों के उपचुनाव में हुआ था।