Lok Sabha Election 2019: तेलंगाना के कुछ किसानों ने वाराणसी से पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने का फैसला किया था। इनमें से अधिकतर किसानों का नामांकन रद्द हो गया। हालांकि, हल्दी उगाने वाले सुनापू इश्तारी उम्मीदवार बनने में कामयाब रहे। इसके बावजूद 74 साल के सुनापू अब तेलंगाना के निजामाबाद लौट चुके हैं और बेहद ‘उदास’ हैं। उन्होंने बताया, ‘भाषा की समस्या के अलावा एक दिक्कत यह भी है कि लोग मिलनसार नहीं थे।’ सुनापू ने आगे कहा, ‘निजामाबाद के हल्दी किसान नरेंद्र मोदी का विरोध नहीं करना चाहते। हम तो हल्दी बोर्ड बनाने की मांग की ओर ध्यान खींचना चाहते थे। हम चाहते थे कि मोदी इस बारे में जानें। लेकिन लोगों ने इसे दूसरे तरीके से ले लिया।’
बता दें कि निजामाबाद से 54 किसान वाराणसी में चुनाव लड़ने पहुंचे थे। इनमें से 25 ही नामांकन कर सके। सुनापू इनमें इकलौते थे, जिनका नामांकन स्वीकार कर लिया गया। वहीं, तमिलनाडु से भी मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने की हसरत लिए 4 किसान वाराणसी पहुंचे थे, लेकिन वे भी बिना नामांकन दाखिल किए लौट आए। सुनापू निरक्षर हैं और येरगातला गांव के रहने वाले हैं। उनके परिवार के पास 5 एकड़ जमीन है, जो हल्दी और धान की खेती करता है। सुनापू ने बताया कि उन्हें वाराणसी में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
सुनापू ने कहा, ‘स्थानीय चुनाव अधिकारियों ने हमें सहयोग नहीं दिया। या तो वे देर से आए या उन्होंने हमारा नामांकन स्वीकार करने में देरी की और बाद में कई सवाल भी उठाए। बैंकों में अधिकारियों ने हमारे द्वारा जमा की गई (गारंटी) रकम की रसीद देने में देरी की। पुलिस और इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारियों ने हर जगह हमारा पीछा किया। उन्होंने हमारे कमरों तक की तलाशी ली और हमें धमकाया। स्थानीय बीजेपी नेताओं ने भी हमें मोदी के खिलाफ चुनाव न लड़ने के लिए धमकाया।’
वहीं, यूपी के अडिशनल चीफ इलेक्टोरल ऑफिसर ब्रह्मा देव राम तिवारी ने कहा कि किसान नामांकन पत्र दाखिल करने में इसलिए असफल रहे क्योंकि उन्हें इसके तकनीकी पहलुओं की जानकारी नहीं थी। अधिकारी ने बताया, ‘किसी को नामांकन दाखिल करने से नहीं रोका गया। प्रशासन ने वही सब किया जिसकी तकनीकी तौर पर आवश्यकता थी।’ तिवारी ने यह भी कहा कि उन्होंने वाराणसी संसदीय क्षेत्र के रिटर्निंग अफसर से इस बारे में रिपोर्ट मांगी और इसे 7 मई को चुनाव आयोग को फॉरवर्ड भी कर दिया।