दिल्ली पर शासन कर रही आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस में गठबंधन न होने का लाभ तो ज्यादातर सीटों पर भाजपा को हो रहा है, लेकिन दक्षिणी दिल्ली और पश्चिमी दिल्ली सीट पर गठबंधन से नुकसान भी हो रहा है। दिल्ली की 15 साल मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित दिल्ली उत्तर पूर्व सीट पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी को टक्कर देती दिख रही हैं। वहीं, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल का चांदनी चौक सीट पर भाजपा उम्मीदवार डॉ हर्षवर्धन से अच्छा मुकाबला दिख रहा है। भाजपा ने उम्मीदवार न बदल कर नई दिल्ली सीट फंसा दी है। उस सीट पर भी मुकाबला भाजपा और कांग्रेस का होता दिख रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह समेत तमाम नेता और फिल्म अभिनेता दिल्ली में भाजपा, कांग्रेस और ‘आप’ के समर्थन में प्रचार कर चुके हैं। 12 मई को दिल्ली के करीब 1 करोड़ 43 लाख मतदाता 164 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे। नतीजे 23 मई को आएंगे।
अभी दिल्ली की सभी सातों सीटों पर भाजपा के सांसद हैं। बावजूद पिछली बार की तरह भाजपा ने पार्टी में नए आए दो लोगों को दो सांसदों के टिकट काट कर उम्मीदवार बनाए। आरक्षित दिल्ली उत्तर पश्चिम सीट से उदित राज के बदले पंजाबी गायक हंसराज हंस और पूर्वी दिल्ली सीट से महेश गिरी के बजाए क्रिकेटर गौतम गंभीर उम्मीदवार बनाए गए हैं। दोनों ही उम्मीदवार नामांकन भरे जाने के आखिर में उम्मीदवार बनने के बावजूद मुकाबले में आ गए और जो सीटें भाजपा बेहतर मान रही है, उसमें यह दोनों सीटें शामिल मानी जा रही हैं। गौतम गंभीर ने तो ‘आप’ उम्मीदवार आतिशी को मजबूर कर दिया कि वे फिल्म अभिनेताओं को चुनाव प्रचार में लाएं। इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार अरविंदर सिंह लवली भी किसी तरह से कमजोर नहीं दिख रहे हैं। पूर्वी दिल्ली और पश्चिमी दिल्ली सीट उन पांच सीटों में शामिल है, जहां ‘आप’ उम्मीदवारों को तीसरे नंबर पर माना जाने लगा है।
पिछले चुनाव में दिल्ली की सभी सातों सीटों पर भाजपा एक लाख से करीब पौने तीन लाख के अंतर से सभी सातों सीटें जीती थी। उस चुनाव में भाजपा को 46 फीसद से ज्यादा वोट आए थे। 32 फीसद वोट लेकर ‘आप’ उम्मीदवार सभी साटों पर दूसरे नंबर पर आए थे। 2009 के चुनाव में सभी सातों सीटें जीतने वाली कांग्रेस को महज 15 फीसद वोट मिले। भाजपा को उससे पहले के विधानसभा चुनाव, नगर निगम या बाद के विधानसभा चुनाव में उतने वोट कभी नहीं मिले। यही हाल ‘आप’ का हुआ। उसे 2015 के विधानसभा चुनाव में 54 फीसद वोट मिले, लेकिन निगम चुनाव में उसके वोट 26 फीसद रह गए।
भाजपा को हराने के लिए ‘आप’ और कांग्रेस ने गठबंधन का प्रयास किया। प्रयास सफल नहीं रहा। आने वाले दिनों में यह और साफ होगा कि वास्तव में दोनों दल गठबंधन करना भी चाहते थे या दोनों एक दूसरे को फंसाए रखना चाहते थे। ‘आप’ ने तो काफी पहले से अपने उम्मीदवार घोषित कर रखे थे, कांग्रेस और भाजपा उम्मीदवार नामांकन भरे जाने के अंतिम दिनों में घोषित हुए। ‘आप’ और कांग्रेस के अलग-अलग चुनाव लड़ने का लाभ भाजपा को ज्यादा साटों पर होता दिख रहा है, लेकिन दक्षिणी और पश्चिमी दिल्ली में भाजपा को नुकसान होता दिख रहा है। दक्षिणी दिल्ली से भाजपा उम्मीदवार रमेश बिधूड़ी के सामने अगर ‘आप’ के राघव चढ्ढा ही उम्मीदवार होते तो चुनाव आसानी से स्थानीय बनाम बाहरी बन जाता और इसका लाभ बिधूड़ी को मिलता। कांग्रेस ने विजेंद्र सिंह को उम्मीदवार बना दिया। इससे स्थानीय वोट भाजपा और कांग्रेस में बंट रहे हैं।
पूर्वांचल के प्रवासियों का एक धड़ा बिधूड़ी के खिलाफ सक्रिय है। इसके चलते उनका चुनाव कठिन बन गया है। यही हाल पश्चिमी दिल्ली का है। भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा का बिरादरी से ही ‘आप’ ने बलवीर सिंह जाखड़ को उम्मीदवार बना कर कांग्रेस उम्मीदवार महाबल को मुकाबले में शामिल कर दिया है। इसी के चलते पांचवी सीट पश्चिमी दिल्ली ऐसी दिख रही है जहां ‘आप’ उम्मीदवार कांग्रेस से पीछे रह सकता है। नई दिल्ली से फिर से मीनाक्षी लेखी का टिकट कटते-कटते मिल गया। पार्टी में ही उनके विरोध की खबरों ने उनकी दावेदारी कमजोर कर दी है।