संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की अध्यक्ष सोनिया गांधी इस बार उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट से ही लोकसभा चुनाव लड़ेंगीं। 15 सदस्यों वाली कांग्रेस की पहली सूची में उनके नाम ने कई लोगों को चौंकाया। दरअसल, कहा जा रहा था कि वह 2019 में चुनावी मैदान में नहीं उतरेंगी और राजनीति से संन्यास ले लेंगी। पर उन्होंने खास वजह से यह योजना टाल दी।
न्यूज 18 पर प्रकाशित वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई के लेख में कहा गया कि सोनिया ने लगभग एक साल से कांग्रेसी नेताओं से मिलना बंद कर दिया था। वह उनसे राहुल से मिलने के लिए कह देती थीं। बताया गया कि जम्मू-कश्मीर में 14 फरवरी, 2019 को हुए पुलवामा आतंकी हमले और एयर स्ट्राइक के बाद उन्होंने राजनीति से संन्यास लेने की इच्छा ठंडे बस्ते में डाल दी।
वैसे राजनीति को अलविदा कहने का मन उन्होंने 2016 में ही बना लिया था। वह तब 70 बरस की हो गई थीं, मगर पार्टी के दबाव और हालात (राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने में दोरी और गुजरात चुनाव जारी होना) के चलते वह वैसा न कर पाईं। उनके ताजा फैसले को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक जानकार मान रहे हैं कि वह 2019 के बाद ‘किंगमेकर’ की भूमिका में नजर आ सकती हैं।
दरअसल, शुरुआत में कयास लगाए जा रहे थे कि सोनिया चुनाव नहीं लड़ेंगी। पर मुख्य विपक्षी दल के साथ समस्या यह है कि उसके पास बड़े चेहरे की कमी है। साथ ही कांग्रेस आम आदमी को खुद से जोड़ने में भी लंबे समय से नाकामयाब रही है। चूंकि, गांधी परिवार के लिए राजनीति छोड़ना मुश्किल रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि सोनिया इस चुनाव में अहम किरदार निभा सकती हैं।
यूं चाहकर भी राजनीति से दूर न रह पाया गांधी परिवारः 1950 में इंदिरा पति फिरोज गांधी के निधन के बाद पिता नेहरू का घर छोड़ विदेश जाना चाहती थीं। पर परिस्थितिवश उन्हें नौ साल बाद सक्रिय राजनीति में आना पड़ा। नेहरू के गुजरने और अपनी मृत्यु तक वह राजनीति में रहीं। फिर बेटे राजीव राजनीति में आए, मगर पत्नी सोनिया नहीं चाहती थीं कि वह राजनीति करें। राजीव के निधन के बाद 1998 में नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी ने कांग्रेस को कमजोर किया। उसके कुछ वक्त बाद सोनिया ने एंट्री ली और कांग्रेस को संभाला। उन्होंने और सहयोगियों के दौर को अच्छे से समझा और कांग्रेस को नया जीवनदान दिया।