राजस्थान का चुनाव संपन्न हो गया है, 199 सीटों पर जनता ने अपने वोटिंग अधिकार का जोरदार अंदाज में इस्तेमाल किया है। इतने लोगों ने बढ़-चढ़कर अपने मताधिकार का प्रयोग किया है कि अभी तक 73.65 फीसदी वोटिंग हो चुकी है। शाम 6 बजे के बाद से वोटिंग नहीं हुई है, लेकिन इलेक्शन कमिशन द्वारा क्योंकि अभी तक आधिकारिक आंकड़ा जारी नहीं किया गया है, ऐसे में वोट प्रतिशत का आंकड़ा और ज्यादा बढ़ने की पूरी गुंजाइश है।
किन जिलों में हुई बंपर वोटिंग?
राजस्थान के इस बार पांच जिले ऐसे रहे हैं जहां पर 80 फीसदी से ज्यादा वोटिंग दर्ज की गई है, वहीं 9 जिले ऐसे सामने आए हैं जहां पर 75 प्रतिशत से ज्यादा वोटिंग हो गई। कई ऐसे भी जिले रहे जहां 70 फीसदी के आंकड़े को जनता ने पार किया। अब ये ट्रेंड ही साफ संकेत दे रहा है कि जनता ने अपने मताधिकार का पूरा इस्तेमाल किया है, लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर इस बंपर वोटिंग से फायदा किसको होने वाला है- बीजेपी या कांग्रेस? आखिर रिवाज बदलने वाला है या रिवाज कायम रहने वाला है?
बंपर वोट पड़ने वाले जिलों का समीकरण
अब राजस्थान का पिछले 20 साल का चुनावी ट्रैक रिकॉर्ड डीकोड किया जाएगा, लेकिन उससे पहले उन जिलों के बारे में जानना जरूरी हो जाता है जहां पर इस बार 80 फीसदी से भी ज्यादा वोटिंग हो गई है। इस लिस्ट में बांसवाड़ा, हनुमानगढ़, जैसलमेर, झालावर, प्रतापगढ़ शामिल हैं। बांसवाड़ा जिले में कुल पांच सीटें आती हैं जो एससी आरक्षित हैं। ये कांग्रेस का एक मजबूत गढ़ माना जाता है और यहां की अधिकांश सीटों पर कांग्रेस ने ही जीत दर्ज की है। अब इस बार ये ज्यादा वोटिंग समर्थन का संकेत है या बदलाव की हवा, ये तीन दिसंबर को साफ होगा।
इसी तरह झालावाड़ जिले की बात करें तो वहां से चार सीटें निकलती हैं- झालरापाटन, डग, खानपुर और मनोहर। यहां भी झालरापाटन तो बीजेपी की सबसे कद्दावर नेता और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की सीट है। यहां का पॉलिटिकल इतिहास बताता है कि जाति-धर्म से ऊपर उठकर भी जनता वोट करती है। इस जिले की बंपर वोटिंग ने भी दोनों कांग्रेस और बीजेपी को एक उम्मीद दी है।
वोटिंग पैटर्न पिछले 20 साल का डीकोड
अब बात उस 20 साल के चुनावी ट्रेंड की जो एक संकेत देने का काम जरूर करती है। पिछले 20 सालों का चुनावी पैटर्न बताता है कि जब-जब राजस्थान में ज्यादा वोटिंग हुई है, इसका सीधा फायदा बीजेपी को पहुंचा है, वहीं जब-जब वोटिंग में कुछ कमी रही है, राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी है। पिछले चार चुनावों के अगर वोटिंग पैटर्न को डीकोड किया जाए तो ये स्थिति शीशे की तरह साफ हो जाती है।
पिछले विधानसभा चुनाव में कुल वोटिंग 74.06 फीसदी रही थी। लेकिन बड़ी बात ये रही कि तब 2013 की तुलना में काफी कम मत प्रतिशत दर्ज किया गया। असल में 2013 के चुनाव में वोटिंग 75.04% रही थी, ऐसे में 2018 में कुछ कमी उसमें देखने को मिली। उसी कमी ने राज्य में कांग्रेस की सरकार लाने का काम कर दिया। इस तरह अगर 2013 के चुनाव पर नजर डालें तो उसमें बीजेपी की एक भयंकर लहर देखने को मिली थी। वसुंधरा की अगुवाई में 163 सीटें जीती गईं, वहीं कांग्रेस महज 21 सीटों पर सिमट गई।
कम वोटिंग- कांग्रेस रिटर्न, ज्यादा वोटिंग- बीजेपी की सरकार!
अब उस चुनाव का वोटिंग प्रतिशत 75.04% रहा जो 2008 के विधानसभा चुनाव से काफी ज्यादा था। 2008 के चुनाव में 66.25% लोगों ने ही अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था, ऐसे में 2013 में सीधे-सीधे 10 फीसदी के करीब एक जंप आया और प्रचंड बहुमत के साथ राज्य में बीजेपी की सरकार बनी। थोड़ा और पीछे चलें तो 2008 के राजस्थान चुनाव में कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। उस चुनाव में कांग्रेस को फिर कम वोटिंग का फायदा मिला था।
असल में 2003 के चुनाव में 67.18% वोट पड़े थे जो 2008 में आते-आते 66.25% पर पहुंच गए, यानी कि फिर जनता ने कुछ कम वोटिंग की। नतीजा ये रहा कि राजस्थान में अशोक गहलोत सीएम बने और कांग्रेस सत्ता में वापस आ गई। वहीं बात अगर 2003 की करें तो उस समय फिर 1998 की तुलना में ज्यादा वोटिंग होती दिख गई थी और तब राज्य में बीजेपी ने वापसी की थी। यानी कि पिछले 20 सालों का ये वोटिंग पैटर्न बता रहा है कि कम वोट पड़ने का मतलब कांग्रेस सत्ता में आ सकती है तो वहीं ज्यादा मत का पड़ना बीजेपी की संभावनों को बढ़ा सकता है। वैसे इस बार के चुनाव में 2018 की तुलना में कुछ ज्यादा वोट पड़े हैं, तो किसकी सरकार बनने जा रही है, इसकी अटकलें अभी से लगने लगी हैं।