राजस्थान चुनाव में कांग्रेस की अप्रत्याशित हार हुई है। पार्टी ने कोशिश पूरी की कि इस बार रिवाज को बदला जाए, इतिहास रचते हुए राज को कायम रखा जाए। लेकिन जनता ने अपना जनादेश बता दिया है, पांच साल में एक बार फिर सत्ता परिवर्तन देखने को मिल गया है। इस बार राजस्थान की जनता ने बीजेपी को पूर्ण बहुमत देने का काम किया है। बीजेपी की जीत के कई कारण माने जा रहे हैं, लेकिन कांग्रेस की जो ये हार हुई है, इसके भी बड़े मायने हैं। माना जा रहा है कि कई ऐसे फैक्टर रहे जो कांग्रेस के लिए असल में चुनावी मौसम में सबसे बड़े पनौती साबित हो गए-
गहलोत-पायलट की तकरार
राजस्थान में कांग्रेस ने साल 2018 में जब सरकार बनाई थी, सीएम कुर्सी को लेकर काफी असमंजस की स्थिति देखने को मिली। तब माना गया कि राहुल गांधी, सचिन पायलट को राज्य की कमान सौंपना चाहते थे, लेकिन अनुभव को देखते हुए हाईकमान ने अशोक गहलोत को आगे करना ठीक समझा। उस समय चर्चा ये भी रही कि ढाई-ढाई साल सीएम कार्यकाल रखा जा सकता है। अब क्योंकि ये वादा कभी पूरा ही नहीं हुआ, ऐसे में राजस्थान में समय-समय पर अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच तकरार देखने को मिली।
2020 में तो ये तकरार तब और ज्यादा बढ़ गई जब पायलट ने बगावती तेवर दिखाते हुए कई विधायकों को अपने साथ कर लिया। उस समय कई तरह के कयास लगे, माना गया कि पायलट बीजेपी के साथ भी जा सकते हैं। ये वो वक्त था जब अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को लेकर नकारा वाला बयान दे डाला था। अब गांधी परिवार ने दोनों नेताओं से बात कर वो मुद्दा तो सुलझा लिया, लेकिन पायलट को अपना डिप्टी सीएम का पद भी गंवाना पड़ गया। इसके बाद से तो समय-समय पर इन दोनों ही नेताओं के बीच में तल्खी का दौर दिखा।
इसी साल चुनावी मौसम में सचिन पायलट ने ही एक बार फिर अपनी पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोला और पेपर लीक विवाद को लेकर राज्य में आंदोलन छेड़ दिया। यानी कि गहलोत और पायलट के बीच लगातार चली तकरार से जनता त्रस्त हो चुकी थी। कांग्रेस के अंदर भी इन दोनों नेताओं की वजह से बड़े स्तर पर गुटबाजी देखने को मिली। पूरी पार्टी दो गुटों में बंटी रही- गहलोत गुट और पायलट गुट। अब चुनावी नतीजों में उस तल्खी का असर साफ दिखाई दे रहा है।
कन्हैयालाल हत्याकांड और कानून व्यवस्था
राजस्थान की कानून व्यवस्था पिछले पांच सालों में कई मौकों पर गहलोत सरकार को विपक्ष के निशाने पर लाई थी। आंकड़ों में तो इस बात की तस्दीक हुई ही, बीजेपी ने भी लगातार जिस तरह से इस मुद्दे को उठाया, जनता के बीच में नेरेटिव सेट हो चुका था। ये मान लिया गया था कि कांग्रेस राज में महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ा है, कानून व्यवस्था संभालने में ये सरकार विफल हो गई है। अब इस नेरेटिव से कांग्रेस लड़ पाती, उससे पहले कन्हैया लाल की हत्या ने पार्टी को पूरी तरह बैकफुट पर कर दिया।
उदयपुर में हुई कन्हैया लाल की हत्या ने बीजेपी को कानून व्यवस्था का मुद्दा उठाने का मौका तो दिया ही, इसके साथ-साथ बड़े स्तर पर ध्रुवीकरण भी किया गया। संदेश देने का पूरा प्रयास हुआ कि कांग्रेस ने तुष्टीकरण की राजनीति की वजह से आरोपियों के खिलाफ सख्ती नहीं दिखाई। अब तो खुद कांग्रेस भी मान रही है कि इस मुद्दे ने पार्टी की हार में जिम्मेदारी निभाई है, यानी कि ये फैक्टर पार्टी के लिए पनौती साबित हुआ है।
भ्रष्टाचार और पेपर लीक ने ले डूबा
कांग्रेस के राज में बीजेपी का एक सबसे बड़ा आरोप ये रहा कि भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच चुका था। अब कांग्रेस चाहती तो वो इस नेरेटिव से पार पाने की कोशिश करती। लोकिन किसी भी नेता के पास कोई काउंटर नजर नहीं आया, उल्टा खुद अशोक गहलोत लाल डायरी विवाद में बुरी तरह फंस चुके थे। इसके ऊपर राज्य में इतने पेपर लीक हुए कि बीजेपी ने तो इसे मुद्दे बनाया ही, उनकी पार्टी के ही सचिन पायलट ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। यानी कि युवाओं के बीच में संदेश जा चुका था- गहलोत सरकार को एक एग्जाम भी बिना लीक के नहीं करवा सकती। ये परसेप्शन ही पार्टी के लिए चुनावी मौसम में एक बड़ा पनौती साबित हो गया।
सबसे बड़े नेता की ही बेलगाम जुबान!
राजस्थान के चुनाव में वैसे तो कई नेताओं के विवादित बयान देखने को मिले। कांग्रेस से लेकर बीजेपी तक, हर पार्टी के नेता ने समय-समय पर मर्यादा लांगने का काम किया। लेकिन कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी ने कुछ ऐसा बोल दिया जिसका नुकसान पार्टी को तुरंत ही उठाना पड़ गया। एक रैली में राहुल गांधी ने पीएम मोदी को पनौती बता दिया। ये भी नहीं कि उन्होंने इशारों में ऐसा कुछ कहा हो, उन्होंने सीधे स्पष्ट शब्दों में कहा- पीएम मतलब पनौती मोदी।
जब जैसा चुनावी इतिहास रहा है, अगर पीएम मोदी पर निजी हमले किए जाते हैं, बीजेपी तो स्वीकार करती ही नहीं है, जनता भी ऐसे नेताओं को नकार देती है। राजस्थान में माना जा रहा है कि राहुल का पनौती बयान असल में कांग्रेस की पनौती लेकर आया है। क्योंकि इस एक बयान ने मुकाबले को मोदी बनाम राहुल कर दिया और इस रेस में एक बार फिर पीएम ने आसानी से जीत दर्ज कर ली।
ध्रुवीकरण ने बिगाड़ा कांग्रेस का खेल
कानून व्यवस्था का ही एक पहलू राज्य में ध्रुवीकरण भी देखने को मिला। अब कहने को कांग्रेस इसके लिए पूरी तरह बीजेपी को जिम्मेदार बता रही है, महंत बालकनाथ के बयानों को दोष दे रही है। लेकिन असल में पिछले पांच सालों में कई मौकों पर हिंदू त्योहारों के वक्त जिस तरह से हंगामा हुआ, जिस तरह से कई सड़कों पर पथराव देखने को मिला, बीजेपी ने आसानी इस मुद्दे को उठाया और चुनावी मौसम में बड़े स्तर पर ध्रुवीकरण देखने को मिला। महंत बालकनाथ का आक्रमक प्रचार भी कांग्रेस के लिए नुकसान का सौदा साबित हुआ।
अलवर और भरतपुर जैसे जिलों में कांग्रेस नुकसान उठाना पड़ा। ये कहने को ज्यादा मुस्लिम संख्या वाले जिले रहे, लेकिन ध्रुवीकरण ने यहां पर हिंदू वोटों को भी एकमुश्त करने का काम किया और इसका सीधा फायदा बीजेपी ले गई।