पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 की जंग में कांग्रेस के प्रदेश नवजोत सिंह सिद्धू अमृतसर ईस्ट सीट से मैदान में हैं। उधर शिरोमणि अकाली दल ने बिक्रम मजीठिया को इस सीट से टिकट दिया है। पहले उनके मजीठा सीट से लड़ने की चर्चा थी, लेकिन अब वह अमृतसर ईस्ट से सिद्धू के सामने चुनौती पेश कर रहे हैं। इस हाई-प्रोफाइल सीट पर मुकाबला बेहद कड़ा होने वाला है। यहां कौन बाजी मारता है ये तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे लेकिन ABP CVoter के ताजा सर्वे में सिद्धू को बढ़त मिलती नजर आ रही है।
ABP CVoter के सर्वे में जब यह सवाल पूछा गया कि अमृतसर ईस्ट सीट पर कौन भारी पड़ेगा तो 39 प्रतिशत लोगों ने नवजोत सिंह सिद्धू को बड़ा दावेदार बताया, जबकि 26 प्रतिशत बिक्रम मजीठिया का पक्ष मजबूत बताया, हालांकि 22 प्रतिशत लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने सिद्धू और मजीठिया दोनों को ही खारिज कर दिया। 22 प्रतिशत लोगों ने दोनों की ही जीत की संभावनाओं को कम बताया, ये वर्ग AAP के साथ जा सकता है। 13 प्रतिशत लोग ऐसे भी रहे, जिन्होंने यह कहा कि वे किसी भी जीत के प्रति आश्वस्त नहीं हैं, इसलिए वे इस सवाल का जवाब ठीक से नहीं दे सकते हैं।
मजीठिया और सिद्धू न केवल पंजाब के दो बड़े राजनेता हैं बल्कि दोनों की अदावत भी पुरानी है। पंजाब चुनाव 2022 में मजीठिया अमृतसर ईस्ट से चुनाव सिर्फ इसलिए लड़ रहे हैं, क्योंकि उन्हें सिद्धू ने उन्हें मजीठा सीट छोड़कर अमृतसर ईस्ट से चुनाव लड़ने की चुनौती दी थी, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। मजीठा सीट मजीठिया कई बार जीत चुके हैं। अपनी पारंपरिक सीट वह सिर्फ सिद्धू की चुनौती स्वीकार करने के लिए छोड़ रहे हैं।
2014 लोकसभा चुनाव में अरुण जेटली को बीजेपी ने अमृतसर से अमरिंदर सिंह के खिलाफ टिकट दिया था। उस वक्त मजीठिया को ही जेटली का कैंपेन मैनेजर बनाया गया। हालांकि, जेटली चुनाव हार गए थे, लेकिन मजीठिया के क्षेत्र में पड़ने जगहों पर जेटली को अमरिंदर से ज्यादा वोट मिले थे। बिक्रम मजीठिया ने 2007 में राजनीति में कदम रखा था। वह अमृतसर की ही मजीठा विधानसभा से चुनाव जीतकर आए थे। सिद्धू सुखबीर बादल के मुखर विरोधी रहे हैं, पंजाब विधानसभा में कई सिद्धू और मजीठिया के बीच जुबानी जंग हो चुकी है।
सिद्धू की बात करें तो 2017 में वह 40 हजार वोटों से जीते थे। अमृतसर ईस्ट सीट के बारे में एक और अहम बात यह है कि इस सीट पर शिरोमणि अकाली दल पहली बार चुनाव लड़ रही है। जब शिअद एनडीए में शामिल थी, तब यह बीजेपी के पास ही रहा करती थी। उस जमाने में सिद्धू भी बीजेपी में ही थे, लेकिन कांग्रेस में आने के बाद भी उनका अपने गढ़ पर प्रभाव कम नहीं हुआ।