वंदना

बाहुबल की जगह बुद्धिबल को तरजीह देने के कारण ही कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार में विद्रोह की आवाजें उठने लगी थीं। उस समय प्रदेश में अफसरशाही इस कदर हावी थी कि मंत्री और आला अफसर की आपसी झड़प में आला अफसर को हटाने की बजाय मंत्री का महकमा बदल दिया गया था। अफसरशाही के दबदबे के कारण ही इस बार कांग्रेस, भाजपा और उसके गठबंधन के साथी और आम आदमी पार्टी सभी खुले दिल से अफसरों से राजनीति करवाने के पक्ष में दिखाई दे रहे हैं। तभी तो टिकट देने में भी इस वर्ग के लिए हाथ खुला रखा गया है।

प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए अब तक जारी सूची के अनुसार भारतीय जनता पार्टी ने लुधियाना जिले से दो आला अधिकारियों को उतारा है। जिले के गिल विधानसभा हलके से निवर्तमान आइएएस एसआर लद्दड़ को टिकट मिला है। वे सेवा में रहते हुए भी कई संगठनों के साथ जुड़कर काम करते रहे हैं। लद्दड़ खेती कानूनों के खिलाफ किसानों के संघर्ष के कारण चर्चा में रहे। किसान आंदोलन के समर्थक लद्दड़ ने किरती किसान यूनियन शेर-ए-पंजाब पार्टी बनाई जिसका उन्होंने भाजपा में विलय कर दिया।

भाजपा ने लुधियाना जिले के ही जगरांव विधानसभा क्षेत्र से पूर्व तहसीलदार कंवर नरिंदरपाल को उतारा है। जगराओं आरक्षित सीट है। यहां से अकाली दल ने एसआर कलेर को टिकट दिया है। कलेर लुधियाना में एडीसी रहे हैं। इस सीट पर दो पूर्व आला अधिकारी मैदान में हैं जिनका मुकाबला आप विधायक सर्वजात कौर माणुके से होगा।

पंजाब में किडनी कांड, फर्जी टेलीफोन एक्सचेंज जैसे मामलों को उजागर करने और बेअदबी कांड की जांच करने वाले आइपीएस कुंवर विजय प्रताप सिंह ने नौकरी से इस्तीफा दिया और आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया। आप ने उन्हें अमृतसर नार्थ से उम्मीदवार बनाया है। संयुक्त समाज मोर्चा ने पूर्व आइएएस खुशीराम को टिकट दिया है। खुशीराम ने 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बसपा टिकट पर भाग्य आजमाया था। अब उन्हें चब्बेवाल से टिकट दिया गया है।

मलेरकोटला से भी कांग्रेस उम्मीदवार रजिया सुलताना का प्रचार उनके पति पूर्व आइपीएस अधिकारी मोहम्मद मुस्तफा संभाले हुए है।ं रजिया सुलताना निवर्तमान विधायक हैं और कहा जाता है कि उनकी सारी सियासी जिम्मेदारी उनके पति ही संभालते हैं। हाल ही में मोहम्मद मुस्तफा की वायरल हुए विवादित वीडियो ने उनके लिए कुछ मुश्किलें भी खड़ी कर दी हैं। इससे पहले वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने आइएएस अमर सिंह को फतेहगढ़ साहिब से उम्मीदवार बनाया और वे जीत गए। अमर सिंह ने केंद्र व मध्यप्रदेश समेत कई राज्यों में बतौर आइएएस बेहतर काम किया और अब वे राजनीतिक पारी भी सफलता के साथ खेल रहे हैं।

पंजाब में अमरिंदर सरकार के कार्यकाल के दौरान हुए फगवाड़ा उपचुनाव में तो आइएएस बलविंदर सिंह ने सुबह नौकरी से इस्तीफा दिया और शाम को कांग्रेस ने उन्हें उम्मीदवार घोषित कर दिया। राजनीति उन्हें रास नहीं आई और बाद में वे सामान्य जीवन में लौट गए।आइएएस व आइपीएस के पंजाब की राजनीति में सक्रिय होने का यह पहला मामला नहीं है। इसकी शुरुआत 90 के दशक में आइपीएस सिमरनजीत सिंह मान ने की। जिन्होंने पंजाब में गरमपंथी विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए अकाली दल अमृतसर का गठन किया और एक बार संसद की दहलीज तक भी पहुंचे। सिमरनजीत सिंह मान ने संसद में कृपाण लेकर जाने, बैलगाड़ी में जाने आदि को लेकर खूब सुर्खियां बटोरी। वर्तमान में सिमरनजीत सिंह मान एक विशेष विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं।

इसके अलावा पंजाब में कई अधिकारी ऐसे भी हैं, जिन्होंने सक्रिय राजनीति में हिस्सेदारी निभाने की बजाय राजनीतिक नियुक्तियों को अहमियत दी है। आइपीएस मोहम्मद मुस्तफा कांग्रेस प्रधान नवजोत सिद्धू के सलाहकार हैं। उनकी पत्नी पंजाब में मंत्री रह चुकी हैं। पुत्रवधु वक्फ बोर्ड पंजाब की अध्यक्ष हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार ने राजनीतिक नियुक्तियों में 13 पूर्व नौकरशाहों को स्थान दिया गया। अमरिंदर सरकार में राजनीतिक नियुक्तियां पाने वालों में तेजिंदर कौर, डीपी रेड्डी, पूर्व पुलिस महानिदेशक एसके शर्मा मुख्य रूप से शामिल रहे हैं।