एनसीपी प्रमुख अजित पवार ने गुरुवार को लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन पर चर्चा के लिए समीक्षा बैठक की। इस बार पार्टी केवल एक सीट जीत सकी। गुरुवार को आयोजित समीक्षा बैठक में 41 विधायकों में से पांच अनुपस्थित रहे। नरहरि जिरवाल के विदेश में होने की बात कही जा रही है, जबकि चार के अस्वस्थ होने की खबर है। वहीं, अजित ने बुधवार को दिल्ली में एनडीए सहयोगियों की बैठक में हिस्सा नहीं लिया, हालांकि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विश्वास जताया।

अजित की एनसीपी ने चार सीटों पर चुनाव लड़ा और केवल एक सीट जीती

इस घटनाक्रम से अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी की किस्मत और योजनाओं के बारे में अटकलों का दौर तेज हो गया है। शरद पवार ने एक बार फिर अपने भतीजे पर बढ़त हासिल कर ली है और अपनी पार्टी को 10 सीटों में से आठ सीटों पर जीत दिलाई है। दूसरी ओर अजित की एनसीपी ने चार सीटों पर चुनाव लड़ा और केवल एक सीट रायगढ़ में जीत दर्ज की। जिन सीटों पर उसे हार का सामना करना पड़ा, उनमें बारामती भी शामिल है, जहां अजित की पत्नी सुनेत्रा का मुकाबला शरद पवार की बेटी और मौजूदा सांसद सुप्रिया सुले से था। पूर्व में अजित पवार के उलटफेरों और बगावत को देखते हुए सबसे बड़ी चर्चा यह है कि वह फिर से शरद पवार गुट में वापसी की कोशिश कर रहे हैं। माना जा रहा है उनके विधायकों की एक बड़ी संख्या ऐसा करने की कोशिश कर सकती है।

महायुति बनाम महा विकास अघाड़ी के मुकाबले में अजीत का प्रदर्शन खराब

हालांकि यह साफ है कि अजीत के पास सौदेबाजी के लिए बहुत कम विकल्प बचे हैं। महाराष्ट्र में छह बड़ी पार्टियों के बीच महायुति बनाम महा विकास अघाड़ी के मुकाबले में अजीत की एनसीपी ने सबसे खराब प्रदर्शन किया। वह 1 सीट और 3.6% वोट जीते। हालांकि पवार की पार्टी दूसरों की तुलना में सबसे कम निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव लड़ी, लेकिन इसके और शरद पवार की एनसीपी- जिसने 10 सीटों पर चुनाव लड़ा, 7% वोट पाए। लोकसभा के नतीजों का असर विधानसभा चुनावों पर दिखेगा। इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में उनकी जीत की संभावना कम रहेगी।

बारामती में हार- जहां भाजपा ने भी अपना सब कुछ झोंक दिया था – राष्ट्रीय पार्टी के साथ अजीत की पकड़ को भी कम करेगी। सूत्रों ने कहा कि अगर जीत मिलती है तो यह भाजपा को मराठा चेहरे अजीत को अगला मुख्यमंत्री पद देने के लिए प्रेरित करेगी। बारामती सीट पर सुनेत्रा की हार काफी बड़ी है। सुले ने बारामती के अंतर्गत आने वाली छह विधानसभा सीटों में से पांच पर जीत हासिल की। इसमें बारामती विधानसभा सीट भी शामिल थी, जिसे अजीत ने 2019 में 1.65 लाख वोटों से जीता था, जहां सुनेत्रा 45,000 से अधिक वोटों से पीछे थीं।

अजीत की व्यक्तिगत हार को रेखांकित करते हुए, एनसीपी (शरदचंद्र पवार) के नेता और शरद पवार के लंबे समय से सहयोगी अंकुश काकड़े ने कहा: ‘मतदाताओं ने पवार साहब को छोड़कर भाजपा से हाथ मिलाने के लिए उन्हें मंजूरी नहीं दी। अजीत ने रैलियों में पवार साहब को जिस तरह निशाना बनाया, वह उन्हें पसंद नहीं आया। काकड़े ने यह भी स्वीकार किया कि अगर एनसीपी एकजुट होती, तो सुले को जीतने में संघर्ष करना पड़ता। “लेकिन चूंकि अजित शरद पवार के बारे में बुरा-भला कह रहे थे, इसलिए बारामती ने इसे दिल पर ले लिया और सुले को वोट दिया।”

हालांकि, अजित खेमे के लोग फडणवीस के इस्तीफे की पेशकश को “नैतिक जिम्मेदारी” के रूप में पेश करने में एक उम्मीद की किरण मानते हैं, क्योंकि उनके महायुति गठबंधन के खराब प्रदर्शन के कारण भाजपा महाराष्ट्र में केवल नौ सीटें जीत पाई, जो 2019 के 23 से कम है। कई लोगों का मानना है कि यह पेशकश भाजपा के लिए फडणवीस को वरिष्ठ पद पर दिल्ली ले जाने का मार्ग प्रशस्त करने के लिए की गई थी – एक योजना जो लंबे समय से चल रही थी। फडणवीस के करीबी माने जाने वाले भाजपा नेता अमित गोरखे ने कहा कि उनकी पेशकश ने उनके समर्थकों को “परेशान” कर दिया है। “उपमुख्यमंत्री भागने वालों में से नहीं हैं। उन्होंने अपने जीवन में कई तूफानों का सामना किया है।” अगर फडणवीस को महाराष्ट्र की तस्वीर से हटा दिया जाता है, तो अजित के सहयोगियों का कहना है कि इससे एकनाथ शिंदे की जगह महायुति सरकार के मुख्यमंत्री बनने का रास्ता खुल जाएगा। शिंदे की अगुआई वाली शिवसेना भी लोकसभा चुनावों में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाई और उसे सात सीटें मिलीं, जो उद्धव ठाकरे की अगुआई वाली सेना से दो कम हैं।

हालांकि शिंदे भी मराठा हैं, लेकिन उनकी पहुंच अजित के विपरीत ठाणे-कल्याण क्षेत्र तक ही सीमित है। एनसीपी के एक नेता ने कहा, ”शिंदे में महायुति का नेतृत्व करने का करिश्मा नहीं है। सिर्फ अजित पवार ही गठबंधन को विधानसभा चुनाव में जीत दिला सकते हैं।” लेकिन एक सीट उनके खाते में होने के कारण अजित के सीएम या सीएम चेहरे के तौर पर चुने जाने की संभावना बेहद कम है। एनसीपी प्रवक्ता उमेश पाटिल ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि अजित के एनडीए की बैठक में शामिल न होने को ज्यादा तूल नहीं दिया जाना चाहिए – यह बैठक एनसीपी की समीक्षा बैठक से ठीक एक दिन पहले हुई थी – जिसमें अजित ने अपनी जगह प्रफुल्ल पटेल और सुनील तटकरे को शामिल होने के लिए भेजा था।

पाटिल ने यह भी कहा कि एनसीपी के खराब प्रदर्शन के लिए अजित को दोषी ठहराना गलत है, क्योंकि पूरी महायुति ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। “गठबंधन को नुकसान उठाना पड़ा और इसके कई कारण हैं – मराठा आंदोलन, किसानों का विरोध, टिकटों का देर से वितरण।” दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने आगे कहा: “हम मतदाताओं को यह भी नहीं समझा पाए कि हमने भाजपा से हाथ क्यों मिलाया।”