Lok Sabha Election 2019: सत्रहवीं लोकसभा के चुनाव में उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर कई बड़े नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, समाजवादी पार्टी के राष्टÑीय अध्यक्ष अखिलेश यादव, बसपा सुप्रीमो मायावती, प्रसपा सुप्रीमो शिवपाल सिंह यादव, कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के अलावा प्रियंका गांधी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जनसत्ता दल के राजा भैया, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, आजम खां और जयाप्रदा शामिल हैं।

सोहवीं लोकसभा के चुनाव में अमेठी और रायबरेली तक सीमित रहने वाली कांग्रेस, क्या राहुल के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद दो की संख्या में इजाफा कर पाने में कामयाब हो पाती है? इसका जवाब राहुल गांधी के राजनीतिक कद को तय करने जा रहा है। सत्रहवीं लोकसभा के चुनाव में पूर्वी उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया की सियासी समझ का रिपोर्ट कार्ड भी तैयार होगा।

इतना ही नहीं सपा के राष्टÑीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा की राष्टÑीय अध्यक्ष मायावती की सियासी किस्मत की चाभी भी कैद है। इस बार सपा और बसपा को यह साबित करना है कि दोनों के साथ आने से उनके राजनीतिक बल में इजाफा हुआ है। सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में सिफर पर बनाने वालीं मायावती और पांच सांसद जिता पाने वाले अखिलेश यादव को इस चुनाव में अपनी शक्ति का अहसास कराना होगा। यदि वे इसमें कामयाब नहीं हुए तो उनके लिए सत्रहवीं लोकसभा के चुनाव गंभीर संकट पैदा कर सकते हैं। वहीं रामपुर में आजम खां की प्रतिष्ठा मतदाताओं के हवाले है। उनके मुकाबले खड़ीं जयाप्रदा को भी सियासी जमीन तैयार करनी है।

गोरखपुर और फूलपुर में भारतीय जनता पार्टी के कप्तान योगी आदित्यनाथ और उपकप्तान केशव प्रसाद मौर्य का बहुत कुछ इस चुनाव में दांव पर है। एक साल पहले हुए उपचुनाव में गोरखपुर और फूलपुर सीट हार कर केंद्रीय नेतृत्व की किरकिरी कराने वाले योगी और केशव को हर हाल में अपनी खोई साख हासिल करने के लिए खोई सीटों को जीतना होगा। वहीं प्रगतिशील समाजवादी पार्टी और जनसत्ता दल को अपनी सियासी ताकत का अहसास कराना होगा। अमेठी में स्मृति ईरानी को भी साबित करना है कि उन्होंने पांच साल में जनता के बीच अपनी कितनी पकड़ बनाई? सत्रहवीं लोकसभा के चुनाव में योगी सरकार के 20 से अधिक मंत्रियों की साख भी दांव पर है। उन्हें जिन सीटों का प्रभार सौंपा गया है, वहां आने वाले अप्रत्याशित परिणाम उनकी कुर्सी की पकड़ ढीली कर सकते हैं।