Karnataka Election : कर्नाटक में भाजपा के कई बड़े नेता चुनाव हार गए हैं लेकिन सबसे ज़्यादा चर्चा  शिक्षा मंत्री बीसी नागेश की है। एक ऐसा चेहरा जो हमेशा अपने फैसलों और बयानों को लेकर सुर्खियों में रहा, हिजाब विवाद से लेकर स्कूल की पाठ्यपुस्तकों के ‘भगवाकरण’ के आरोप तक बीसी नागेश ऐसे चर्चाओं के केंद्र में रहे।

बीसी नागेश ने हिजाब पहनने को “act of indiscipline” करार दिया था। उनके विचार में छात्र सार्वजनिक शिक्षण संस्थानों में अपने धर्म का अभ्यास नहीं कर सकते थे। बीसी नागेश ने आदेश दिया था कि जो स्टूडेंट्स सरकार के स्कूल यूनिफॉर्म नियमों का उल्लंघन करेंगे वे स्कूलों में प्रवेश नहीं कर सकते हैं, उन्हें क्लास में आने की अनुमति भी नहीं होगी।

शनिवार (13) मई का दिन बीसी नागेश के लिए अच्छा नहीं रहा, जब चुनावी नतीजे सामने आए तो चर्चा शुरू हुई कि तिप्तुर विधानसभा सीट से बीसी नागेश 17 हजार वोटों से अपना चुनाव हार गए हैं। इस सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज कर ली है।

RSS से रहा है जुड़ाव

64 वर्षीय बीसी नागेश भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बी एल संतोष के करीबी सहयोगी माने जाने हैं। उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से हुई, उन्होंने आरएसएस में तुमकुर जिले के भाजपा सचिव के रूप में भी काम किया। इसके बाद भाजपा में शामिल हो गए। वह 2008 में पहली बार तिप्तुर से विधायक चुने गए थे। हालांकि 2013 में चुनाव हार गए 2018 में 25,000 से अधिक मतों के अंतर से फिर से चुने गए।

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हिजाब से लेकर भगत सिंह को पाठ्यपुस्तकों से हटाने तक..

बीसी नागेश सिर्फ हिजाब को लेकर अपनी सख्त बयानी और फैसलों को लेकर चर्चा में नहीं रहे बल्कि उनका विरोध शहीद भगत सिंह और समाज सुधारक नारायण गुरु को पाठ्यपुस्तकों से गायब कर देने के लिए भी हुआ। कर्नाटक की पाठ्यपुस्तकों में शहीद भगत सिंह के चैप्टर को आरएसएस के संस्थापक के एच हेडगेवार और दक्षिणपंथी विचारधारा से जुड़े अन्य क्रांतिकारियों के भाषणों से बदल दिया गया था। हालांकि भगत सिंह और नारायण गुरु को फिरसे सिलेबस में शामिल कर लिया गया था।

जनता ने क्यों बीसी नागेश को नकार दिया?

कांग्रेस के एक नेता ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि एक मंत्री के रूप में उनके खराब प्रदर्शन के कारण तिप्तूर में उनके खिलाफ लोगों में नार्ज़्गि थी.. लोगों को यह बात पसंद नहीं आई कि उन्होंने स्कूल की पाठ्यपुस्तकों बदलने की कोशिश की और बारगुरु रामचंद्रप्पा जैसे लेखकों पर हमला किया। हिजाब को लेकर उनका सख्त रवैया भी जनता को पसंद नहीं आया और उन्हें नकार दिया गया।