भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) लंबे समय से कांग्रेस पर तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप लगाती रही है लेकिन हाल के दिनों में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के कई फैसलों से भाजपा द्वारा तुष्टिकरण की राजनीति न करने के दावों की पोल खुल गई है। पौने पांच साल के कार्यकाल में मोदी सरकार ने भी कांग्रेस की तर्ज पर समाज के एक खास वर्ग को तुष्ट करने की कोशिशें की हैं और कुछ के लिए अध्यादेश तो कुछ के लिए विधेयकों का सहारा लिया है। ये अलग बात है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह इस बात का दावा करते रहे हैं कि उनकी पार्टी पॉलिटिक्स ऑफ परफॉर्मेन्स करती है और उसी के आधार पर चुनावी जीत हासिल करती है। शाह के अलावा पूर्व भाजपा अध्यक्षों और पार्टी के बड़े नेताओं का भी यही दावा रहा है मगर मोदी सरकार के हालिया फैसलों पर नजर डालें तो मुस्लिम महिलाओं से लेकर दलित और सवर्ण समुदाय को खुश करने के लिए भाजपा ने अलग-अलग तरह के उपाय किए हैं।
गरीब सवर्णों को आरक्षण: मोदी सरकार के इन फैसलों में सबसे ज्यादा चर्चित 124वां संविधान संशोधन बिल है जिसके जरिए गरीब सवर्णों को शिक्षा और नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया है। सियासी गलियारों में चर्चा है कि हिन्दी पट्टी के तीन राज्यों में भाजपा की सरकार गिरने के बाद केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 2019 के चुनावों में हार की आशंका और सवर्ण समाज की नाराजगी दूर करने के लिए यह कदम उठाया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इन राज्यों के विधान सभा चुनाव में सवर्ण मतदाताओं ने बड़ी संख्या में या तो नोटा का बटन दबाया था या फिर कांग्रेस की तरफ रुख कर लिया था। इनके अलावा बिहार, यूपी समेत कमोबेश सभी हिन्दी पट्टी राज्यों में अगड़ी जाति के लोग केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से एससी-एसटी एक्ट में संशोधन की वजह से नाराज चल रहे थे।
वीडियो: अमित शाह का दावा भी सुनिए
तुष्टिकरण की जगह पॉलिटिक्स ऑफ परफॉर्मेंस को चुनाव का मुद्दा बनाकर भाजपा और भाजपा की सरकारों ने देश की राजनीति की दिशा बदली है: श्री अमित शाह pic.twitter.com/pSJm1xbP89
— BJP (@BJP4India) May 16, 2017
एससी/एसटी एक्ट पर अध्यादेश फिर संशोधन बिल: पिछले साल (2018) 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए के गोयल और जस्टिय यूयू ललित की खंडपीठ ने एससी/एसटी (अत्याचार रोकथाम) एक्ट पर बड़ा फैसला सुनाया था कि किसी भी आरोपी को दलित अत्याचार के केस में प्रारंभिक जांच के बिना गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। इससे पहले केस दर्ज होने के बाद ही गिरफ्तारी का प्रावधान था। इस फैसले से देशभर के दलितों ने 2 अप्रैल को देशव्यापी बंद का आह्वान किया था। मोदी सरकार में शामिल कई दलित मंत्रियों और एनडीए के दलित सांसदों ने भी इस फैसले पर रोष जताया था। इसके दबाव में मोदी सरकार ने पहले एससी-एसटी एक्ट पर अध्यादेश लाया और बाद में संसद के मानसून सत्र में एससी-एसटी कानून में संशोधन कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटते हुए कानून के पुराने प्रावधानों को बहाल कर दिया। इससे दलित समुदाय तो खुश हो गया लेकिन सवर्ण समाज नाराज हो उठा और कई केंद्रीय मंत्रियों को सवर्ण समाज के लोगों ने कई मौकों पर घेरा।
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तीन तलाक पर अध्यादेश और बिल: मुस्लिम महिलाओं को एक झटके में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) की कुप्रथा से आजादी दिलाने के लिए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने संसद में दो बार मुस्लिम महिला (विवाह संरक्षण) विधेयक पेश किया लेकिन यह राज्यसभा से पारित नहीं हो सका। पहली बार बिल मानसून सत्र में पेश किया गया था लेकिन संसद से पारित नहीं होने पर सरकार ने इस पर सितंबर 2018 में अध्यादेश लाया था। दूसरी बार जब फिर से कुछ संशोधनों के साथ शीतकालीन सत्र में तीन तलाक पर बिल संसद में पेश किया गया तो यह राज्यसभा में अटक गया। माना जाता है कि मोदी सरकार ने मुस्लिम महिला तुष्टिकरण की नीति पर चलते हुए तीन तलाक को अपना अहम एजेंडा बनाया है। हालांकि, अध्यादेश अभी भी प्रभावी है लेकिन उसकी वैधता लागू होने से छह महीने (मार्च) तक ही है।
पिछड़ा वर्ग को साधने के लिए भी मोदी सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के लिए संसद में विधेयक पारित कराया था। हालांकि, कई ओबीसी नेताओं ने इसका विरोध किया था लेकिन अति पिछड़े नेताओं ने इसका समर्थन किया था।