मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विपक्ष को सत्ता विरोधी लहर का लाभ मिला, लेकिन सत्ताधारी भाजपा बड़े नुकसान से बच निकली। तीनों राज्यों में स्थानीय स्तर पर प्रतिष्ठान विरोधी वोटों का प्रबंध भाजपा के काम आया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राज्यस्तर पर लोगों की भावनाओं के मद्देनजर अपनी जनसभाओं में मुद्दे उठाए, लोगों के सामने वादे रखे और पार्टी को संभावित बड़े नुकसान से बचा लिया। मध्य प्रदेश में भाजपा ने अपने संगठन को झोंक दिया। कांग्रेस ने वहां सत्ता विरोधी लहर पर भरोसा किया, लेकिन पूरे चुनाव के दौरान बड़े नेताओं में गुटबाजी की खबरें हावी रहीं। हालांकि, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी जनसभाओं और रैलियों में गुटबाजी के नुकसान की भरपाई की कोशिश की। केंद्रीेय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के मुताबिक, ‘उदाहरण के लिए हम चुनाव पूर्व के अपने सर्वे में राजस्थान में महज 40 सीटों पर सिमट रहे थे। आखिरी मौके पर टीम प्रबंधन से हमने अपना आंकड़ा सुधारा।’ दरअसल, मध्य प्रदेश में मोदी और शाह ने अधिकांश जगहों पर अपनी रैलियों में वसुंधरा सरकार का जिक्र तक नहीं किया। राजस्थान में भाजपा समर्थकों ने ही यह नारा लगाया था मोदी से बैर नहीं, पर वसुंधरा की खैर नहीं। इससे भाजपा आलाकमान ने अपनी रणनीति में केंद्र सरकार के कामकाज और स्थानीय समीकरणों पर बातें की।

इन राज्यों में भाजपा को राजनीतिक तस्वीर का अनुमान पहले था। इसलिए मोदी-शाह के अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का चुनाव प्रचार में जमकर इस्तेमाल किया। योगी आदित्यनाथ ने तीनों राज्यों में कई ऐसे मुद्दे उठाए, जिनसे महिला और बुजुर्ग वोट भाजपा के लिए मजबूत हुए। ग्रामीण क्षेत्रों में मतदाताओं की नाराजगी की बड़ी वजह खेती-किसानी की बुरी स्थिति और फसलों की सही कीमत न मिलना रहा। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी सभी जनसभाओं में जनता से वादा किया था कि यदि उनकी सरकार बनती है तो 10 दिनों के भीतर वे किसानों की कर्जमाफी करेंगे। कांंग्रेस ने धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 2300 रुपए देने का ऐलान किया। कांग्रेस का यह तीर निशाने पर लगा।

दूसरी ओर, इस चुनाव में महिलाओं के बीच महंगाई भी एक बड़ा मुद्दा था। एक ओर भाजपा उज्जवला योजना को बतौर एक बड़ी उपलब्धि मतदाताओं के सामने परोस रही थी, वहीं एलपीजी गैस सिलिंडर की कीमत 1,000 रुपए पहुंचने की वजह से मतदाताओं में खासी नाराजगी थी। रोजगार के मुद्दे, कामगारों की समस्याएं, नोटबंदी और जीएसटी का असर भाजपा की सरकारों के लिए नुकसानदायक रहा। इसकी आंच भाजपा के घटक दलों ने भी झेली।

सत्ता विरोधी लहर हमने रोक ली थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने जिस प्रकार से दौरे किए, उससे हमारा प्रदर्शन सुधरा।
– केंद्रीेय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर (पार्टी में राजस्थान के प्रभारी)

भाजपा जन सरोकारों की बात भूल गई, जिसका खमियाजा उसे उठाना पड़ा।
-गुलाम नबी आजाद, कांग्रेस नेता

भाजपा का विजय रथ थम गया है। यह स्पष्ट संदेश है और यह हमारे लिए आत्मावलोकन करने का समय है।
– शिवसेना के प्रवक्ता व राज्यसभा में पार्टी के सांसद संजय राउत

हमसे थोड़ी गलती हुई कि शुरू में हमने कांग्रेस को थोड़ा कमजोर समझा। कांग्रेस ने संगठित होकर चुनाव लड़ा, जिसका उन्हें फायदा हुआ।
-कैलाश विजयवर्गीय, भाजपा नेता