1991 का लोकसभा चुनाव चल रहा था, कांग्रेस एक बार फिर सत्ता में आने के लिए आतुर थी, राजीव गांधी जैसा युवा नेता प्रचार कर रहा था। तीन चरण में होने वाले उस चुनाव में एक चरण की वोटिंग भी हो चुकी थी। कुछ जगह ऐसी खबरें चलीं कि कांग्रेस पिछड़ गई है और उसे सत्ता में आने के लिए कुछ कमाल करना पड़ेगा। चुनाव आगे बढ़ा, प्रचार तेज हुआ और राजीव गांधी 21 मई, 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेंरबदूर पहुंच गए।

राजीव की दीवानगी ऐसी थी कि भारी संख्या में लोग जुटे, हर कोई उस युवा चेहरे की एक झलक चाहता था। मंच से आवाज आ रही थी- राजीव गांधी आने वाले हैं, कुछ ही पलों में वे मंच पर होंगे। राजीव आए और उन्हें देख जनता उत्साहित हो गई। कई लोग उनसे हाथ मिलाना चाहते थे, राजीव ने सभी को पास आने दिया, सुरक्षाकर्मियों ने जरूर खदेड़ने की कोशिश की, लेकिन राजीव ने उन्हें रोक दिया। नलिनी नाम की महिला भी माला लेकर आ गई, राजीव का सम्मान किया, पैर छुए और एक जोरदार धमाका।

राजीव गांधी की हत्या कर दी गई, देश सदमें में चला गया, चुनाव प्रचार कुछ समय के लिए थम गया और कांग्रेस के सामने यक्ष सवाल खड़ा हुआ- कांग्रेस का उत्तराधिकारी कौन होगा? नाम चला सोनिया गांधी का, सभी को लगा पति की मौत हुई है, पत्नी को इसी समय पर राजनीति में एंट्री कर लेनी चाहिए। लेकिन सोनिया का मन डरा हुआ था, वे राजनीति में कदम रखने के लिए सज नहीं थीं। अब असमंजस के माहौल के बीच लोकसभा चुनाव के नतीजे आए, कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बन गई, बहुमत नहीं मिला, लेकिन 232 सीटें खाते में गईं।

अब सवाल आया कि प्रधानमंत्री कौन बनेगा, मन में लड्डू तो कई के फूटा, महाराष्ट्र से शरद पवार का नाम चला, एमपी से अर्जुन सिंह ने भी हुंकार भरी और यूपी से एनडी तिवारी भी दावेदार माने गए। सब के नाम चले, लेकिन इतिहास जिसका नाम सुनहरे अक्षरों से लिखने वाला था, वो मौन थे, वो एकदम शांत थे और राजनीति से संन्यास लेने का मन बना चुके थे। नाम था नरसिम्हा राव, उम्र 69 साल और राजनीति का चल रहा था अंतिम पड़ाव। जीवन में जो चाहते थे, हासिल हो चुका था, इंदिरा-राजीव की सरकार में मंत्री रहे, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बन चुके थे, अब बस संन्यास की तैयारी चल रही थी। वो तो हैदरबाद में अपने गांव जाने का मन बना चुके थे, पैकिंग हो चुकी थी।

उस समय बीबीसी ने नरसिम्हा राव से सवाल पूछा था- क्या आप देश के अगले प्रधानमंत्री बनने वाले हैं? जो शख्स संन्यास के बारे में सोच रहा था, वो क्या ही जवाब देता। औपचारिका निभाते हुए कह दिया- कांग्रेस कार्य समिति जो तय करे। अब नरसिम्हा पूरी तरह अनजान थे, नियति उनके साथ क्या बड़ा खेल करने वाली थी, वो कभी सोच भी नहीं सकते थे। दूसरी तरफ से कुछ अहम बैठकों का दौर शुरू हो चुका था।

राजीव के अंतिम संस्कार के एक दिन बाद ही सोनिया गांधी ने आनन-फानन में नटवर सिंह को बुलाया। सीधे पूछा- प्रधानमंत्री किसे बनाना चाहिए? इस प्रश्न का जवाब नटवर के पास नहीं था, लेकिन जिसके पास से मिल सकता था, उसका पता और नाम सोनिया को बता दिया गया। उस शख्स का नाम था पीएन हक्सर। विनय सीतापति ने अपनी किताब में लिखा है कि पीएन हक्सर चाहते थे कि उप राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा को पार्टी अपना नेता चुन ले। लेकिन शंकर दयाल शर्मा ने अपनी उम्र का हवाला देकर पीछे हटना ही बेहतर समझा। यानी कि एक नाम जो सामने आया था, वो भी ठंडे बस्ते में चला गया।

अब सोनिया फिर पीएन हक्सर के पास चली गईं, फिर वहीं सवाल- अब किसे बनाया जाए पीएम? यहां किया नियति ने सबसे बड़ा खेल और पहली बार पीएन ने सोनिया के सामने नरसिम्हा राव के नाम का प्रस्ताव रख दिया। अनुभव के तराजू पर फिट, इंदिरा-राजीव के करीबी और सभी को साथ रखने में सक्षम। अब यहां से नरसिम्हा राव का नाम पीएम रेस में आगे हो गया, 29 मई को सबसे पहले कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया और फिर चुनावी नतीजों के बाद 20 जून को उनके नाम पर मुहर लगा दी गई। खुद अर्जुन सिंह ने उनका नाम प्रस्तावित किया और सर्वसहमति से वो पारित हुआ।

मजे की बात ये थी कि 20 जून तक तो शरद पवार भी पीएम रेस में थे, लेकिन शाम होते-होते नरसिम्हा राव की किस्मत चमकी और पवार सियासी अंधेरे में चले गए। पीएम बनने का उनका सपना चकनाचूक हो गया और 21 जून को नरसिम्हा राव ने देश के 9वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ले ली।