देश का माफिया डॉन मुख्तार अंसारी अब इस दुनिया में नहीं है, गुरुवार शाम को उसकी हार्ट अटैक से मौत हो गई। उस पर 63 से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं, हत्या-अपहरण से लेकर वसूली तक के मुकदमे चल रहे है, वो बाहुबली अब इस दुनिया को अलविदा कह चुका है। पूर्वांचल के इस बाहुबली की मौत पर राजनीति भी शुरू हो चुकी है।
इस समय विपक्ष के कई नेता मुख्तार की मौत से सदमे में है, उनकी तरफ से शोक संदेश जारी किए जा रहे हैं। कोई इसे साधारण मौत मानने को तैयार नहीं दिख रहा है तो कई तो जांच तक की मांग कर रहे हैं। अब समझने वाली बात ये है कि जिस शख्स की मौत हुई है, वो एक क्रूर अपराधी था, शायद ही ऐसा कोई जुर्म था जो उसने ना किया हो। अब उस शख्स के लिए विपक्ष के नेता जिस तरह से दुख जाहिर कर रहे हैं, जिस तरह से शोक संदेश लिख रहे हैं, एक बड़ा वर्ग सोचने को मजबूर हो गया है। अब विपक्षी नेताओं के इस दुख का सियासी विश्लेषण किया जाएगा, लेकिन सबसे पहले सोशल मीडिया पर लिखी गईं उन पोस्ट पर नजर डालनी चाहिए जहां पर मुख्तार की मौत पर शोक संदेश जारी किया गया है।
विपक्ष का शोक संदेश
तेजस्वी यादव ने सबसे पहले अपनी पोस्ट में लिखा कि यूपी से पूर्व विधायक श्री मुख्तार अंसारी के इंतकाल का दुःखद समाचार मिला। परवरदिगार से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को शांति तथा शोकाकुल परिजनों को दुःख सहने की शक्ति प्रदान करें। कुछ दिन पूर्व उन्होंने शिकायत की थी कि उन्हें जेल में जहर दिया गया है फिर भी गंभीरता से नहीं लिया गया। प्रथम दृष्टया ये न्यायोचित और मानवीय नहीं लगता। संवैधानिक संस्थाओं को ऐसे विचित्र मामलों व घटनाओं पर स्वत: संज्ञान लेना चाहिए।
इसके बाद बिहार के ही पप्पू यादव ने एक कदम आगे बढ़कर इसे हत्या तक बता डाला। उन्होंने लिखा कि पूर्व विधायक मुख़्तार अंसारी जी की सांस्थानिक हत्या। क़ानून, संविधान, नैसर्गिक न्याय को दफन कर देने जैसा है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी सवाल उठाते हुए लिखा कि हर हाल में और हर स्थान पर किसी के जीवन की रक्षा करना सरकार का सबसे पहला दायित्व और कर्तव्य होता है। सरकारों पर निम्नलिखित हालातों में से किसी भी हालात में, किसी बंधक या क़ैदी की मृत्यु होना, न्यायिक प्रक्रिया से लोगों का विश्वास उठा देगा।
बसपा प्रमुख मायावती ने लिखा कि मुख़्तार अंसारी की जेल में हुई मौत को लेकर उनके परिवार द्वारा जो लगातार आशंकायें व गंभीर आरोप लगाए गए हैं उनकी उच्च-स्तरीय जाँच जरूरी, ताकि उनकी मौत के सही तथ्य सामने आ सकें। ऐसे में उनके परिवार का दुःखी होना स्वाभाविक। कुदरत उन्हें इस दुःख को सहन करने की शक्ति दे। अब ये सारे जो शोक संदेश हैं, इनमें दो बातें कॉमन है- पहली ये कि सभी मुख्तार की मौत पर सवाल उठा रहे हैं, दूसरी ये कि सभी उसकी आत्मा की शांति की कामना कर रहे हैं।
विपक्ष बहा रहा आंसू या वोटों की मजबूरी?
ऐसे में इन आंसुओं का सियासी विश्लेषण दो तरह से किया जाएगा। पहला विश्लेषण तो इस बात को लेकर है कि आखिर मुख्तार अंसारी की मौत पर विपक्ष को क्यों इतने आंसू बहाने पड़ रहे हैं। दूसरा विश्लेषण ये है कि बीजेपी को इस माफिया की मौत से किस तरह से सियासी फायदा पहुंच सकता है। अब सबसे पहले विपक्ष की कुछ सियासी मजबूरियों को समझने की कोशिश करते हैं।
असल में मुख्तार अंसारी की कहने को राजनीति पूर्वांचल में ज्यादा सक्रिय दिखती थी, लेकिन मऊ के अलावा वाराणसी, जौनपुर, चंदौली, आजमगढ़ और बलिया जैसे इलाकों में भी उसकी अच्छी खासी पकड़ देखने को मिली। पूर्वी यूपी की कई दूसरी सीटों पर भी मुख्तार का नाम ही वोटों के ध्रुवीकरण के लिए काफी रहता था। मुस्लिम समाज के बीच में मुख्तार की एक अलग पहचान थी, उसे ‘मुख्तार भाई’ कहकर भी संबोधित किया जाता था। अब समझने वाली बात ये है कि मुख्तार के जाने के बाद इन सीटों पर मुस्लिम वोट का ध्रुवीकरण संभव है।
चुनाव का पूरा शेड्यूल यहां जानिए
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मुख्तार की मौत से मुस्लिम समाज के एक बड़े वर्ग में आक्रोश हो। इस समय मुस्लिम वोट यूपी में या तो इंडिया गठबंधन (सपा और कांग्रेस) या फिर बसपा को जा सकता है। बीजेपी को अभी मुस्लिमों का इतना समर्थन नहीं मिल रहा कि वोटिंग पैटर्न बदल सके। ऐसे में जब मुख्तार की मौत हुई, सबसे पहले सपा और बसपा ने ही शोक संदेश जारी किया। राजनीति में इसे ही टाइमिंग का खेल कहा जाता है। कहने को मुख्तार बाहुबली था, उसने कई जुर्म किए थे, लेकिन अपने इलाके में, मुस्लिम बाहुल दूसरे इलाकों में उसने काम भी किया। गरीबों की शादी करवाने से लेकर जरूरत पड़ने पर पैसों की मदद करने तक, उसने कुछ ऐसे काम किए कि लोगों ने उसे मसीहा माना।
एक जमाने में यहां तक कहा जाता था कि अगर मऊ से मुख्तार निर्दलीय भी उतर जाए तो वो आसानी से जीत दर्ज कर लेगा। ऐसा इसलिए था क्योंकि उसने रॉबिन हुड वाली छवि बना रखी थी। अब बिना बताए, बिना जताए विपक्ष के कई नेता भी उस छवि का फायदा आगामी लोकसभा चुनाव में उठाना चाहते हैं। पूरी कोशिश हो सकती है कि मुस्लिम वोटबैंक का ध्रुवीकरण हो, किसी तरह से एकमुश्त अंदाज में एक वर्ग पूरी तरह इंडिया गठबंधन के पक्ष में वोट करे।
अब मुख्तार तो उसमें सिर्फ एक फैक्टर मात्र है, इसके ऊपर क्योंकि कांग्रेस और सपा ने इस बार राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से भी दूरी बना रखी थी, ऐसे में वो कारण भी मुस्लिमों का वोट इंडिया गठबंधन को दिलवा सकता है, यानी कि मुस्लिम वोटबैंक का ही डबल ध्रुवीकरण हो सकता है। इस समय उत्तर प्रदेश में वैसे भी बीजेपी ने जिस तरह की राजनीति शुरू कर रखी है, वहां पर ध्रुवीकरण, लाभार्थी वोटबैंक और पीएम मोदी के लोकप्रिय चेहरे पर सबसे ज्यादा फोकस किया जा रहा है।
बीजेपी की वोटों की आस पूरी करेगा मुख्तार?
उस बीच अगर मुख्तार की मौत इंडिया गठबंधन को सहानुभूति के कुछ वोट दिलवा देगी, तो विपक्षी नेता उससे गुरेज नहीं करने वाले हैं। अब ये तो विपक्षी राजनीति का विश्लेषण है, लेकिन इस समय बीजेपी के पास भी और ज्यादा वोट पाने का एक बड़ा मौका है। बीजेपी मुख्तार की मौत पर जातियों से ऊपर उठकर नेरेटिव वाला खेल शुरू कर सकती है। ये नहीं भूलना चाहिए कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने बाहुबलियों पर कठोर रुख अपना रखा है। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि मुख्तार से लेकर अतीक अहमद के ज्यादा बुरे दिन 2017 के बाद ही शुरू हुए थे।
अब कहने को केस तो उन पर पहले से दर्ज थे, लेकिन फास्ट ट्रैक के जरिए तेज सुनवाई, संपत्तियों का जब्त होना कुछ ऐसे कदम थे जिन्होंने बाहुबलियों की ताकत को बिल्कुल ही खत्म करने का काम कर दिया था। इसके ऊपर एक नेटेरिव ये भी सेट हो गया था कई डॉन, कई बाहुबली, कई बड़े अपराधी जेल जाने को तैयार बैठे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें एनकाउंटर का डर सता रहा था। अब ऐसे अपराधियों का असल आंकड़ा शायद कुछ कम भी हो सकता है, लेकिन बीजेपी ने जिस तरह का नेरेटिव सेट किया, उसे इसका पूरा फायदा 2022 के विधानसभा चुनाव में मिल चुका है।
अगर राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सख्त प्रशासन की छवि है तो ऐसा ही कुछ सीएम योगी आदित्यनाथ के लिए भी कहा जाएगा। उन्हें जब से बुलडोजर बाबा का तमगा भी दिया गया है, उसने भी बीजेपी के पक्ष में ही माहौल बनाने का काम किया है। अब इसी कड़ी में मुख्तार की मौत पर जितनी डिबेट छिड़ेगी कि वो मरा या फिर मारा गया, वो कन्फ्यूजन ही बीजेपी को सियासी लाभ देने का काम कर सकता है। बीजेपी को सामने से कुछ भी बोलने की जरूरत नहीं पड़ेगी, लेकिन पुराना ट्रैक रिकॉर्ड ही ये नेरेटिव सेट कर देगा कि योगी राज में माफियाओं की खैर नहीं।
यानी कि मुख्तार की मौत से ध्रुवीकरण वाला फायदा अगर विपक्ष को दिखाई दे रहा है तो वहीं ‘माफियाओं की खैर नहीं’ वाला नेरेटिव बीजेपी को भी फायदा पहुंचा सकता है।
