राजेंद्र तिवारी
उत्तर प्रदेश की मिर्जापुर संसदीय सीट बाहरी प्रत्याशियों के लिए मुफीद रही है। पिछले चालीस वर्षों से बाहरी प्रत्याशी इस सीट का संसद में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। 1984 में कांग्रेस के उमाकांत मिश्र के बाद स्थानीय किसी उम्मीदवार को सफलता नहीं मिली। वेब सीरीज ‘मिर्जापुर’ ने जिले को पूरे देश में चर्चा में ला दिया। इससे पहले दस्यु सुंदरी फूलन देवी का मिर्जापुर से चुनाव जीतना भी कम चर्चा में नहीं रहा था।
इस सीट से समाजवादी पार्टी उम्मीदवार के रूप में दो बार (1996 व 1999) फूलन देवी ने जीत दर्ज कर चर्चा का विषय बन गई थी। उनकी बहन मुन्नी देवी फूलन देवी के विरासत संभालने के लिए यहां से चुनाव लडा पर जनता ने नकार दिया। 2009 में दस्यु ददुआ के भाई बालकुमार पटेल भी सपा उम्मीदवार के रूप में विजयी हो चुके हैं। दस्यु सुंदरी सीमा परिहार ने भी यहां चुनावी भाग्य आजमाया था। हालांकि जनता ने उन्हें प्रतिनिधित्व का अवसर नहीं दिया। सीमा को हार का सामना करना पड़ा था।
इस सीट पर बलिया जिले के निवासी बीरेंद्र सिंह मस्त ने भाजपा उम्मीदवार के रूप में दो बार (1991 व 1998) जीत दर्ज कर चुके हैं। फूलन देवी ने मस्त को ही हराया था।वीरेंद्र सिंह ने 1998 फूलन को हराकर बदला लिया। अगले चुनाव में फिर फूलन देवी ने वीरेंद्र सिंह मस्त को हरा दिया। इसी बीच फूलन की हत्या हो गई। फिर वीरेंद्र सिंह और फूलन आमने-सामने नहीं आ सके। फूलन देवी और ददुआ के भाई बालकुमार पटेल से मिर्जापुर सीट चर्चा में रही तो सोनभद्र जिले से यहां आकर 2004 में बसपा से सांसद बने नरेंद्र सिंह कुशवाहा घूस कांड़ में फंस कर अपनी सदस्यता गंवा बैठे थे। उन दिनों घूस कांड काफी चर्चाओं में रहा था।
वर्ष 2014 और 2019 में अपना दल की प्रमुख अनुप्रिया पटेल यहां से जीत दर्ज कर चुकी हैं। अनुप्रिया इस बार फिर राजग प्रत्याशी के रूप में अपना दल के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। उनका मुकाबला भदोही से भाजपा सांसद रहे अब सपा उम्मीदवार रमेश बिंद से है। हालांकि समीकरण की दृष्टि से बसपा ने यहां ब्राह्मण मनीष तिवारी को उम्मीदवार बनाया है। वैसे यहां मुकाबला सपा और अपना दल के बीच ही ही प्रतीत हो रहा है।
यहां सपा उम्मीदवार द्वारा बाहरी प्रत्याशी का मुद्दा उछाला जा रहा है। देखना है कि यह मुद्दा कितना असर करता है।