दक्षिणी दिल्ली में चुनावी मौसम लगातार बदल रहा है। आखिरी चरण में प्रवेश करते ही निगम चुनाव में न केवल मुद्दों ने रेटिंग बदली है बल्कि हवा का रुख भांप कर उम्मीदवारों ने भी अपनी रणनीति बदल दी है। जिन लोगों का स्थानीय निकाय से लेना-देना तक नहीं है, उन्हें भी जनता के सामने रख कर वोट मांगे जा रहे हैं। उम्मीदवार मतदाताओं को गच्चा दे रहे हैं और स्थानीय मुद्दे गायब हो रहे हैं। इस कड़ी में भाजपाई खेमा जहां केंद्र की नीतियों-योजनाओं सहित ‘मोदी-योगी फैक्टर’ को चर्चा में शामिल कर रहा है, वहीं आप के लोग अभी तक बिजली-पानी का राग अलाप रहे हैं और निगम में हार की सूरत पर इनका शुल्क बढ़ जाने का अंदेशा भी जता रहे हैं। वहीं दक्षिणी दिल्ली के कांग्रेसी खेमे में मायूसी है। इलाके के कुछ वार्ड मसलन वार्ड-68 महरौली, वार्ड-85 संगम विहार ईस्ट, कालकाजी (वार्ड-90), श्रीनिवासपुरी (89) व गोविंदपुरी (91) को छोड़कर कांग्रेस के ज्यादातर उम्मीदवार हाशिए पर हैं। कांग्रेसी उम्मीदवारों का दबी जुबान में कहना है कि कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व से अपेक्षित प्रचार सहयोग नहीं मिला पा रहा है जैसा कि भाजपा और आप के लोगों को पार्टी की ओर से मिल रहा है। प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन ‘नई दिल्ली’ से आगे सोच ही नहीं पा रहे हैं।
बहरहाल चुनाव प्रचार के 72 घंटे और बचे हैं। दक्षिणी दिल्ली में मुद्दे जोड़े व घटाए जा रहे हैं। अब तक सड़क, पार्क व साफ-सफाई पर किए गए काम का ढिंढोरा पीटने वाले भाजपा के उम्मीदवारों की ओर से केंद्र सरकार के एलईडी बल्ब लगाने, स्वच्छ भारत मिशन, उज्ज्वला योजना, डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया जैसी महत्त्वपूर्ण योजनाओं पर छपे पर्चे घर-घर बांटे जा रहे हैं। इतना ही नहीं नुक्कड़ सभाओं में भाजपा के लोग ‘मोदी-योगी’ व यूपी चुनाव की चर्चा कर रहे हैं। दरअसल मुद्दों में यह बदलाव भाजपा ने आप की बदली रणनीति के बाद किया है। आप ने महरौली, बदरपुर, देवली और आंबेडकर नगर विधानसभाओं में पर्चे बांट कर भाजपा की जीत के बाद बिजली-पानी के दामों में बढ़ोतरी का दावा किया है। चौंकाने वाले तथ्य यह हैं कि दोनों ही दल दक्षिणी दिल्ली की कई अनधिकृत कालोनियों और झुग्गी बस्तियों में अपनी बात पहुंचाकर भ्रम फैलाने की अपनी कूटनीति में सफल होते नजर आ रहे हैं। अनधिकृत कालोनियों और झुग्गी बस्तयों के लोग जमीनी सच्चाई से अनभिज्ञ हैं, चुनावी कूटनीति के शिकार हैं और नए मुद्दों से प्रभावित हैं। माना जा रहा कि निगम के मूल मुद्दे स्वास्थ्य, प्राथमिक स्कूल, गलियों-बस्तियों की साफ-सफाई, सीवर व पार्कों के रखरखाव जैसे मुद्दे घोषणा पत्र में दफन रहेंगे और गैर-निगम वाले मुद्दे का जिन्न बोतल से बाहर आएगा।
बिजली-पानी पर लिए गए पार्टी के स्टैंड पर आप के एक विधायक ने इस बाबत जवाब के बजाए अपने प्रतिद्वंदी भाजपा पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि उज्ज्वला योजना, डिजिटल इंडिया व मेक इन इंडिया ये सब क्या निगम के मुद्दे हैं? ‘मोदी-योगी’ की नीतियों का यहां क्या लेना-देना। उन्होंने कहा कि ताज्जुब की बात है, शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे मुद्दे चुनाव से गायब हैं। चुनाव में जनता को दिलचस्पी नहीं हैं। दबी जुबान में उनका कहना है कि जनता गुमराह होती है तो नेता उसका फायदा उठाते हैं। यह स्थिति लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। भाजपा छोड़ कर आप की विधायक बनी एक अन्य नेता ने कहा कि हमने दोनों पार्टियों में काम किया है। मुद्दे स्थानीय आधार वाले ही रंग लाते हैं, लेकिन वोटर का प्रोफाइल महत्त्वपूर्ण है। पॉश इलाकों में अभी भी केवल पार्क ही मुद्दा है। उन्होंने माना कि आप के दोनों मुद्दे ‘बिजली-पानी’ पर जनता को सचेत करना और ‘हाउस टैक्स’ माफ करना पूरी तरह सफल रहे हैं। उन्होंने खुलासा किया कि अगली रणनीति भी बन चुकी है। निगम स्कूल व शिक्षा में सुधार का मुद्दा आप का अगला तुरुप का पत्ता होगा। आप आने वाले दो दिनों में हवा का रुख एक बार फिर बदल देगी।
