कोलकाता। Lok Sabha Election 2019 के सातवें और अंतिम चरण में बंगाल की जिन 9 सीटों पर मतदान होना है, उनमें से 3 सीटें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए बेहद खास हैं। कोलकाता से दक्षिणी हिस्से में तीन सीटों से मुख्यमंत्री का सीधा सरोकार है। ये तीनों सीटें अभी तृणमूल कांग्रेस (तृणमूल) के हिस्से में हैं। इनमें से एक भी सीट उनकी झोली से खिसकती है, तो ममता बनर्जी की इमेज और वोट बैंक पर सीधा असर पड़ेगा। ये सीटें डायमंड हार्बर, मथुरापुर एवं जयनगर हैं। इन तीनों सीटों को ममता ने लेफ्ट से छीना है। यहां पर पार्टी का जनाधार लगातार बढ़ा है। इन सीटों के परिणाम पार्टी के आंतरिक ताने-बाने और पश्चिम बंगाल की राजनीति पर असर डाल सकते हैं।
डायमंड हार्बर: डायमंड हार्बर सीट से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का सीधा सरोकार है। इस सीट पर ममता बनर्जी के भतीजे एवं निवर्तमान सांसद अभिषेक बनर्जी चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट पर उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। कभी लेफ्ट का गढ़ माने जानेवाली इस सीट पर वर्ष 2009 में तृणमूल ने कब्जा जमा लिया था। उस समय तृणमूल में रहे कांग्रेस के कद्दावर नेता सोमेन मित्रा ने चार बार सांसद रह चुके लेफ्ट के शमिक लाहिड़ी को करारी शिकस्त देकर इस सीट को तृणमूल के कब्जे में कर लिया। हालांकि, मित्रा ने तृणमूल कांग्रेस छोड़ दी और 2014 में कांग्रेस में शामिल हो गये। अब वह प्रदेश इकाई के अध्यक्ष हैं। अभिषेक बनर्जी को राजनीति में प्रवेश किए अभी तीन साल ही हुए थे कि ममता ने उन्हें 2014 में इस सीट से टिकट दे दिया। उन्होंने 40 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल कर जीत दर्ज की। पार्टी में उनका कदम लगातार बढ़ता जा रहा है। उन्हें ममता के बाद नंबर दो पर माना जा रहा है। उन्हें पार्टी का युवराज भी कहा जा सकता है। यही कारण है कि पार्टी के कई नेता भी खफा-खफा रहते हैं। तृणमूल को खड़ा करने में चाणक्य की भूमिका निभानेवाले मुकुल राय भी इन्हीं में से एक हैं। उन्होंने 2017 में पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया। डायमंड हार्बर में उन्हें भाजपा से कड़ी टक्कर मिल रही है। इसके साथ ही पार्टी यहां पर आंतकरिक कलह का भी शिकार है। अभिषेक भले ही जीत जाएं पर जीत का अंतर एक बड़ा सिरदर्द हो सकती है। यह भी बता दें कि चुनाव आयोग ने यहां के एसडीपीओ मिथुन कुमार दे को दो दिन पहल हटा दिया था।
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यह है डायमंड हार्बर संसदीय क्षेत्र का समीकरण: इस संसदीय क्षेत्र की आबादी 22 लाख, 21 हजार, 470 है, जिसमें 49.07 फीसदी लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं तथा 50.93 फीसदी जनता शहरी है। 2017 की मतगणना सूची के मुताबिक 16 लाख, 54 हजार, 351 वोटर्स हैं। वर्ष 2014 के चुनाव में यहां 81.07% मतदान हुआ था, जबकि 2009 के चुनावों में यह आंकड़ा 80.94% था। डायमंड हार्बर के अंतर्गत 7 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें- फालटा, सतगछिया, बिष्णुपुर, महेशतला, बज बज, मेटियाब्रुज और डायमंड हार्बर शामिल हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में तृणमूल को 40.31%, बीजेपी को मात्र 15.92% और लेफ्ट को 34.66% वोट मिला था। यहां सीपीएम ने डॉ. फुआद हलीम को टिकट दिया है। बीजेपी की तरफ से नीलांजन रॉय चुनाव मैदान में हैं। कांग्रेस ने यहां से सौम्या रॉय को टिकट दिया है। सीपीएम यहां एकबार फिर वापसी की तैयारी में है। डॉ. फुआद हलीम लेफ्ट के साथ आम लोगों के भी पसंदीदा है। ऐसे में कड़ी टक्कर मिलने की संभावना है। उधर बीजेपी भी अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस सीट पर जीत का विश्वास जताया है। इस बार तृणमूल की आपसी फूट यहां विलेन बन सकती है। दूसरी ओर, यहां पर लेफ्ट का पहले से वोट बैंक है, बीजेपी ने भी जोरदार तैयारी की है और कुछ वोट कांग्रेस के पाले में गया, तो अभिषेक बनर्जी के लिए इस सीट से जीत आसान नहीं होगी।
मथुरापुर: कोलकाता से दक्षिण में दूसरी सीट मथुरापुर है। इस सीट पर हमेशा से लेफ्ट का कब्जा रहा है। वर्ष 2009 में विपक्ष में रहते हुए भी ममता बनर्जी का जनाधार काफी बढ़ गया था। वह लेफ्ट को लगातार मात दे रही थीं। हर ओर उनकी हवा थी। बदलते राजनीतिक समीकरण में 2009 के चुनाव में इस सीट पर तृणमूल ने जीत हासिल की। तृणमूल के चौधरी मोहन जटुआ इस सीट से सांसद चुने गए। उसके बाद से लेकर अब तक इस सीट पर तृणमूल का कब्जा है। इस बार तृणमूल ने चौधरी मोहन जटुआ पर एक बार फिर भरोसा जताया है। सीपीएम ने इस सीट से डॉ. शरत चंद्र हल्दर को उतारा है। बीजेपी ने इस सीट से श्यामा प्रसाद हल्दर को टिकट दिया है। कांग्रेस की तरफ से कीर्तिबास सरदार ताल ठोंक रहे हैं। बता दें कि प्रसिद्ध गंगासागर तीर्थ क्षेत्र भी इसी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। दक्षिण 24 परगना जिले में स्थित मथुरापुर लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है।
लेफ्ट का गढ़ थी यह सीट: इस संसदीय क्षेत्र में किसानों की आबादी सबसे ज्यादा है। ज्यादातर लोग गांवों में रहते हैं। किसानों के मुद्दों को उठाकर ही लेफ्ट ने यहां लम्बे अर्से तक राज किया था। वर्ष 2014 के चुनाव में तृणमूल के जटुआ ने इस सीट से सीपीएम के रिंकू नस्कर को शिकस्त दी थी। बीजेपी इस सीट पर तीसरे स्थान पर रही थी। चौधरी मोहन जटुआ ने 6 लाख 27 हजार 761 वोट हासिल किए थे, वहीं सीपीएम के रिंकू नस्कर को 4 लाख 89 हजार 325 वोट मिले थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल को 49.58%, बीजेपी को सिर्फ 5.21% और लेफ्ट को 38.67% वोट मिला था। इस लोकसभा सीट में काकद्वीप, सागर, कुलपी समेत 7 विधानसभा सीटें आती हैं। यहां के अहम मुद्दों में सागर में मूड़ी गंगा पर सेतु का निर्माण है। हर साल मकर संक्रांति पर गंगासागर जाने वाले लाखों तीर्थयात्रियों को सेतु न होने की वजह से मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कुलपी में बंदरगाह का निर्माण भी बड़ा मुद्दा है। इसके निर्माण की पहल शुरू हुई है, जिसका श्रेय तृणमूल लेने में लगी है।
पीएम मोदी ने दी है चुनौती: मथुरापुर सीट पर एक बार फिर लेफ्ट कब्जा जमाने के लिए अमादा है। बीजेपी ने यहां पर जोरदार प्रचार किया है। उसे उम्मीद है कि उसका वोट बैंक यहां बढ़ेगा। प्रचार के अंतिम दिन मोदी ने यहां तृणमूल पर जमकर निशाना साधा था। उन्होंने कहा था, दीदी आपको पीएम पद के सपने देखने की पूरी आजादी है, लेकिन हमारे सुरक्षाबलों, उनके खिलाफ गुंडों का इस्तेमाल करने से आपकी विश्वसनीयता पर सवाल उठ चुका है। दीदी सुन लो यह पश्चिम बंगाल आपकी और आपके भतीजे की जागीर नहीं है। इधर, सीपीएम ने भी यहां जोरदार प्रचार किया है। वह यहां वापसी की तैयारी में है और डॉ. शरत चंद्र हल्दर से सहारे चुनावी वैतरणी पार करने में लगी है। लेफ्ट के गढ़ में बीजेपी के बढ़ते जनाधार के बीच तृणमूल कांग्रेस के जटुआ के लिए फिर से जीत हासिल कर टेढ़ी खीर होगी।
जयनगर: तीसरी सीट जयनगर की है। यह सीट भी लेफ्ट के कब्जे में थी। यह ममता बनर्जी का ही मैजिक था कि लेफ्ट की खाटी सीट भी उनके पाले में चली गई। कहना न होगा कि उन्हें इस सीट को लेफ्ट के मुंह से छीन लिया था। जीत अंतराल भी ज्यादा नहीं था। ममता बनर्जी को जिन सीटों पर जीत का पक्का भरोसा है, उनमें दक्षिण की यह सीट भी है। इसके लिए उन्होंने यहां पर जमकर प्रचार किया था। हालांकि, लेफ्ट के इस पुराने गढ़ में फिर से सेंध लगाना इतना आसान नहीं है। जयनगर लोकसभा सीट पर वर्ष 1980, 1984, 1989, 1991,1996,1998,1999 और 2004 तक रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) का कब्जा रहा। वर्ष 2009 के चुनाव तक ममता का जनाधार बढ़ने के बावजूद लेफ्ट की सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (कम्युनिस्ट) ने फिर वापसी की और उसके उम्मीदवार डॉ. तरुण मंडल सांसद चुने गए। पर, 2014 के चुनाव में बंगाल में ममता का सिक्का चला और उन्होंने राज्य में जो 34 सीटें जीतीं, उनमें एक सीट यह भी रही। तृणमूल ने यहां पहली बार जीत हासिल की और प्रतिमा मंडल सांसद चुनी गईं। इस बार तृणमूल ने एक बार फिर प्रतिमा मंडल को चुनाव मैदान में उतारा है। इस सीट पर रेवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी का दबदबा रहा है और यही कारण है कि इस बार आरएसपी से सुभाष नस्कर उम्मीदवार हैं। इसके साथ ही सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (एसयूसीआई) ने जय कृष्णा हलदर को टिकट दिया है। बीजेपी ने अशोक कंडारी को चुनावी मैदान में उतारा है।
क्या कहता है जयनगर का समीकरण: इस लोकसभा सीट के अंतर्गत कुल 7 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें 2 को छोड़कर बाकी सब सुरक्षित सीट है। इनमें संदेशखाली (सुरक्षित), गोसाबा (सुरक्षित), बासंती (सुरक्षित), कुलतली (सुरक्षित), जयनगर, कैनिंग पश्चिम (सुरक्षित) और कैनिंग पूर्व विधानसभा सीटें शामिल हैं। इस संसदीय क्षेत्र की कुल आबादी 2239168 है जिनमें 86.07% लोग गांवों में रहते हैं जबकि 13.93% शहरी हैं। इनमें अनुसूचित जाति और जनजाति का अनुपात क्रमशः 38.14 और 3.21 फीसदी है। वर्ष 2017 की मतदाता सूची के मुताबिक जयनगर लोकसभा क्षेत्र में 1569578 मतदाता है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल को 41.47%, बीजेपी को सिर्फ 9.54% और लेफ्ट को 32.58% वोट मिला था। इस सीट पर आरएसपी और एसयूसीआई दोनों पार्टियां जीत के लिए ताल ठोंक रही हैं। उनका पहले ही यहां पर जनाधार है। ऐसे में यहां लेफ्ट का गढ़ एकबार फिर मजबूत होता नजर आ रहा है। इधर, मोदीराज में बीजेपी का उत्साह बढ़ा हुआ है और वह राज्य में जड़ मजबूत करना चाहती है। इस लिहाज से तृणमूल कांग्रेस के लिए अपनी सीटों को बचाए रखना बड़ी चुनौती होगी। (कोलकाता से बिपिन की रिपोर्ट)