मध्य प्रदेश का रण साल के आखिर में होने जा रहा है। हर चुनाव की तरह यहां भी जातियों का बोलबोला है, धर्म का एंगल है और जुबानी जंग भी तेज चल रही है। लेकिन जातियों से ऊपर, धर्म से इतर एक ऐसा वोटबैंक भी है जो निर्णायक भी रहता है और किसी को भी सत्ता में ला सकता है। ये वोटबैंक मध्य प्रदेश की महिलाओं का है। उन महिलाओं का जिनका समाज में तो पूरा योगदान है ही, पिछले कुछ सालों में राज्य की राजनीति में भी काफी असर देखने को मिला है।
महिला वोटों की बढ़ती संख्या, कई सीटों पर निर्णायक
अब मध्य प्रदेश में महिलाओं की भागीदारी ज्यादा इसलिए भी हो गई है क्योंकि पुरुषों की तुलना में वोटिंग के मामले में भी वे ज्यादा आगे दिखाई पड़ रही हैं। एक आंकड़ा बताता है कि एमपी में इस बार कुल 15 लाख पहली बार वोट डालने वाले लोग हैं, यानी कि फर्स्ट टाइम वोटर। यहां भी महिलाओं की संख्या 7 लाख से ज्यादा बताई जा रही है। अब ये सात लाख महिलाएं अपना वोट किस तरह से करने वाली हैं, इस पर सभी पार्टियों की नजर है। यहां ये समझना भी जरूरी है कि राज्य में कुल 5.39 करोड़ मतदाता हैं, वहां भी 48.20 फीसदी महिलाएं हैं। राज्य की कुल 50 ऐसी सीटे हैं जहां वर्तमान में पुरुषों की तुलना में महिला वोटर ज्यादा हैं। इसमें 18 आरक्षित सीटों को भी शामिल किया गया है।
किन सीटों पर महिला वोट पर निर्भर जीत?
एक आंकड़ा ये भी बताता है कि राज्य में आदिवासी बहुल सीटों पर महिला वोटर्स ज्यादा सक्रिय हैं। वो पुरुषों की तुलना में ज्यादा वोट कर रही हैं। ऐसी 15 विधानसभा सीटें मौजूद हैं जहां पर महिलाएं ही किंगमेकर की भूमिका निभा रही हैं। जिस प्रत्याशी को उनका वोट मिल जाएगा, वहां पर उसकी जीत सुनिश्चित मानी जाएगी। अब महिलाओं की इसी अहमियत को सभी पार्टियों ने बखूबी समझ लिया है। एक तरफ ‘मामा’ वाली छवि के साथ शिवराज सिंह चौहान महिला वोटरों के बीच खुद को लोकप्रिय बनाए रखने की कोशिश में लगे हैं तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस की तरफ से भी कर्नाटक की तर्ज पर महिलाओं के लिए अलग से घोषणा पत्र लाने की तैयारी की जा रही है। यानी कि जिसको भी सत्ता में आना है, उसे महिला मतदाताओं को अपने पाले में लाना पड़ेगा।
जानकारी के लिए बता दें कि मध्य प्रदेश की वारासिवनी, बरघाट, पानसेमल, अलीराजपुर, जोबट, झाबुआ, बालाघाट, सरदारपुर थांदला, पेटलावद, कुक्षी, सैलाना, डिंडोरी, विदिशा, देवास, मंडला, बैहर, परसवाड़ा सीट ऐसी हैं जहां पर महिलाओं की संख्या निर्णायक भूमिका में हैं। इन सीटों पर अगर जीत चाहिए तो महिला वोटर को लुभाना जरूरी रहना वाला है।
बीजेपी का महिलाओं को लुभाने का प्लान
अब इसी कवायद में दोनों बीजेपी और कांग्रेस ने अपनी-अपनी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। बीजेपी को इस बार जिस एंटी इनकमबैंसी का सामना करना है, उससे बाहर निकलने का रास्ता भी ये महिला वोटर ही बताई जा रही हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को जो मामा नाम दिया गया है, वो अपने आप में ही महिला वोटरों के बीच में सीएम को लेकर एक समर्थन है। ऐसे में बीजेपी एक बार फिर चुनावी मौसम में उस छवि को भुनाना चाहती है। इसी कड़ी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लाडली बहना योजना की शुरुआत की है। इस योजना के तहत महिलाओं को हर महीना 1000 रुपये दिया जा रहा है।
इसके अलावा शिवराज सरकार ने महिला कर्मचारियों के लिए 7 दिन के अतिरिक्त आकस्मिक अवकाश का भी ऐलान किया है। इसी कड़ी में सामूहिक बलात्कार और नाबालिगों के साथ हैवानियत करने वालों लिए फांसी की सजा का भी प्रावधान किया गया है। एक और बड़े ऐलान के तहत 12वीं फर्स्ट क्लास से पास होने वाली छात्राओं को ई स्कूटी देने की बात हुई है।
कांग्रेस का सस्ते सिलेंडर का सपना
अब बीजेपी के ये प्रयास ही बताने के लिए काफी हैं कि वो 48 फीसदी महिला मतदाता को किसी भी कीमत पर अपने पास रखना चाहती है। अब बीजेपी को इस प्रयास में सीधी चुनौती कांग्रेस से मिल रही है। मध्य प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहां पर मुकाबला भी समान योजनाओं के सहारे ही एक दूसरे से किया जाता है।
इसे ऐसे समझ सकते हैं कि बीजेपी ने अगर महिलाओं को 1000 रुपये प्रति महीना देने की बात कही है तो कांग्रेस ने 1500 महीना देने का ऐलान किया है। दो कदम आगे बढ़कर ये भी दावा हुआ है कि ‘नारी सम्मान योजना’ के तहत 18 से 60 साल तक की महिलाओं को 1000 रुपये प्रति महीना दिया जाएगा। इसके अलावा एलपीजी सिलेंडर का दाम 500 रुपये तक लाने का वादा भी कर दिया गया है। अब दोनों बीजेपी और कांग्रेस का महिला वोटरों के प्रति ये रुझान होना स्वभाविक है। 2018 का जो विधानसभा चुनाव था, वो काफी काटे की टक्कर वाला रहा। उस चुनाव में एक तरफ बीजेपी को 41.02% वोट मिला तो वहीं कांग्रेस भी 40.89% वोट लेकर आई।
पिछले चुनाव में महिलाओं ने किसको वोट दिया?
अब उस चुनाव का एक पहलू ये भी रहा कि राज्य की जो 51 सीटें थीं, वहां पर महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में ज्यादा वोटिंग की और ऐसी कुल 80 फीसदी सीटों पर बीजेपी की जीत हुई। यानी कि अगर पार्टी थोड़ी मेहनत और कर लेती तो एक बार फिर सत्ता भी उसी के हाथ में आती। अब बीजेपी ने अपनी उस कमजोरी को इस बार समझ लिया है, इसी वजह से महिला वोटरों को एकमुश्त कर अपने पाले में लाने की कोशिश है। वैसे बीजेपी के साथ प्लस प्वाइंट ये भी जा सकता है कि उसने महिलाओं को एक तरह से अपना लाभार्थी वोटबैंक बना लिया है।
लाभार्थी वोटबैंक और बीजेपी की रणनीति
असल में पिछले साल हुए उत्तर प्रदेश चुनाव में बीजेपी की बंपर जीत हुई थी। तब कहा गया था कि जो गैस सिलेंडर दिए गए, जिस तरह से मुफ्त में राशन मिला, उसने महिलाओं को बीजेपी की तरफ आकर्षित किया और तभी इस लाभार्थी वोटबैंक का पहली बार जिक्र हुआ। अब उसके बाद कई राज्यों में ऐसा देखने को मिल गया है, मध्य प्रदेश में भी बीजेपी उसी फैक्टर पर खेलने की तैयारी कर रही है। एक आंकड़ा बताता है कि वर्तमान में शिवराज सरकार की योजनाओं का लाभ कम से कम 40 लाख से अधिक महिलाएं ले रही हैं, यानी कि ये वो लाभार्थी हैं जो चुनावी मौसम में पार्टी के लिए बूस्टर साबित हो सकती हैं। कांग्रेस के सामने यहीं चुनौती भी है, उसकी तरफ से महिलाओं के लिए ऐलान जरूर किए जा रहे हैं, लेकिन क्योंकि बीजेपी के पास मामा शिवराज का साथ है, ऐसे में उन्हें लुभाना कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है।
महिला वोट चाहिए, लेकिन राजनीति में हिस्सेदारी कितनी?
वैसे इस बार आम आदमी पार्टी भी चुनावी मैदान में है, ऐसे में वो भी कोशिश करेगी कि महिला वोटबैंक में सेंधमारी की जाए। दिल्ली मॉडल के दम पर पार्टी भी अपने वादों को बेचने का काम करने जा रही है। अब इस पूरे ताम-झाम में पार्टियां महिला वोट तो अपने पास चाहती हैं, लेकिन कितनी महिलाओं को उनकी तरफ से प्रतिनिधित्व दिया गया, ये एक गंभीर सवाल है क्योंकि जितने भी आंकड़े मध्य प्रदेश के सामने आए हैं, वो अलग ही कहानी बयां करते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान कहने के लिए कुल 250 महिला उम्मीदवार थीं, लेकिन उसमें बीजेपी ने 23 तो कांग्रेस ने केवल 28 प्रत्याशियों को खड़ा किया था। इसके अलावा जब संगठन की बात आती है तो वहां भी महिलाओं को कोई तवज्जो नहीं दी जा रही। एक तरफ बीजेपी की प्रदेश कार्यसमिति 497 सदस्यों में से सिर्फ 52 महिलाएं हैं तो वहीं कांग्रेस में ये आंकड़ा कोई उत्साह बढ़ाने वाला नहीं है।