कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी दो लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं। राहुल गांधी केरल की वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ रहे हैं तो वहीं उन्होंने रायबरेली लोकसभा सीट से भी नामांकन दाखिल कर दिया है। इससे पहले रायबरेली से सोनिया गांधी चुनाव लड़ा करती थीं लेकिन अब वह राज्यसभा सांसद हैं। रायबरेली गांधी परिवार का गढ़ रहा है और यहां से कांग्रेस के किले को भेद पाना किसी के लिए आसान नहीं रहा है।

1999 के लोकसभा चुनाव से ही यहां पर कांग्रेस लगातार जीत रही है। सोनिया गांधी खुद पिछले पांच लोकसभा चुनाव यहां से जीत चुकी है। 2019 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से राहुल गांधी को हार का सामना करना पड़ा था और इसके बाद वह अब रायबरेली से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। रायबरेली कांग्रेस के लिए सेफ सीट मानी जाती है लेकिन पिछले 5 सालों में समीकरण काफी बदल चुके हैं। इस बार राहुल गांधी के लिए रायबरेली की पिच आसान नहीं रहने वाली है।

रायबरेली में लगातार घट रहा कांग्रेस का वोट

पिछले तीन लोकसभा चुनाव से रायबरेली से कांग्रेस का वोट प्रतिशत 17 फ़ीसदी तक घट गया है। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार सोनिया गांधी को यहां पर 72 फीसदी वोट मिला था और बड़े अंतर से उन्होंने जीत हासिल की थी तो 2014 के मोदी लहर में सोनिया गांधी को 63.80 फ़ीसदी वोट मिले थे।

2019 के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी चुनाव तो 1,67,000 वोटों के अंतर से जीत गईं लेकिन उनका वोट फीसदी 55.80 फीसदी हो गया। इसमें पिछले लोकसभा चुनाव से करीब 8 फीसदी की गिरावट थी।

सोनिया गांधी का वोट प्रतिशत तो गिरता रहा तो वहीं बीजेपी का वोट प्रतिशत पिछले तीन चुनाव से लगातार बढ़ता रहा है। 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को रायबरेली की सीट पर 3.82 फीसदी वोट मिले थे तो वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट प्रतिशत यहां पर 21.05 फीसदी हो गया। वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार दिनेश प्रताप सिंह को 38.36 फीसदी वोट मिले थे। बीजेपी ने इस बार फिर से दिनेश प्रताप सिंह को ही उम्मीदवार बनाया है।

पिछले पांच सालों से बदला समीकरण

रायबरेली लोकसभा के अंदर पांच विधानसभा सीट आती हैं। इनमें बछरावां, हरचंदपुर रायबरेली, सरेनी और ऊंचाहार शामिल है। 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को चार सीट तो वहीं बीजेपी को एक सीट पर जीत मिली थी। अहम बात यह है कि रायबरेली में 2019 से 2024 के बीच में दो बड़े बदलाव हुए हैं। रायबरेली सदर से विधायक अदिति सिंह अब बीजेपी में हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में वह कांग्रेस में थी और उसका फायदा पार्टी को मिला था। तो ही ऊंचाहार से सपा विधायक मनोज पांडे भी पार्टी से बगावत कर चुके हैं। उन्होंने बीजेपी तो नहीं ज्वाइन की है लेकिन राज्यसभा चुनाव में बीजेपी के पक्ष मतदान किया था और वह सपा से नाराज चल रहे हैं। मनोज पांडे बीजेपी उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार भी कर सकते हैं। यह दोनों ही नेता रायबरेली के काफी कद्दावर नेता हैं और अपने दम पर वोटों को आकर्षित कर सकते हैं।

अदिति सिंह को नहीं कर सकते हैं नजरंदाज

अदिति सिंह 2017 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुनी गई थीं। वह 2022 में बीजेपी के टिकट पर विधायक चुनी गई। इससे पहले रायबरेली सदर से लगातार पांच बार उनके पिता अखिलेश प्रताप सिंह भी विधायक चुने जा चुके हैं। 2007 के चुनाव में वह निर्दलीय जबकि 2012 के विधानसभा चुनाव में पीस पार्टी के टिकट पर अखिलेश प्रताप सिंह विधायक चुने गए थे। सबसे अहम बात यह है कि अखिलेश प्रताप सिंह का दबदबा इतना था कि उन्हें हमेशा अपने विपक्षी उम्मीदवारों पर बड़ी बढ़त हासिल होती थी। वही स्थिति अदिति सिंह की भी है। ऐसे में अदिति सिंह का बीजेपी में शामिल होना, कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है और इस लोकसभा चुनाव में इसका असर भी दिख सकता है।

मनोज पांडे भी क्षेत्र के बड़े नेता

मनोज पांडे ऊंचाहार विधानसभा सीट से सपा के टिकट पर तीन बार से लगातार विधायक निर्वाचित हो रहे हैं। राज्यसभा चुनाव में इन्होंने सपा से बगावत कर भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में वोटिंग की। माना जा रहा है कि वह अपने क्षेत्र में बीजेपी को समर्थन कर सकते हैं। ऐसे में मनोज पांडे का भी सपा को झटका देना बीजेपी के लिए अच्छा साबित हो सकता है। सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन है। रायबरेली में मनोज पांडे के बगावत से कांग्रेस को मुसीबत हो सकती है। बता दें कि पहले भी रायबरेली और अमेठी से सपा उम्मीदवार नहीं उतरती थी और गांधी परिवार का समर्थन करती थी।