लोकसभा का चुनाव करीब है, वादों की झड़ी लगनी शुरू हो चुकी है, बीजेपी के अपने टारगेट सेट हैं, कांग्रेस की अपनी उम्मीदें परवान चढ़ने की कोशिश कर रही हैं। इस समय सियासत में दो ही रणनीतियों की जोर दिख रहा है, पहली है मोदी की गारंटी जहां पर एक चेहरे के सहारे एंटी इनकमबैंसी को भी मात देनी है और विकास की प्रतिबद्धता भी दिखानी है। दूसरी रणनीति है रोटी-कपड़ा और मकान वाली पॉलिटिक्स की जहां पर जमीनी मुद्दों पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसी रोटी-कपड़ा-मकान वाली पॉलिटिक्स पर आगे बढ़ने का फैसला किया है। देश में रोजगार की समस्या काफी पुरानी है, आजादी के बाद से ही जितनी भी सरकारें बनी हैं, सभी ने युवाओं को सुनहरा सपना दिखाया है- रोजगार देने का, देश के भविष्य को संवारने का। लेकिन इस सपने को हकीकत का अमलीजामा कम बार ही पहनाया गया है। अब 2024 के लोकसभा चुनाव में इसी सपने को पूरा करने के लिए अधिकार वाला दांव चला गया है।
कांग्रेस का जो मेनिफेस्टो आने वाला है, उसमें देश की सबसे पुरानी पार्टी रोजगार की गारंटी का ऐलान कर सकती है। गारंटी शब्द पर फोकस करना जरूरी है क्योंकि वादे कोई भी कर सकता है, आंकड़ों की बाजीगिरी में तो सभी माहिर रहते हैं, लेकिन अगर उसे अधिकार की चादर उड़ा दी जाए तो सबकुछ जमीन पर बदल जाएगा। सरकार पर एक बाध्यता आ जाएगी कि उसे नौकरी देनी ही पड़ेगी। ये नहीं भूलना चाहिए कि यूपीए की ही सरकार ने सूचना का अधिकार दिया था, फूड सिक्योरिटी एक्ट भी कांग्रेस ही लेकर आई थी।
ये दोनों ही फैसले जमीन से जुड़े हुए थे, रोटी-कपड़ा-मकान वाली पॉलिटिक्स का अहम हिस्सा रहे। अब जब कांग्रेस खुद को फिर खड़ा करने की कोशिश कर रही है, उसका पूरा प्रयास है कि जनता के उन्हीं मुद्दों को उठाया जाए जो सही मायनों में उनके हैं, जिनका असर करोड़ों लोगों पर पड़ रहा है। ऐसा ही मुद्दा रोजगार का है जिसे मोदी सरकार नजरअंदाज नहीं कर सकती है। इसी वजह से राहुल गांधी ने भी इस मुद्दे को ही सबसे ज्यादा उठाने का फैसला किया है।
बड़ी बात ये है कि राहुल कोई अभी से इस मुद्दे पर फोकस नहीं जमा रहे हैं, बल्कि उनकी तरफ से कई महीने पहले ही इसकी तैयारी शुरू कर दी गई थी। ऐसे में रणनीति में एक समानता साफ दिखाई दे रही है। पिछले साल दिसंबर में जब संसद भवन में सुरक्षा चूक हुई थी, तब आरोपियों का बचाव करते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जोर देकर कहा था कि वे बेरोजगार नौजवान हैं जिन्हें नौकरी नहीं मिली। जिस समय हर कोई राष्ट्रीय सुरक्षा की बात कर रहा है, कांग्रेस नेता द्वारा दिमाग लगाते हुए मुद्दे को ही बदल दिया गया।
अब उसी कड़ी में राहुल गांधी ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान भी रोजगार के मुद्दे को ही सबसे ज्यादा तवज्जो दी है। उनकी तरफ से एक बयान में पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों से भी भारत की तुलना कर दी गई है। राहुल गांधी ने कहा कि
अब उसी कड़ी में राहुल गांधी ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान भी रोजगार के मुद्दे को ही सबसे ज्यादा तवज्जो दी है। उनकी तरफ से एक बयान में पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों से भी भारत की तुलना कर दी गई है। राहुल गांधी ने कहा कि देश में पिछले 40 साल में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है। पाकिस्तान की तुलना में भारत में बेरोजगारी दोगुनी है। भारत में बांग्लादेश और भूटान से भी ज्यादा बेरोजगार युवा हैं। अब बीजेपी जरूर सिर्फ पाकिस्तान वाले बयान पर फोकस करेगी और उसी के जरिए राहुल पर वार करेगी, लेकिन बड़े मुद्दे के तौर पर देखा जाए तो बेरोजगारी को लाइमलाइट में लाने का काम किया जा रहा है।
जो आंकड़े सामने हैं, वो साफ बताते हैं कि देश में एक बड़ी समस्या बेरोजगारी है। एक संस्थान है- Centre for Monitoring Indian Economy, उसके मुताबिक पिछले साल अक्टूबर तक देश में UNEMPLOYMENT RATE 10.5% थी, वहां भी ग्रामीण बेरोजगारी 10.82% रही और शहरी बेरोजगारी 8.44% रही। इसी संस्थान का एक और नंबर है जो विपक्ष के नेरेटिव को हवा देने का काम कर सकता है। भारत में बेरोजगार युवाओं की संख्या 5.3 करोड़ पहुंच चुकी है। हैरानी की बात ये है कि युवा हाथ-पैर मार रहा है, लेकिन नौकरी नहीं मिल रही। ये जो 5.3 करोड़ लोग हैं, इनमें से साढ़े तीन करोड़ के करीब ऐसे हैं जो नौकरी की तलाश कर रहे हैं।
अब यहां समझने वाली बात ये भी है कि ये नौकरी तलाश करने वाले ज्यादातर लोग युवा हैं, ये देश का वो वोटबैंक है जिसका वोट हर पार्टी को चाहिए। पीएम मोदी भी खुद को युवा पीढ़ी का हितेषी बताते हैं तो वहीं राहुल गांधी ने भी नौकरी की बात कर उनकी सही नब्स को पकड़ने की कोशिश की है। चुनाव आयोग का ही आंकड़ा बतता है कि देश में 66 प्रतिशत युवा वोटर है, वहीं 6 फीसदी इस बार नया वोटर भी रहने वाला है। अब बेरोजगारी की जिस समस्या का यहां जिक्र किया जा रहा है, उसका शिकार भी ये वोटबैंक ही है। ऐसे में राहुल गांधी का दांव मोदी की गारंटी पर भारी भी पड़ सकता है।
एक आंकड़ा तो ये भी बताता है कि 2014 से 2021-22 के बीच 22 करोड़ युवाओं ने केंद्र की नौकरी के लिए फॉर्म भरा था, उन्हें उम्मीद थी कि सरकारी नौकरी मिल जाएगी। लेकिन ये सपना सिर्फ एक फीसदी के करीब लोगों का ही पूरा हो पाया है, ऐसे में नाखुश और कम संतुष्ट वाला एक बड़ा वर्ग राहुल गांधी के लिए एक नया विकल्प बनकर तैयार हो सकता है। पूरी कोशिश की जा सकती है कि मोदी की गारंटी वाले नेरेटिव का तोड़ रोजगार की गारंटी से निकाल लिया जाए।