Lok Sabha Election 2019: 2019 के लोकसभा चुनाव का मिजाज 2014 के आम चुनावों से अलग है। न केवल जातीय और सामाजिक समीकरण बल्कि सियासी समीकरण भी 2014 के मुकाबले एकदम उलट से गए हैं। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश, जहां पिछली बार भाजपा की अगुवाई में एनडीए ने 80 में से 73 सीटें जीती थीं, वहां नए सामाजिक और सियासी समीकरण से भाजपा की मुश्किलें बढ़ गई हैं।

गाय संरक्षण के बीत करने वाली भाजपा के लिए गाय नई मुसीबत बनकर आई है। यहां के किसान गाय को लेकर भी परेशान हैं। राज्य के लगभग सभी जाति के किसान गाय पर राजनीति से न केवल खिन्न हैं बल्कि परेशान भी हैं। गाय पर राजनीति की वजह से कई मुस्लिमों को नौकरी और जान भी गंवानी पड़ी है, जबकि कई दलितों को अत्याचार सहना पड़ा है। गौकशी और गौतस्करी के आरोप में अल्पसंख्यकों और दलितों की पिटाई हो चुकी है। इससे उनके अंदर राज्य की भाजपा सरकार के खिलाफ गुस्सा है।

द इंडियन एक्सप्रेस में लिए अपने आलेख में सुरजीत एस भल्ला ने लिखा है, “अगर यूपी यात्रा से निकलने वाला किसी मुद्दे पर एकमत है, तो वह यह है कि वहां किसान संकट वास्तविक है। और दूसरी कि गाय की राजनीति ने किसानों और गैर-किसानों के बीच संकट को और गहरा कर दिया है। मुझे अभी तक इस नीति का बचाव करने वाले किसी भी व्यक्ति से समर्थन नहीं मिल सका है, चाहे वह भाजपा समर्थक ही क्यों न हो?”

भल्ला ने लिखा है कि उन्होंने किसी ऐसे पूर्व परिचित से मुलाकात नहीं कि जो आरएसएस से जुड़ा रहा हो क्योंकि उसके विचार गाय पर अलग हो सकते हैं। उन्होंने आगे लिखा है, “गरीब हिंदू किसान आहत है; मुसलमानों ने नौकरी खो दी है, और कुछ उदाहरणों में जान भी गंवाई है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी आहत है, फिर भी, कई हिंदू इस पागलपन का समर्थन करना जारी रखे हुए हैं।”

बता दें कि राज्य के किसान गोवंशी पशुओं की आवारगी का बड़े पैमाने पर शिकार हुए हैं। गायों की झुंड उनकी फसलें चट कर जा रही हैं लेकिन राज्य में गाय को लेकर इस कदर खौफ है कि कोई उसके खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा। किसानों का एक बड़ा समूह गौशालाओं की स्थिति से भी खफा है लेकिन उनका मानना है कि इसके लिए नरेंद्र मोदी का नहीं बल्कि योगी आदित्यनाथ की सरकार जिम्मेदार है।