देश में मौजूदा लोकसभा चुनाव भाजपा के लिए भले केंद्र में अपनी सरकार बचाने की लड़ाई हो, पश्चिम बंगाल में उसके लिए यह सेमीफाइनल मैच है। पांच चरणों में बंपर मतदान से गदगद भाजपा इस सेमीफाइनल मैच को जीत कर दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी से दो-दो हाथ करने की जमीन बना रही है। जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की धरती होने के बावजूद बंगाल में वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों तक भाजपा को राजनीतिक हलकों में कभी गंभीरता से नहीं लिया गया। उन चुनावों में पार्टी को दो सीटें और लगभग 17 फीसदी वोट मिले थे। उसके बाद लगभग हर चुनावों म और खास कर बीते साल हुए पंचायत चुनावों में पार्टी ने कांग्रेस और वाममोर्चा को हाशिए पर धकेलते हुए राज्य की राजनीति में दूसरे स्थान पर पहुंच गई है। हालांकि पहले नंबर पर रहने वाली तृणमूल कांग्रेस और उसके बीच अब भी फासला बहुत ज्यादा है। अब मौजूदा चुनाव में वह इसी फासले को पाटने का भरसक प्रयास कर रही है ताकि 2021 के चुनावों में वह तृणणूल को बराबरी की टक्कर दे सके।
पार्टी को उम्मीद है कि प्रतिष्ठान-विरोधी लहर और ममता बनर्जी की कथित तुष्टीकरण नीति अबकी उसे मजबूती से दूसरे स्थान पर बिठा देगी। माकपा और कांग्रेस की गुटबाजी और नेतृत्व की कमी ने भाजपा को मजबूती से उभरने में सहायता की है। भाजपा नेताओं का दावा है कि फिलहाल बंगाल में उसके 40 लाख से ज्यादा सदस्य हैं। हाल के वर्षों में पार्टी ने जंगलमहल के नाम से कुख्यात रहे आदिवासी-बहुल इलाकों के अलावा बांग्लादेश की सीमा से लगे इलाकों में अपने पांव मजबूती से जमाए हैं। भाजपा के प्रदेश नेताओं का दावा है कि अबकी चुनावों में कांग्रेस और वाममोर्चा के बीच तालमेल नहीं हो पाने का फायदा उसे मिलेगा और तृणणूल-विरोधी वोटों का विभाजन नहीं होगा। एक वरिष्ठ नेता दावा करते हैं कि उत्तर व दक्षिण बंगाल की कम से कम 15 सीटों पर मुकाबला बेहद नजदीकी है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राज्य की 42 में से कम से कम 23 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है और नेताओं का दावा है कि यह लक्ष्य आसानी से हासिल हो जाएगा। प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं कि राज्य का हिंदू तबका ममता बनर्जी से खुश नहीं है। अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण की ममता की नीति की वजह से वह खुद को उपेक्षित महसूस कर रहा है।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में दो सीटें जीतने के बाद पार्टी ने 2016 के विधानसभा चुनावों में तीन सीटें जीती थीं। उसके बाद बीते साल भारी हिंसा के बीच हुए पंचायत चुनावों में वह तृणमूल कांग्रेस की सबसे प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के तौर पर उभरी थी। दूसरी ओर, तृणणूल कांग्रेस भाजपा के दावों को भाव देने को तैयार नहीं है। पार्टी महासचिव पार्थ चटर्जी कहते हैं कि कांग्रेस व माकपा की सहायता से कुछ इलाकों में भाजपा को कुछ ज्यादा वोट भले मिल सकते हैं। लेकिन यहां ममता बनर्जी सरकार के सत्ता में रहने तक सांप्रदायिकता और धार्मिक आधार पर लोगों को विभाजित करने की उसकी कोशिशों बेनतीजा ही साबित होंगी।