कांग्रेस नेता राहुल गांधी केरल की वायनाड सीट से मैदान में हैं। यहां 26 अप्रैल को मतदान होना है। इस बार राहुल गांधी के लिए वायनाड का मुकाबला उतना आसान नज़र नहीं आ रहा जितना 2019 में था। वजह सिर्फ सीपीएम नेता एनी राजा की उम्मीदवारी नहीं है बल्कि वायनाड के स्थानीय मुद्दे भी कांग्रेस के लिए चुनौती बने हुए हैं।
सबसे बड़ा मुद्दा लोकसभा क्षेत्र में आने वाला जंगल है। आंकड़ों के मुताबिक वायनाड जिले का लगभग 36 प्रतिशत हिस्सा जंगल में आता है। जंगली जानवरों के हमलों से स्थानीय लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। एक किसान तो राहुल गांधी के इस मुद्दे को संसद में ना उठाने पर भी सवाल उठाते हैं और नाराजगी ज़ाहिर करते हैं।
केरल के Vadakkanad गांव में जंगली जानवरों का खतरा
वायनाड लोकसभा क्षेत्र के सुल्तान बाथरी शहर के पास वडक्कनाड गांव (Vadakkanad) की ओर जाने वाली सड़क पर लोग 6 बजे ही अपनी दुकान बंद कर लेते हैं। ऐसे ही एक दुकानदार जल्दी दुकान बंद करने की वजह पर बात करते हुए कहते हैं,”दुकान बंद करना अभी जल्दबाजी है, लेकिन इस रास्ते पर यात्रियों को जंगली जानवरों से लगातार खतरा रहता है। शाम ढलने के बाद लोग इस सड़क पर चलने से डरते हैं। इसलिए, दुकान खुली रखने का कोई मतलब नहीं है।” वायनाड में जंगली जानवरों का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। तीन साल से लोग जल्दी अपने घरों में सोने चले जाते हैं।
वडक्कनाड में रहने वाले गोपालन एक व्यापारी और समाचार पत्र एजेंट हैं। वह कहते हैं,“शाम 7 बजे के बाद जीवन जंगली जानवरों की दया पर निर्भर होता है। इसके बाद शायद ही लोग खरीदारी करने के लिए अपने घरों से बाहर निकलते हैं। गांव के बाहर काम करने वाले यह तय करते हैं कि वे अंधेरा बढ़ने से पहले घरों पर आ जाएं। बच्चे शाम में ट्यूशन नहीं जाते हैं।”
राहुल गांधी से नाराजगी
एक और किसान ने राहुल गांधी से अपनी नाराजगी ज़ाहिर करते हुए कहा– “हर कोई पूछ रहा है कि हमारे सांसद राहुल गांधी ने वायनाड में वन्यजीवों के हमलों को रोकने के लिए क्या किया है। क्या उन्होंने कभी इस मुद्दे को संसद में उठाया? वह फिर से जीत सकते हैं लेकिन वह इस मुद्दे पर हमें कोई भरोसा नहीं दे रहे।”
केरल के कई निर्वाचन क्षेत्रों में यह एक प्रमुख चुनावी मुद्दा माना जाता है। लेकिन वायनाड में स्थिति गंभीर दिख रही है, जहां इस साल अब तक जंगली हाथियों ने तीन लोगों को कुचल कर मार डाला है। एलडीएफ, कांग्रेस और भाजपा इस गंभीर संकट के लिए एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं, जिसने पहले ही कई किसान परिवारों को वन क्षेत्रों से लगी उनकी भूमि से विस्थापित कर दिया है।