देश के गृह मंत्री अमित शाह राजनीति के चाणक्य माने जाते हैं। पिछले चार दशक से राजनीति में सक्रिय चल रहे शाह ने बीजेपी को फर्श से अर्श तक पहुंचाने में कड़ी मेहनत की है। पीएम नरेंद्र मोदी से उनकी दोस्ती, दोनों की जोड़ी भी इस सियासत का एक अहम हिस्सा है। अमित शाह का जिक्र होगा तो मोदी का नाम आना जरूरी है, इसी तरह अगर पीएम मोदी की बात की जाएगी, तो बिना शाह के वो पूरी नहीं हो सकती। कई सालों से इन दोनों ही नेताओं ने साथ मिलकर बीजेपी की सियासी गाड़ी को तेज रफ्तार से आगे बढ़ाया है।
बात अगर अमित शाह की करें तो उनका जन्म 1964 को मुंबई में हुआ था। शाह के पिता अनिल चंद्र शाह पीवीसी पाइप का बड़ा बिजनेस चलाते थे और उनका व्यापार की दुनिया में अपना एक नाम था। अमित शाह ने गुजरात के मेहसाणा से अपनी स्कूलिंग पूरी की थी और बाद में अहमदाबाद जाकर बायोकेमिस्ट्री में पढ़ाई पूरी की। कुछ समय तक शाह ने अपने पिता के बिजनेस में भी हाथ बंटाया, लेकिन राजनीति में उनकी दिलचस्पी भी शुरुआत से ही देखने को मिली।
अमित शाह अपने कॉलेज के समय से संघ के साथ जुड़े रहे। कॉलेज के समय भी उन्होंने संघ की शाखाओं में जाने की परंपरा को जारी रखा और वहां पर उनकी सबसे पहले 1982 में मुलाकात नरेंद्र मोदी से भी हुई। उस समय मोदी भी कोई बहुत बड़े नेता नहीं बने थे, लेकिन संघ में युवाओं को जोड़ने का काम कर रहे थे। ऐसे में शाह से उनकी दोस्ती भी उसी वक्त हो गई थी। बाद में संघ से अलग होते हुए 1983 में अमित शाह ने एबीवीपी के साथ अपना सफर शुरू किया। बाद में बीजेपी युवा मोर्चा के साथ वे शामिल हुए और वार्ड सेक्रेटरी, तालुका सेक्रेटरी, स्टेट सेक्रेटरी से उपाध्यक्ष और महासचिव तक का सफर तय किया।
पूरा चुनावी शेड्यूल यहां जानिए
शाह की चुनाव प्रबंधन की ताकत का सबसे पहला नमूना 1991 में तब देखने को मिला जब बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने गांधीनगर सीट से चुनाव लड़ा। उस चुनाव के दौरान शाह की रणनीति ने आडवाणी की राह को काफी आसान कर दिया था। ऐसे करते-करते शाह राजनीति के दांव-पेच सीखते गए और फिर 1995 में बीजेपी की गुजरात में पहली बार सरकार भी बन गई। ग्रामीण इलाकों में उस समय कांग्रेस मजबूत मानी जाती थी, लेकिन शाह ने मोदी के साथ मिलकर गांवों में ही जनसंपर्क कार्यक्रम चलाया और बीजेपी ने पहली बार राज्य में सरकार बना डाली। इसके बाद कांग्रेस को कमजोर करने के लिए इस जोड़ी ने खेल समितियों से भी कांग्रेस को पूरी तरह बाहर कर दिया। फिर जब 2002 में पहली बार नरेंद्र मोदी सीएम बने, अमित शाह को सबसे अहम गृह विभाग सौंप दिया गया।
जब पीएम मोदी केंद्र की राजनीति में आए, तब शाह ने पूरा साथ देने का काम किया। पहले बीजेपी अध्यक्ष रहते हुए पार्टी को कई राज्यों में जीत दिलाई, इसके बाद 2019 में गृह मंत्री के रूप में भी कई बड़े फैसले लिए। बात चाहे 370 हटाने की हो या फिर सीएए कानून का पारित होना, शाह ने मुश्किल फैसलों के जरिए अपनी अलग पहचान बनाई। अब अमित शाह एक बार फिर गांधीनगर सीट से चुनाव लड़ने जा रहे हैं।
गुजरात बीजेपी का मजबूत गढ़ माना जाता है। वहां की गांधीनगर सीट पर 1989 से बीजेपी का कब्जा चल रहा है। एक बार फिर देश के गृह मंत्री अमित शाह इस सीट से ताल ठोकने जा रहे हैं। बड़ी बात ये है कि गांधीनगर वो सीट है जहां से अमित शाह को बीजेपी में किसी भी दूसरे प्रत्याशी से कोई चुनौती नहीं मिल रही है। तमाम रिपोर्ट और सर्वे में ये साफ था कि सबसे ज्यादा लोकप्रिय शाह चल रहे हैं। ऐसे में उनकी दावेदारी पक्की थी।
अगर 2019 के चुनाव परिणाम की बात करें तो अमित शाह ने 70 फ़ीसदी के करीब यहां वोट पाए थे, ये अपने आप में एक रिकॉर्ड है। उनके खाते में 8 लाख 94 हजार वोट पड़े थे। वहीं कांग्रेस के उम्मीदवार चतुर सिंह जवानजी चावड़ा को मात्र तीन लाख के करीब वोट मिले। जानकारी के लिए बता दें कि गांधीनगर सीट पहले बीजेपी के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी के पास थी। लेकिन 2019 के चुनाव में इस सीट को अमित शाह को देने का फैसला लिया गया।
गांधीनगर सीट की बात करें तो सबसे पहले इस सीट पर शंकर सिंह वाघेला ने जीत दर्ज की थी। उसके बाद लालकृष्ण आडवाणी और फिर अटल बिहारी वाजपेयी ने भी यहां पर विजय का परचम लहराया। 1998 में आडवाणी ने फिर गांधीनगर सीट से ही जीत दर्ज की और उसके बाद 2019 तक वे सांसद रहे। बाद में अमित शाह ने उनकी जगह ली और रिकार्ड मतों से जीत हासिल की। गांधीनगर सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां पर वाघेला और पटेल समुदाय सबसे ज्यादा निर्णायक माना जाता है। ये दोनों ही पिछले कई सालों से बीजेपी के कोर वोटर बने हुए हैं।