कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार का थीम लगभग तैयार कर लिया है। आधा दर्जन एडवर्टाइजिंग एजेंसियों की पेशेवर सलाह पर पार्टी ने अच्छा-खासा पैसा खर्च किया। जो सुझाव मिले, वह पार्टी हाईकमान को पसंद नहीं आए। द इंडियन एक्सप्रेस में अपने कॉलम Inside Track में कूमी कपूर लिखती हैं कि कांग्रेस भी बीजेपी की तरह अपना चुनावी कैंपेन डिजाइन कर रही है। अप्रैल की शुरुआत में पार्टी प्रचार अभियान का पूरा खाका सामने रखेगी। इसे बनाने में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने महती भूमिका अदा की है। कांग्रेस उस नारे का प्रचार करेगी जिसमें कहा गया है कि पार्टी ‘मोदी के अन्याय’ को दूर कर ‘न्याय’ सुनिश्चित करेगी।
134 साल पुरानी पार्टी ने हफ्ते भर की मशक्कत के बाद चार आईटी फर्मों को 2019 लोकसभा चुनाव की लड़ाई डिजिटल मोर्चे पर लड़ने का जिम्मा सौंपा है। सैम पित्रोदा और पवन खेड़ा की अगुवाई वाली एक संयोजन समिति इन एजेंसियों की निगरानी करेगी।
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दूसरी तरफ, अपने राजनैतिक सहयोगियों को एकजुट रखने में कांग्रेस के पसीने छूट रहे हैं। अपने कॉलम में कूमी कपूर ने जनता दल (सेक्युलर) महासचिव दानिश अली का उदाहरण दिया है। अली ने लोकसभा चुनाव के लिए कर्नाटक में कांग्रेस संग सीट बंटवारे पर समझौता कराया। कांग्रेसी नेताओं को फूल भेंट करने के पांच दिन बाद वह मायावती की बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए। सतीश चंद्र मिश्र ने अली को बसपा ज्वाइन कराई और उन्हें यूपी की अमरोहा सीट से लोकसभा टिकट भी मिल गया।
कर्नाटक सीएम एचडी कुमारस्वामी ने ट्वीट किया कि अली की इस बाजीगरी को उनका समर्थन है, जबकि कई महीने पहले उनकी कैबिनेट के इकलौते बसपा मंत्री पद छोड़ चुके थे। दानिश अली दिल्ली में दो दशकों से एचडी देवेगौड़ा के दूत बने हुए थे, वह इस बात से खफा थे कि उन्हें उनकी सेवाओं के लिए कभी राज्य सभा नहीं भेजा गया। कूमी कपूर का सवाल है कि क्या एक राजनेता दो दलों के प्रति वफादार हो सकता है? या फिर कुमारस्वामी चुनावों में बीजेपी के अच्छा प्रदर्शन करने पर कांग्रेस को झटका देने का मन बना चुके हैं?