Lok Sabha Election: भारत का संविधान औपचारिक रूप से नवंबर 1949 में स्वीकार किया गया था। इसे 26 जनवरी, 1950 को लागू किया। इसके बाद देश में चुनाव की प्रक्रिया शुरू की गई। लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के लिए पहला आम चुनाव साल 1952 में हुआ।

कांग्रेस ने 1952, 1957, 1962, 1967 और 1971 में हुए लोकसभा चुनावों में जीत हासिल की थी। पहले के तीन चुनावों के दौरान पंडित जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री बने। 1967 में हुए चौथे आम चुनाव में इंदिरा गांधी प्रधाममंत्री बनीं। साल 1969 में कांग्रेस पार्टी में विभाजन हुआ और इंदिरा गांधी को पार्टी से निकाल दिया गया।

1967 तक एक साथ होते थे लोकसभा और विधानसभा चुनाव

साल 1967 तक लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक ही समय पर होते थे। 1967 में कांग्रेस तमिलनाडु, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों में हार गई थी और सत्ता छोटी पार्टियों के हाथ में चली गई थी। हालांकि, छोटे दलों के नेतृत्व वाली गैर-कांग्रेसी राज्य सरकारें स्थिर नहीं थीं और कई राज्यों में मध्यावधि चुनाव कराने पड़े। परिणामस्वरूप, लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे।

1969 में कांग्रेस पार्टी के अंदर क्या हुआ था?

साल 1969 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में इंदिरा चाहती थीं कि वीवी गिरि को राष्ट्रपति बनना चाहिए पर पार्टी में सक्रिय सिंडिकेट ने नीलम संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था। तब इंदिरा गांधी ने बगावत कर दी और रेड्डी हार गए। मोरारजी देसाई को वित्त मंत्री पद से हटाने के बाद से ही सिंडिकेट के नेता इंदिरा से नाराज थे। रेड्डी की हार ने उन्हें और परेशान कर दिया। उन्हें लगता था कि अगर प्रधानमंत्री ही पार्टी के नेता को सपोर्ट नहीं करेंगी तो कौन करेगा।

ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव के पास आते ही अगर हम देश में हुए कुछ लोकसभा चुनाव की बात करें तो देश में लोकसभा चुनाव में एक सीट पर दो सांसद भी जीतते थे। यह चुनाव अपने आप में अनोखा था।

क्यों होती 1952 और 1957 में हुए लोकसभा चुनाव की चर्चा?

साल 1952 में 89 लोकसभा सीटों पर और साल 1957 के चुनाव में 90 सीटों पर दो-दो उम्मीदवार चुनाव जीते थे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि इन दोनों सीटों में से एक सीट सामान्य और दूसरी आरक्षित यानी एससी-एसटी वर्ग के लिए हुआ करती थी।

1947 में देश आजाद हुआ था, लेकिन पहली बार लोकसभा के चुनाव 1952 में कराए गए। चुनाव के बाद 17 अप्रैल 1952 को पहली लोकसभा का गठन किया गया और जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री बने। इस चुनाव में कुल लोकसभा सीटों की संख्या 489 थी, जिसमें कांग्रेस ने 364 सीटें जीती थीं। इस चुनाव में 89 लोकसभा सीट ऐसी थीं, जिनपर दो-दो सांसद जीते थे। यानी एक संसदीय सीट पर दो सांसद। हालांकि, साल 1962 में यह व्यवस्था समाप्त कर दी गई।

ऐसे चुनाव क्यों कराए जाते थे?

1952 में आरक्षित वर्ग को प्रतिनिधित्व देने के लिए एक सीट पर दो-दो सांसदों का फॉर्मूला अपनाया गया। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इन सीटों पर जनता को भी दो-दो वोट डालने का अधिकार था, लेकिन कोई वोटर अपने दोनों वोट एक ही प्रत्याशी को नहीं दे सकता था। वोटों की काउंटिंग के दौरान सामान्य वर्ग के जिस उम्मीदवार को सबसे अधिक मत प्राप्त होते थे। उसको विजयी घोषित किया जाता था। ठीक यही फॉर्मूला आरक्षित वर्ग के प्रत्याशी के लिए लागू होता था।

एक सीट और दो प्रतिनिधि के सिस्टम के दौरान ऐसा भी हुआ, जब थर्ड पोजिशन पर रहने वाले प्रत्याशी को विधायक चुना गया। बता दें, जब पंजाब की नवांशहर विधानसभा सीट पर चुनाव हुआ तो तीसरे नंबर पर रहने वाले बिशना राम को विधायक चुना गया। पहले नंबर पर गुरबचन सिंह नाम के प्रत्याशी को 20,593, दूसरे नंबर पर दलीप सिंह को 18,408 मत मिले। जबकि, बिशना राम को 17,858 मत प्राप्त हुए।

पहले नंबर पर रहे गुरबचन सिंह सामान्य वर्ग से आते थे, इसलिए उनको विधायक चुना गया। दूसरे नंबर पर रहने वाले दलीप सिंह भी सामान्य वर्ग से थे और एससी-एसटी वर्ग का भी विधायक चुनना था तो बिशना राम को विधायक चुना गया, लेकिन बाद में इस सिस्टम का बहुत विरोध हुआ।