भारत में होने वाले चुनावों को पारदर्शी बनाए रखने के लिए चुनाव आयोग वक्त-वक्त पर कई अहम कदम उठाता रहा है। ऐसे ही कदमों के तहत चुनाव आयोग ने चुनावों को दौरान होने वाले खर्च की सीमा तय की हुई है। हालांकि तय सीमा के बावजूद चुनावों में कहीं ज्यादा पैसा खर्च किया जाता है। बता दें कि भारतीय चुनाव आयोग ने चुनावों में खर्च के लिए एक कैंडिडेट के लिए अधिकतम 70 लाख रुपए की सीमा तय की हुई है। ऐसे में आधिकारिक रुप से कैंडिडेट चुनावों के दौरान सिर्फ 70 लाख रुपए तक का ही खर्च दिखाते हैं, लेकिन असल में कानून में एक ट्विस्ट की वजह से उम्मीदवार तय सीमा से कई गुना ज्यादा पैसा खर्च करते हैं।
80-90 हजार करोड़ खर्च होने का अनुमान!: रेडिफ.कॉम ने Our Damocracy नामक क्राउड फंडिंग और चुनाव कैंपेन चलाने वाले ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के आनंद मंगनाले और बिलाल जैदी के साथ बातचीत की। जिसमें दोनों ने खुलासा करते हुए बताया है कि साल 2019 के लोकसभा चुनावों में कुल मिलाकर 80,000 करोड़ से लेकर 90,000 करोड़ रुपए तक खर्च होने का अनुमान है। दरअसल इतनी बड़ी संख्या में चुनाव में खर्च होने की वजह ये है कि चुनाव आयोग ने उम्मीदवारों द्वारा खर्च किए जाने वाले पैसे की सीमा तो 70 लाख रुपए तय की हुई है, लेकिन राजनैतिक पार्टियां चुनाव प्रचार या उम्मीदवार को जिताने के लिए कितना पैसा खर्च कर सकती है, इसकी कोई सीमा तय नहीं की गई है। यही वजह है कि भारतीय चुनावों के दौरान राजनैतिक पार्टियां बड़ी संख्या में पैसा खर्च करती हैं।
2014 के चुनावों में भी हुआ था रिकॉर्ड खर्चः चुनावों में खर्च के हिसाब से साल 2014 में 16वीं लोकसभा के चुनाव भी काफी खर्चीले थे। एनडीटीवी की एक खबर के अनुसार, 2014 के लोकसभा चुनावों में सरकार, राजनैतिक पार्टियों और उम्मीदवारों द्वारा करीब 30,000 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। एनडीटीवी की यह खबर सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज की चुनावी खर्च पर तैयार की गई एक रिपोर्ट पर आधारित थी।