Lok Sabha Election 2019: महाराष्ट्र में भाजपा के साथ गठबंधन करने वाली शिवसेना पश्चिम बंगाल में अपनी ही सहयोगी को चुनौती देगी। पार्टी ने यहां अपने दम पर चुनाव मैदान में उतरने का फैसला किया है।

पार्टी ने यहां की 42 में 15 सीटों पर अपना उम्मीदवार खड़ा करने की घोषणा की है। पार्टी पश्चिम बंगाल में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ने जा रही है। पार्टी ने यहां सिर्फ हिंदू उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है।

शिवसेना पश्चिम बंगाल कोलकाता दक्षिण, जादवपुर, बशीरहाट, बारासात, दमदम, बैरकपुर, बांकुरा, पुरुलिया, बिशनुपुर, मेदिनीपुर, कांठी, मालदा नॉर्थ, बीरभूम, बोलपुर और मुर्शिदाबाद से अपने उम्मीदवार खड़े करेगी।

राज्य के भाजपा नेतृत्व पर प्रहार करते हुए शिवसेना के प्रदेश महासचिव अशोक सरकार ने कहा कि भाजपा यहां टीएमसी के दागी नेताओं को मैदान में उतार रही है। सरकार ने कहा कि टीएमसी के नेता जो भाजपा में शामिल हो रहे हैं उन लोगों पर सारदा और नारद केस में शामिल होने का आरोप है। सीबीआई इन लोगों से पूछताछ कर चुकी है।

शिवसेना नेता ने कहा कि भाजपा हिंदुत्व के मुद्दे पर सत्ता में आई है लेकिन अब वह उस एजेंडे से भटक गई है। उन्हें अब हिंदुओं की कोई चिंता नहीं है। हमारी लड़ाई बंगाल में हिंदुत्व को बचाने की है। इस लिए हम यहां भाजपा और टीएमसी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे।

साल 2016 में शिवसेना ने विधानसभा की 18 सीटों पर चुनाव लड़ा था। मोदी और ममता सरकार के कामकाज की तुलना पर शिवसेना नेता ने कहा कि टीएमसी सरकार ने कुछ अच्छा काम किया है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र में लेकिन मोदी सरकार सिर्फ प्रचार कर रही है। मैं समझता हूं मोदी भारत के सबसे खराब प्रधानमंत्री हैं।

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और टीएमसी प्रमुख के बीच रिश्तों में गर्माहट के बाद शिवसेना का पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ना काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। शिवसेना के यहां चुनाव मैदान में उतरने से हिंदू वोटों के बंटने का अनुमान है। इससे सीधे तौर पर ममता बनर्जी को फायदा मिलेगा।

साल 2017 में मुंबई में दोनों नेताओं की मुलाकात के बाद शिवसेना के मुखपत्र सामना ने ममता बनर्जी को ‘बाघिन’ कहा था जिसने पश्चिम बंगाल में सीपीएम के 25 साल लंबे शासनकाल का अंत किया।

इस तरह के अनुमानों को खारिज करते हुए अशोक सरकार ने कहा कि उद्धव ठाकरे ममता बनर्जी का सम्मान करते हैं जिन्होंने पश्चिम बंगाल में वाम शासन को खत्म किया था। वह लंबे समय तक सांसद रही हैं। स्वाभाविक है कि उनके कई राजनेताओं से संबंध होंगे लेकिन इसे विचारधारा से समझौते के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।

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