Lok Sabha Election 2019: संगमनगरी प्रयागराज (इलाहाबाद) से सटे फूलपुर संसदीय सीट का इतिहास गौरवशाली रहा है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने यहां से तीन बार चुनाव जीत दर्ज की थी। देश के पहले आम चुनाव 1952, 1957 और 1962 में लगातार नेहरू जी ने यहां से लोकसभा का चुनाव जीता था। उनके चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी उनकी बेटी इंदिरा गांधी के कंधों पर होती थी। नेहरू जी पूरे चुनाव के दौरान मात्र दो बार ही जनसभा को संबोधित करने आते थे। एक बार शहरी क्षेत्र में और दूसरी बार ग्रामीण क्षेत्र में लोगों को संबोधित किया करते थे जबकि इंदिरा उनके लिए डोर-टू-डोर कैम्पेनिंग करती थीं। इंदिरा तब रोजाना गलियों में भी चुनावी बैठकें किया करती थीं।
1952 के चुनावों में इंदिरा ने सिर्फ फूलपुर सीट पर चुनाव प्रचार किया था जबकि 1957 और 1962 के चुनावों में उन्होंने नेहरू जी के लिए फूलपुर और लाल बहादुर शास्त्री के लिए इलाहाबाद सीट पर भी चुनाव प्रचार किया था। 78 साल के श्याम कृष्ण पांडेय ने ‘द टेलिग्राफ’ को बताया कि चुनाव प्रचार के लिए इंदिरा गांधी दिल्ली से नेताओं की टीम लेकर आती थीं लेकिन वो चुनावी सभाओं और बैठकों में सुरक्षाकर्मियों को साथ नहीं रखती थीं। उनका मानना था कि ऐसा करने से लोग आसानी से उनसे घुल-मिलकर बातें शेयर करेंगे।
नेहरू के निधन के बाद 1964 में हुए उप चुनाव में इस सीट से विजयालक्ष्मी पंडित सांसद चुनी गईं। 1967 में उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी के जनेश्वर मिश्रा को हराया था, जिन्हें मुलायम सिंह यादव सम्मानपूर्वक छोटा लोहिया कहा करते थे। विजयालक्ष्मी पंडित के इस्तीफे के बाद 1969 के उप चुनाव में आखिरकार जनेश्वर मिश्रा इस सीट से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर जीते। 1971 में इस सीट से विश्वनाथ प्रताप सिंह कांग्रेस के टिकट पर जीते जो बाद में 1989 में देश के प्रधानमंत्री बने।
समाजवादी चिंतक और नेता राम मनोहर लोहिया ने 1962 में इसी फूलपुर सीट पर जवाहर लाल नेहरू को चुनौती दी थी लेकिन वो जीत नहीं सके थे। इस चुनाव में नेहरू, इंदिरा और राम मनोहर लोहिया के समाजवाद, लोकतंत्र और विकास पर आधारित भाषणों के खूब चर्चे होते थे। लोगों के जुबां पर उनकी बातें चढ़ गई थीं। बाद के चुनावों में यह सीट जनता परिवार फिर सपा-बसपा के खाते में चली गई। सपा और बसपा ने अतीक अहमद (2004) और कपिल मुनी करवारिया (2009) जैसे बाहुबलियों को यहां से उतारा और उनकी जीत हुई। धीरे-धीरे फूलपुर राजनीतिक हस्तियों से लेकर बाहुबलियों का सियासी अखाड़ा बन गया। 2014 में पहली बार मोदी लहर में इस सीट पर भाजपा का कमल खिला लेकिन 2018 में हुए उप चुनाव में फिर से सपा ने जीत दर्ज कर ली। आज हारात ऐसे हैं कि बिना डॉन की मदद लिए कोई भी प्रत्याशी यहां से चुनाव नहीं जीत सकता।
फूलपुर संसदीय इलाके के तहत पांच विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें फूलपुर, सोरांव, फाफामऊ, इलाहाबाद उत्तरी और इलाहाबाद पश्चिमी सीट शामिल हैं। फिलहाल इनमें से सोरांव सीट पर अपना दल का कब्जा हैं, जबकि चार सीटों पर बीजेपी का कब्जा है। फूलपुर में जातीय समीकरण काफी दिलचस्प है। यहां सबसे ज्यादा करीब सवा दो लाख पटेल वोटर हैं। मुस्लिम, यादव और कायस्थ वोटर्स की संख्या भी लगभग इतनी ही है जबकि करीब डेढ़ लाख ब्राह्मण और एक लाख से ज्यादा अनुसूचित जाति के वोटर हैं। यह सपा का मजबूत गढ़ रहा है। इसी वजह से 1996 से लेकर 2004 तक और 2018 के उप चुनाव में सपा प्रत्याशियों की जीत होती रही है। इस बार सपा-बसपा और रालोद गठबंधन ने यहां से सपा नेता पंधारी यादव को मैदान में उतारा है।

