Lok Sabha Election 2019: चुनावी सरगर्मियां अपने चरम पर हैं। चारों तरफ प्रत्याशी अपनी क्षमता से अधिक काम करने और अपने पक्ष में परिणाम लाने की कोशिश कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव में कई वीआईपी सीटें हैं, जिन पर लोगों की निगाहें जमी हैं। ऐसे में पार्टी और प्रत्याशी दोनों ही फूंक-फूंककर कदम रख रहे हैं। शायद यही वजह है कि भाजपा का गढ़ मानी जाने वाली भोपाल सीट पर भी पार्टी ने अपने प्रत्याशी की घोषणा बहुत बाद में की।

दिग्विजय से दिलचस्प हुआ मुकाबला: भाजपा ही नहीं, बल्कि स्थानीय लोग भी यही मानते थे कि भोपाल सीट पर पार्टी किसी अनजान चेहरे को भी उतारेगी तो वह सहज ही जीत जाएगा। कांग्रेस की ओर से मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के नाम की घोषणा के बाद माहौल बदल गया। इस नाम की घोषणा से हर कोई सकते में आ गया। सिर्फ भाजपा ही नहीं, बल्कि कांग्रेस के समर्थक भी। कुछ लोगों ने इसे कांग्रेस द्वारा खुद के पैरों पर कुल्हाड़ी मारना बताया तो कई ने इसे तुरूप का पत्ता कहा। कांग्रेस की यह चाल सीधी पड़ी या उल्टी, यह तो परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा, लेकिन एक बात माननी पड़ेगी कि दिग्विजय सिंह के इस सीट पर उतरने से मामला दिलचस्प हो गया है।

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अचानक बदल गई स्थिति: पिछले 30 साल से जिस सीट को भाजपा का गढ़ माना जाता है, दिग्विजय के नाम की घोषणा के बाद वह किला हफ़्तेभर में ही जर्जर दिखाई देने लगा। भले ही भाजपा दिग्विजय सिंह को बंटाधार कहती आई है, लेकिन उसे राघोगढ़ के इस राजा की राजनीतिक समझ पर कोई संशय नहीं है। दिग्विजय सिंह की सक्रियता ने भाजपा को सोचने पर मजबूर कर दिया। पहले जिस सीट पर लड़ने के लिए हर छोटा-बड़ा नेता तैयार था, दिग्विजय के नाम की घोषणा के बाद बगले झांकने लगा। फिर बड़े नेता भी एक सुर में राग अलापने लगे कि पार्टी जहां से कहेगी, लड़ लेंगे, लेकिन किसी ने इस सीट से खुद लड़ने की इच्छा नहीं जताई। भाजपा इस बात का खतरा उठाने के लिए कतई तैयार नहीं है कि अचानक दिग्विजय के तरकश में से छिपा हुआ कोई तीर निकल आए और उसकी इज्जत तार-तार हो जाए।

क्या भाजपा को सीट हारने का सच में डर है?: सामान्य रूप से देखा जाए तो भाजपा का यह किला काफी मजबूत है। इसको ढहाना आसान नहीं होगा। अपने शासन काल में भी दिग्विजय सिंह इस सीट को भाजपा से नहीं छीन पाए थे। अब तो उनकी स्थिति पहले से काफी कमजोर मानी जाती है। खासकर भाजपा द्वारा रची गई बंटाधार की छवि से निकलना उनके लिए आसान नहीं है। दिग्विजय सिंह खुद भी राघोगढ़ से लड़ने की इच्छा जता चुके थे, लेकिन प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जब कहा कि दिग्विजय सिंह जैसे नेता को प्रदेश की कठिन सीट से लड़ना चाहिए तो उन्होंने कहीं से भी लड़ने के लिए हामी भर दी। भोपाल से टिकट मिलने के बाद वह मैदान में आ डटे। उनकी सक्रियता देखकर भाजपा को भी अपने प्रत्याशी को लेकर मंथन करना पड़ा। ऐसे में भाजपा की ओर से कई बड़े नामों की चर्चा हुई। शिवराज सिंह चौहान, उमा भारती, नरेंद्र सिंह तोमर से लेकर कैलाश विजयवर्गीय तक के नामों पर गहन मंत्रणा हुई, लेकिन अचानक ऐसा नाम सामने आया, जिसको लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं थी।

साध्वी और दिग्विजय – कौन किस पर पड़ेगा भारी?: भोपाल संसदीय सीट की यह लड़ाई दरअसल अब राष्ट्रवाद बनाम विकास की हो गई है। जनता राष्ट्रवाद के मुद्दे पर वोट देगी तो यह बाजी साध्वी प्रज्ञा सिंह के हाथ लगेगी और लोगों ने विकास के नाम पर मतदान किया तो दिग्विजय सिंह के चेहरे पर मुस्कान देखने को मिल सकती है। अभी तो बयानों से जो वार हो रहा है, उसको देखते हुए यही कहा जा सकता है कि साध्वी का राजनीतिक अल्पज्ञान उन्हें बार-बार बैकफुट पर धकेल रहा है। इस मामले में दिग्विजय सिंह पुराने खिलाड़ी हैं। बहरहाल, यह दिग्गी राजा की मेहनत का ही कमाल है कि जिन्हें पिछले 10 साल से प्रदेश की जनता अंधेरा प्रदेश और बदहाल सड़कों के लिए जानती थी, अब उनके द्वारा किए गए इन्फ्रास्ट्रक्चर और जनकल्याणकारी कामों के बारे में भी चर्चा करने लगी है।

क्या कहती है भोपाल की जनता: भोपाल संसदीय क्षेत्र के लोगों का कहना है कि कांग्रेस ने ऐसे प्रत्याशी को खड़ा कर दिया है, जिसके कुशासन के किस्से मशहूर हैं। वहीं, भाजपा ने ऐसे प्रत्याशी को उतारा है, जिसको न तो राजनीतिक ज्ञान है और न ही शासन का कोई अनुभव। यह तो हमारे लिए आसमान से गिरे खजूर में अटके वाली स्थिति हो गई है। साध्वी प्रज्ञा को प्रदेश के मामा यानी शिवराज सिंह चौहान से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक अपने भाषणों में सबसे योग्य बता रहे हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि तो उनके भाषणों का जनता पर कितना प्रभाव पड़ता है। वहीं, दूसरी तरफ दिग्विजय सिंह अकेले दम पर आगे बढ़ते दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि माना जाता है कि मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद सबसे बड़े स्टार वही हैं। परिणाम कुछ भी हो, लेकिन दिग्गी-साध्वी के बीच के युद्ध का अपना मजा है। उम्मीद है कि युद्ध की ही तरह परिणाम भी दिलचस्प होगा। (भोपाल से प्रेरणा सिन्हा की रिपोर्ट)