Lok Sabha Election 2019 गढ़वाल उत्तराखंड की यह दूसरी ऐसी लोकसभा सीट है, जो देवभूमि के साथ-साथ टूरिज्म का रास्ता भी खोलती है। यहां के लोकसभा चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस के बीच हमेशा कांटे की टक्कर रही है। 1952 से अब तक यहां 16 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं। इनमें 7 बार बाजी कांग्रेस तो 6 बार बीजेपी के हाथ लगी है। वहीं, जनता पार्टी, जनता पार्टी (सेक्युलर) और ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस ने एक-एक बार इस सीट पर जीत दर्ज की है। स्थानीय लोगों के बीच मोदी अब भी लोकप्रिय हैं, लेकिन बीजेपी से काफी नाराजगी है। उनका कहना है कि केंद्र और राज्य दोनों जगह बीजेपी की सरकार है, लेकिन विकास के नाम पर उत्तराखंड लगातार पिछड़ रहा है। हालांकि, लोग कांग्रेस और राहुल गांधी पर भरोसा जताने की जगह एक बार फिर मोदी पर दांव लगाने के लिए तैयार हैं। फिलहाल बीजेपी ने प्रदेश अध्यक्ष तीरथ सिंह रावत पर दांव खेला है, जबकि कांग्रेस ने बीजेपी के वर्तमान सांसद भुवन चंद्र खंडूरी के बेटे मनीष खंडूरी को मैदान में उतारकर ‘तुरुप का पत्ता’ चला है।

यह यूनीक मुद्दा, जो आज तक नहीं हुआ हल : गढ़वाल संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले कोटद्वार निवासी मनोज सिंघल किराना स्टोर के संचालक हैं। वे बताते हैं कि गढ़वाल में पलायन ऐसा मुद्दा है, जिस पर 1952 से लगातार बात हो रही है, लेकिन यह आज तक हल नहीं हुआ। प्रदेश में फैक्ट्रियां और कंपनियां नहीं हैं, जिसके चलते बेरोजगारी काफी ज्यादा है। केंद्र में जब बीजेपी की सरकार बनी थी, तब रोजगार के अवसर बढ़ाने का दावा किया गया था, लेकिन यह खोखला साबित हुआ। इस बार के चुनाव में एक बार फिर पलायन रोकने को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं।
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ये स्थानीय मुद्दे रहेंगे हावी : पलायन के अलावा बेरोजगारी गढ़वाल सीट का काफी बड़ा मुद्दा है। अध्यात्म और टूरिज्म के अलावा लोगों के पास रोजगार की कमी है। बदरीनाथ में खुखरी बेचने वाले नैन सिंह रावत कहते हैं कि उत्तराखंड में अच्छी नौकरी मिलना काफी मुश्किल है। वजह है यहां बड़ी कंपनियों का रुख न करना। पढ़ाई करने के बाद भी नौकरी के ऑप्शन नहीं हैं। उधर, देवप्रयाग के रामकुमार बताते हैं कि प्रदेश में सड़कों की हालत काफी ज्यादा खराब है। सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर नहीं हैं। ये सिर्फ रेफर सेंटर बनकर रह गए हैं। ऐसे में लोग केंद्र और राज्य सरकार दोनों से काफी ज्यादा नाराज हैं।

खंडूरी से खुश हैं गढ़वाल वाले : पौढ़ी में रहने वाले हर्ष सिंघल बताते हैं कि इस बार चुनाव भले ही केंद्र के लिए हो रहे हैं, लेकिन लोकल मुद्दे हावी रहेंगे। हालांकि, लोग 4 बार सांसद रह चुके भुवन चंद्र खंडूरी से काफी खुश हैं। हर्ष कहते हैं कि उत्तराखंड में अब तक जितना विकास हुआ है, खंडूरी के ही कार्यकाल में हुआ। हरिद्वार को दूसरे शहरों से जोड़ने वाले अधिकतर पुल भी उनके कार्यकाल में ही बने। हालांकि, अब भुवन चंद्र खंडूरी के बेटे मनीष कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में स्थानीय मुद्दों को लेकर नाराजगी और खंडूरी के बेटे का कांग्रेस में शामिल होना लोगों को पंजे की तरफ मोड़ सकता है।

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राहुल-मोदी में कौन बेहतर : उत्तराखंड के श्रीनगर में रहने वाले स्पर्श कहते हैं कि बात लोकसभा चुनाव की है और प्रधानमंत्री चुनने की है। ऐसे में वह नरेंद्र मोदी के लिए एक बार फिर बीजेपी को वोट देना पसंद करेंगे। राहुल गांधी या किसी दूसरे नेता को पीएम चुनने के सवाल पर स्पर्श ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष अभी राजनीति के लिए परिपक्व नहीं हुए हैं। इसके चलते जनता उनकी ओर रुख नहीं करेगी। वहीं, ममता बनर्जी और मायावती क्षेत्रीय दलों की प्रमुख हैं। राष्ट्रीय नेता के तौर पर उनकी जगह नहीं बनी है। कांग्रेस 72 हजार रुपए सालाना देने का वादा कर रही है, लेकिन लोग जानते हैं कि राहुल गांधी ने सिर्फ सत्ता में आने के लिए यह घोषणा की है।
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बालाकोट ने बदल दी तस्वीर : रुद्रप्रयाग निवासी सर्वांश बताते हैं कि उत्तराखंड के 75 प्रतिशत परिवारों का एक सदस्य सेना में है और वे देश की सेवा कर रहे हैं। इसके चलते बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद लोगों के मन में पीएम मोदी के प्रति विश्वास काफी ज्यादा बढ़ गया है। उनका कहना है कि पहले पुलवामा हमले के बाद लोगों को मुंबई अटैक के बाद वाली स्थिति याद आई थी। लोगों को लगा था कि शायद सरकार कोई कदम नहीं उठा पाएगी, लेकिन बालाकोट की एयर स्ट्राइक ने माहौल पूरी तरह बदल दिया।
यह है गढ़वाल सीट का समीकरण : उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों में गढ़वाल भी शामिल है। यहां 1,092,282 लाख वोटर्स हैं, जिनमें 552,630 लाख महिलाएं और 518,381 लाख पुरुष हैं। यहां की करीब 70 प्रतिशत आबादी हिंदू है, जिसके चलते 1998 से यहां बीजेपी का प्रभाव लगातार बढ़ा है। हालांकि, 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट पर कब्जा जमाया था।