Lok Sabha Eletion 2019 के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल इस बार पिछली बार के मुकाबले काफी ज्यादा बढ़ चुका है। राजनीतिक दल सोशल मीडिया पर प्रचार के लिए ज्यादा फोकस कर रहे हैं। वीडियो स्ट्रिमिंग, फोटो सीरीज, मैसेज, चुटकुले, नारे सभी को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए पूरी रणनीति के साथ कई टीमें काम करती हैं। ये टीमें दिल्ली से शुरू होकर हर बूथ तक नेटवर्क में जुड़ी हुई हैं। आइये समझते हैं कैसे काम करता है यह पूरा नेटवर्क…
सोशल मीडिया से जुड़े हैं लगभग 50 करोड़ भारतीयः 2014 के मुकाबले इस बार देश में इंटरनेट यूजर्स की संख्या बढ़कर दोगुनी हो गई है। अब यह आंकड़ा लगभग 50 करोड़ तक पहुंच गया है। शहरी इंटरनेट यूजर्स की संख्या अब लगभग 30 करोड़ हो गई है, जबकि 2014 में कुल यूजर्स का आंकड़ा भी लगभग 20 करोड़ ही था। फेसबुक के एडवर्टिजमेंट पोर्टल के मुताबिक इस साल 24 फरवरी से 9 मार्च के बीच भारतीयों ने सियासी विज्ञापनों पर करीब 10 करोड़ रुपए खर्च किए हैं।
ये है सबसे अहम कड़ीः इतने लोगों तक पहुंचने के लिए सियासी दल वॉलिंटियर्स पर फोकस करते हैं, जिन्हें इन दिनों सोशल मीडिया आर्मी भी कहा जाता है। किसी भी पोस्ट को वायरल करने में ये सबसे ज्यादा मददगार होते हैं। इन लोगों की टीम किसी भी पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा प्लेटफॉर्म्स के माध्यम लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं।
कांग्रेस के कॉर्डिनेटर ने बताई ये प्रोसेसः उत्तर प्रदेश कांग्रेस की तरफ से सेवा दल के सोशल मीडिया कॉर्डिनेटर बनाए गए विक्रम सेठी कहते हैं, ‘हमें वॉट्सऐप पर नेशनल कॉर्डिनेटर की तरफ से वीडियो या पोस्ट मिलती हैं, इसके बाद हम उसको फॉरवर्ड करते हैं। आमतौर पर हमें ऐसे वीडियो मिलते हैं जैसे प्रियंका जी प्रयागराज गईं, वहां उन्होंने बोट पकड़ी आदि फिर जो भी उनकी गतिविधियां रहीं उनकी पोस्ट मिलती हैं। हमारे कई फेसबुक पेजेस पर शेयर करते हैं। इसके बाद इन्हीं को हम इंस्टाग्राम, वॉट्सऐप, ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म्स पर पोस्ट करते हैं। पूरे यूपी के अंदर करीब 30 हजार लोग यह काम कर रहे हैं। इसमें हमें कोई पैसा नहीं मिलता और हम अपनी मर्जी से यह काम कर रहे हैं।’
यूं वायरल होते हैं मैसेजः सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए कांग्रेस और बीजेपी समेत लगभग सभी बड़े दल ऐसी प्रक्रिया का अनुसरण करते हैं जिससे ऊपर से नीचे तक ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचा जा सके। इंडियन एक्सप्रेस की संवाददाता करिश्मा मेहरोत्रा के मुताबिक, ‘दोनों ही दलों की सेंट्रल टीमें दिल्ली में बैठती हैं। ये टीमें स्टेट सोशल मीडिया हेड्स को वॉट्सऐप के जरिए मैसेज भेजते हैं। स्टेट हेड्स अपने-अपने राज्यों की जिला स्तरीय टीमों तक संदेश पहुंचाते हैं। इसके बाद इसी कड़ी में ये मैसेज बूथ लेवल टीम तक पहुंचते हैं।’ बूथ लेवल टीम सिर्फ सेंट्रल टीम से आए मैसेज पोस्ट नहीं करते। यहां से भी वे कुछ कंटेंट तैयार करते हैं जो सेंट्रल टीम तक जाता है। ताकि इसे देशभर में वायरल किया जा सके। पिछले चुनाव की तुलना में इस बार बूथ लेवल पर ज्यादा फोकस है।’
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टॉप ट्रेंडिंग का फॉर्मूलाः टॉप ट्रेंडिंग की लिस्ट में दबदबा बनाने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों की टीमें किसी विशेष हैशटैग के साथ एक साथ हजारों-लाखों मैसेज करते हैं जिससे वह ट्रेंड करने लगता है। मोटेतौर पर इन्हीं ट्रेंड्स से देश के टीवी चैनलों का प्राइम टाइम प्रोग्राम निर्भर करता है।
किसके पास कितनी बड़ी ‘सेना’: बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय का दावा है कि उनके पास करीब 12 लाख वालिंटियर्स हैं जो सोशल मीडिया पर प्रचार का काम करते हैं। वहीं कांग्रेस का दावा है कि उनके पास करीब 30 हजार सोशल मीडिया पदाधिकारी और 8 लाख सोशल मीडिया वॉलिंटियर्स हैं।
क्या वोट में तब्दील होगी ये मेहनतः करिश्मा मेहरोत्रा के मुताबिक, ‘आज भी भारत के 10 में सात लोग ऐसी जगह रहते हैं जहां इंटरनेट की उपलब्धता 15 फीसदी के करीब ही है।’ ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि क्या इतनी भारी-भरकम टीम और टेक्नोलॉजी के बाद भी ये कोशिशें वोटों में तब्दील हो पाएगी?
