लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के मतदान से पहले चुनाव आयोग के सदस्यों के बीच मतभेद खुलकर सामने आ गए हैं। चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के विषय पर होने वाली निर्वाचन आयोग की बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया है।

अशोक लवासा ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा को इस आशय का पत्र लिखते हुए आयोग की बैठक से खुद के अलग रहने की जानकारी दी है। चुनाव आयोग इस मुद्दे पर विचार विमर्श के लिए मंगलवार को एक बैठक बुलाई है। इस बैठक के बारे में अशोक लवासा का कहना है कि यह आयोग का अंदरूनी मामला है, वह इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं करेंगे।

चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने 4 मई को अपने पत्र में कहा था कि जब उनके अल्पमत को रिकॉर्ड ही नहीं किया गया तो आयोग में हुए विचार-विमर्श में भागीदारी का कोई मतलब ही नहीं है। लवासा ने लिखा था कि वह दूसरे उपायों पर विचार कर सकते हैं। लवासा ने यह दावा भी किया था कि आयोग की बैठकों से उन्हें दूर रखने के लिए दबाव बनाया गया था।

ऐसा इसलिए किया गया था क्योंकि उनके नोट्स में असहमति रिकॉर्ड करने को पारदर्शिता के लिए जरूरी बताने पर कोई जवाब नहीं दिया गया था। लवासा ने इसके बाद 16 मई को फिर मुख्य निर्वाचन आयुक्त को पत्र लिखा। इससे पहले 10 मई और 14 मई को उनके रिमाइंडर्स को नहीं सुना गया।

16 मई को लिखे पत्र में उन्होंने लिखा, ‘मेरे अल्पमत के फैसले को दर्ज नहीं किया जाना इस बहु सदस्यों वाले वैधानिक निकाय के स्थापित तौर-तरीकों के उलट है। मेरी मांग के अनुरूप व्यवस्था नहीं बनने तक मैं बैठक में शामिल नहीं होउंगा।’
इसके बाद मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा ने लवासा के साथ बैठक भी बुलाई थी। लवासा की मांग है कि चुनाव आयुक्त के बीच जो भी मतभेद हों उन्हें आधिकारिक तौर पर रिकॉर्ड में दर्ज किया जाए।

दरअसल यह पूरा विवाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता के मामले में क्लीन चिट देने से जुड़ा है। अशोक लवासा ने इन दोनों को क्लीन चिट दिए जाने पर असमहति व्यक्त की थी। वहीं, बहुमत के आधार पर पीएम और भाजपा अध्यक्ष को क्लीन चिट दी गई थी।