Lok Sabha Election 2019: विपक्षी दलों की एकजुटता पर उठते सवालों को सांप्रदायिक सोच वाले ‘खास तबके’ की रणनीति का नतीजा बताते हुए माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी का कहना है कि इस चुनाव में सपा बसपा जैसे धुर विरोधी भी एकजुट हुए हैं। यह भाजपा आरएसएस की घातक नीतियों के खिलाफ बने जनमानस का ही नतीजा है जिसने देशहित में जन्मजात राजनीतिक विरोधियों के मिलने की जमीन तैयार की। येचुरी ने पीटीआई को बताया कि इस चुनाव का मकसद महज सत्ता परिवर्तन नहीं है बल्कि भाजपा-आरएसएस की विखंडनकारी नीतियों से देश को निजात दिलाना है। इसलिए यह चुनाव स्वतंत्र भारत का सबसे अहम चुनाव बन गया है।
उन्होंने कहा, ‘पिछले पांच साल में समाज को तोड़ने और देश एवं आम आदमी को आर्थिक बदहाली में धकेलने वाली मोदी सरकार की नीतियों से नाराज जनता ने सत्ता परिवर्तन का मूड बना लिया है। इसे समझते हुए ही सपा, बसपा और टीडीपी, कांग्रेस जैसे दल इस चुनाव में एक साथ आए हैं।’
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जैसी जरूरत है उसके मुताबिक ही हो रहे गठजोड़ः वाम दलों के अलग-थलग पड़ने के सवाल पर येचुरी ने कहा कि सांप्रदायिक सोच वाला एक खास वर्ग है जो वामदल और अन्य विपक्षी दलों में बिखराव की धारणा को फैलाने में लगा है। वाम दलों सहित पूरा विपक्ष मोदी सरकार को हटाने के लिए एकजुट है। हमारी पूर्व निर्धारित रणनीति के तहत ही, राज्यों में जहां जिसके एक साथ आने की जरूरत थी, वहां वे सभी दल, एक साथ आए हैं।’ बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे अहम राज्यों में कांग्रेस के साथ नहीं आने से भाजपा को चुनावी लाभ होने के सवाल पर उन्होंने कहा, ‘किसी विपक्षी दल के साथ आने से जहां भाजपा को लाभ होने की आशंका हो, वहां उसके साथ गठजोड़ की क्या जरूरत है।’ उन्होंने दलील दी कि छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भी अजीत जोगी और बसपा के अलग लड़ने से भाजपा को लाभ होने की बात कही गई थी, लेकिन नतीजा उलट ही रहा। मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी बसपा कांग्रेस के साथ नहीं थी। इससे साफ है कि जहां जैसी जरूरत है उसके मुताबिक ही गठजोड़ हो रहे हैं।
राजनीति अंकगणित नहीं है बल्कि व्यापक जनमत का खेलः येचुरी से पूछा गया कि एनडीए के घटक दल समय रहते एकजुट होकर प्रचार में जुट गए हैं जबकि बिहार, पश्चिम बंगाल और दिल्ली में गठबंधन पर स्थिति साफ नहीं होने से विपक्ष में बिखराव साफ दिख रहा है। इस पर उन्होंने कहा, ‘हमसे ज्यादा बिखराव एनडीए में है। रालोसपा जैसे घटक दल हों या शत्रुघ्न सिन्हा और कीर्ति आजाद जैसे दिग्गज नेता हों, आखिर ये कौन लोग हैं जो भाजपा छोड़ रहे हैं।’ उन्होंने कहा, ‘इस बिखराव से ध्यान भटकाने के लिये एक प्रकार के राजनीतिक ध्रुवीकरण की छद्म तस्वीर दिखाई जा रही है। हकीकत यह है कि जनता में मोदी सरकार को हटाने के लिये ध्रुवीकरण हो चुका है। यह ध्रुवीकरण अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग रुप में जाहिर हो रहा है। यही वजह है कि पहली बार जन्मजात राजनीतिक दुश्मन भी एक साथ आए हैं।’ येचुरी ने अपने पिछले चुनावी अनुभवों के आधार पर कहा, ‘राजनीति, महज अंकगणित नहीं है बल्कि व्यापक जनमत का खेल है। पूरे देश में सामान्य तौर पर जनता ने अपना मत (मूड) तय कर लिया है। देशव्यापी स्तर पर राजनीतिक मंथन चल रहा है, जिसका असर विभिन्न रूपों में चुनाव के बाद दिखेगा।’