Lok Sabha Election 2019: देश में 17वीं लोकसभा के गठन के लिए पांच चरणों में चुनाव हो चुके हैं। दो चरण अभी बाकी हैं। 23 मई को इसके नतीजे आएंगे। उसके बाद यह तय हो सकेगा कि किस पार्टी की सरकार बनती है और कौन प्रधानमंत्री बनता है लेकिन उससे पहले नई लोकसभा के लिए एक बात जाहिर हो चुकी है कि संसद के निचले सदन में इस बार कोई प्रखर दलित वक्ता नहीं दिखेगा। हालांकि,, संभावना है कि संविधान निर्माता बाबासाहेब भीमराव अआंबेडकर के पोते प्रकाश आंबेडकर फिर से महाराष्ट्र के सोलापुर से चुनाव जीतकर संसद पहुंच जाएं। तीन बार के सांसद रहे प्रकाश आंबेडकर दलित मुद्दों के बड़े पैरोकार और राष्ट्रीय स्तर के दलित चेहरा रहे हैं लेकिन इनके अलावा जिन चेहरों को देश दशकों से देखता आया है और दलित मुद्दों समेत अन्य मुद्दों पर संसद में आवाज बुलंद करते हुए देखता रहा है, वो चेहरे इस बार नहीं दिखेंगे।
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती देश में दलित चेहरे की प्रतीक बन गई हैं लेकिन वो 17वीं लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ रही हैं। साल 2004 में उन्होंने आखिरी बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था। मायावती भाजपा और कांग्रेस दोनों का मुखर होकर विरोध कर रही हैं। उन्होंने इस बार यूपी में सपा और रालोद के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया है। दूसरे बड़े दलित चेहरे के तौर पर लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामविलास पासवान हैं जो फिलहाल केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री हैं। पासवान भी इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। उनकी पारंपरिक हाजीपुर संसदीय सीट से उनके छोटे भाई पशुपति कुमार पारस चुनाव लड़ रहे हैं। उनके राज्यसभा में जाने के लिए भाजपा से अंदरखाने बातचीत हो चुकी है।
तीसरे बड़े दलित नेता और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआई) के नेता रामदास अठावले भी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। वो पहले से ही राज्यसभा में हैं और केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री हैं। कांग्रेस के चर्चित दलित चेहरे पी एल पुनिया भी यूपी से राज्यसभा के सदस्य हैं और फिलहाल लोकसभा चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। बीजेपी के चर्चित और वक्ता रहे दलित सांसद उदित राज टिकट न मिलने से भाजपा छोड़ चुके हैं और कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा दलितों की आवाज बंद कराना चाहती है। इनके अलावा चर्चित चेहरे सीपीआई के डी राजा, बी एल मुंगेकर, नरेंद्र जाधव भी फिलहाल राज्यसभा में हैं। इनके अलावा कांग्रेस की मीरा कुमार, मलिकार्जुन खड़गे, के एच मुनियप्पा सरीखे नेता भी चुनावी मैदान में हैं लेकिन उनकी पहचान दलित लड़ाका के तौर पर नहीं रही है। लिहाजा, 17वीं लोकसभा में नजर नहीं आ सकेंगे।
हालांकि, सांवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक 543 सदस्यों वाली लोकसभा में कुल 84 सदस्य आरक्षित समुदाय (एससी-एसटी कैटगरी) से चुनकर आएंगे लेकिन इनमें से अधिकांश नए-नवेले होंगे या फिर ऐसे चेहरे हो सकते हैं जिनकी लोकसभा में भागीदारी बहुत सक्रिय नहीं रही है। बता दें कि पिछले कुछ सालों में विपक्ष लगातार मोदी सरकार पर दलितों के साथ भेदभाव करने और उनके हितों की अनदेखी करने का आरोप लगाता रहा है। पिछली लोकसभा में भी दलित मुद्दों पर इन दलित सांसदों द्वारा कोई खास आवाज नहीं उठाया गया, जबकि गुजरात के उना में दलितों पर अत्याचार हुए। सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी-एसटी एक्ट के प्रावधानों को कमतर करने पर भी संसद में दलित सांसदों द्वारा कोई खास आवाज नहीं उठाई गई।

