बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 24 सीटों पर मतदान पूरा हो चुका है।  अब तक प्रदेश में पांच ऐसे फैक्टर थे जिनके इर्द-गिर्द चुनाव घूमता रहा है। 

सीमांचल में पूर्णिया और अररिया से लेकर दक्षिण बिहार में जमुई और भागलपुर और उत्तर बिहार में सारण, सीवान और समस्तीपुर तक लगभग एक जैसे मुद्दों पर चुनाव का मैदान सजा था। इंडियन एक्सप्रेस ने प्रदेश का दौरा कर अहम मुद्दों को समझा है। 

1. मोदी फैक्टर है लेकिन स्थानीय मुद्दों की गूंज ज़्यादा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार के चुनाव में एक फैक्टर हैं लेकिन अब पिछले दो चुनावों की तरह उनका प्रभाव नहीं दिखाई देता है। बिहार कई लोकसभा क्षेत्रों में दर्जनों मतदाताओं ने कहा कि देश को चलाने के लिए मोदी अभी भी सबसे अच्छे विकल्प हैं, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि पीएम के भाषण और उनकी बातें अब दोहराई हुई और पुरानी लगती हैं।

इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत करते हुए सीवान के दरौंदा में प्रोविजन स्टोर चलाने वाले संजय सिंह ने कहा, “किसी एक फैक्टर के बजाय कई स्थानीय फैक्टर पर यहां चुनाव हो रहा है। आख़िर रोटी हमेशा राम से ज़्यादा महत्वपूर्ण होती है। यहां बेरोजगारी का मुद्दा भी काफी हावी है।”

समस्तीपुर में फल दुकान के मालिक भवन झा ने कहा, “मोदी ने हिंदुओं को मजबूती का एहसास कराया है। लालू प्रसाद के रहते मैं टीका नहीं लगा पाता था। मोदी ने बहुत विकास किया है, हम आगे बढ़ रहे हैं।” 

समस्तीपुर के हावपुर गांव के किसान संतोष कुमार की राय इससे थोड़ी अलग थी। वह कहते हैं, “मोदी हमारे लिए कोई फैक्टर नहीं हैं। हमें एक सांसद की जरूरत है जिससे हम मदद के लिए संपर्क कर सकें। पीएम मोदी के लिए यह कहना आसान है कि वह हर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसा कहना बिल्कुल अलोकतांत्रिक है। हम ऐसा सांसद चाहेंगे जो राष्ट्रवादी नारे लगाने वाले के बजाय स्थानीय मुद्दों का ध्यान रख सके।”

2.महिला मतदाता का रुख BJP JDU की ओर?

बिहार में महिलाएं बड़ी संख्या में वोट देने के लिए निकल रही हैं। चुनाव आयोग के मुताबिक पहले चार चरणों में महिलाओं और पुरुषों के मतदान के बीच का अंतर 6 प्रतिशत अंक से लेकर 10 प्रतिशत अंक तक रहा है।

बिहार में विधानसभा चुनावों सहित पिछले कुछ चुनावों में महिलाओं के बीच अधिक मतदान का एक कारण महिलाओं के बीच NDA की योजनाओं की सफलता रही है।

 मोदी सरकार ने महिलाओं को अपने योजनाओं के सेंटर में रखा है और प्राथिमिकता दी है। इसका काफी प्रभाव यहां दिखाई देता है। पूर्णिया के बैरगाछी गांव की पानो देवी कहती हैं, “जिसका खाएंगे उसे वोट देंगे ना।” 

खासकर दलित परिवारों जिनके पास कमाने वाला कोई नहीं है, मुफ्त राशन योजना काफी पॉपुलर रही है। हालांकि हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र के महुआ ब्लॉक में रविदास बस्तियों की महिलाओं ने कहा कि मोदी सरकार की उज्ज्वला योजना पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि यहां गरीब लोग एलपीजी रिफिल का खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं।

3. तेजस्वी यादव अब सिर्फ ‘यादव’ नेता नहीं, नौकरी का वादा कितना प्रभावी?

बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव प्रचार में काफी व्यस्त दिखाई दिए।  खबर आई थी कमर और रीढ़ की हड्डी में तेज दर्द के कारण डॉक्टरों ने उन्हें आराम करने की सलाह दी है लेकिन फिर भी वह प्रचार में शामिल रहे। 

उनका प्रचार अभियान सरकारी नौकरियों, रोजगार जैसे मुद्दों पर केन्द्रित दिखाई दिया है। उनकी सरकार में पार्टी के 17 महीने के कार्यकाल के दौरान 4 लाख से अधिक नौकरियां – मतदाताओं, विशेषकर युवाओं के बीच लोकप्रियता हासिल कर रही हैं।

,समस्तीपुर के उजियारपुर क्षेत्र के एक मतदाता रमेश कुशवाहा ने कहा, “तेजस्वी यादव रैलियों के दौरान खासतौर पर पलायन और नौकरियों की बात कर रहे हैं, जो असली मुद्दे हैं। हम ऐसे कई गांवों का उदाहरण दे सकते हैं, जहां प्रत्येक गांव में कम से कम पांच से सात लोगों को नौकरी मिली है। ऐसा रोजगार अभियान पिछले तीन दशकों में नहीं हुआ। तेजस्वी अब सिर्फ यादव नेता नहीं हैं, वह एक सच्चे नेता हैं।”

कई युवा मतदाताओं ने कहा कि तेजस्वी यादव 2025 के विधानसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करेंगे, उन्होंने कहा कि युवा मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा वर्तमान चुनावों में राजद को वोट दे सकता है।

4.राजद की सोशल इंजीनियरिंग

बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव प्रचार में काफी व्यस्त दिखाई दिए।  खबर आई थी कमर और रीढ़ की हड्डी में तेज दर्द के कारण डॉक्टरों ने उन्हें आराम करने की सलाह दी है लेकिन फिर भी वह प्रचार में शामिल रहे। 

उनका प्रचार अभियान सरकारी नौकरियों, रोजगार जैसे मुद्दों पर केन्द्रित दिखाई दिया है। उनकी सरकार में पार्टी के 17 महीने के कार्यकाल के दौरान 4 लाख से अधिक नौकरियां – मतदाताओं, विशेषकर युवाओं के बीच लोकप्रियता हासिल कर रही हैं।

आरजेडी ने अपने मुस्लिम-यादव (MY) आधार का विस्तार कर BAAP टर्म को जोड़ा है, जिसमें B-बहुजन, A- अगड़ा (उच्च जातियां),A-आधी आबादी (महिलाएं) और P (Poor) गरीबों को शामिल करने की कोशिश करके चतुर सामाजिक इंजीनियरिंग को अंजाम देने की कोशिश की है। 

राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुबोध कुमार मेहता ने कहा कि हमने बेहतर और व्यापक सोशल कॉम्बिनेशन तैयार किया है। नीतीश कुमार के लिए अब कोई लव-कुश (कुर्मी-कोइरी) नहीं है।

उजियारपुर में राजद के कुशवाहा उम्मीदवार आलोक कुमार मेहता को लोकप्रिय समर्थन मिल रहा है, वह मौजूदा सांसद और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। उजियारपुर के सरायरंजन निवासी सोनू कुमार ने कहा कि कुशवाहा नेताओं की तलाश में हैं। हम सिर्फ NDA का वोट बैंक नहीं हैं।’

5.चुनाव में नीतीश कुमार कहां?

नीतीश कुमार को बार बार अपना समर्थन बदलने से काफी नुकसान हुआ है। प्रदेश में मतदाताओं उनके फैसले लेने की समझ की काफी आलोचना की है। सारण निवासी गुलाम मुस्तफा कहते हैं,“नीतीश एक पेंडुलम हैं, हम उन पर भरोसा नहीं कर सकते। यह तेजस्वी यादव का ज़माना है।”

लेकिन बीजेपी को अभी भी विश्वास है कि 13-14% वोट और खासतौर से ईबीसी और दलित नीतीश कुमार पर निर्भर हैं। बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ”नीतीश अकेले ही फर्क लाएंगे और एनडीए को फायदा पहुंचाएंगे। हर कहानी के तीन पहलू होते हैं। नीतीश अब भी तीसरा पक्ष हैं. हम जानते हैं कि 2025 के विधानसभा चुनावों तक उनकी प्रासंगिकता खत्म हो सकती है, लेकिन अभी वह पूरी तरह आउट नहीं हुए हैं।”