कर्नाटक की एक हार ने बीजेपी को उसकी नींद से उठा दिया है। ये वो नींद है जिसने पार्टी को अति आत्मविश्वास में ला दिया था और जिस वजह से वो अपनी खुद की कई गलतियों को नजरअंदाज करती आ रही थी। लेकिन कर्नाटक के नतीजों ने बता दिया है कि बीजेपी अजेय नहीं है, पीएम मोदी का साथ होना जीत की गारंटी नहीं देता है और हर बार डबल इंजन का दांव चल जाए, ये जरूरी नहीं। लेकिन इस चुनाव ने बीजेपी को चिंता की कई और वजह दी हैं।

4 सालों में कई राज्यों में बदली स्थिति

असल में बीजेपी के लिए इस समय कर्नाटक से ज्यादा 2024 का रण जरूरी है। राज्य के चुनाव तो सेमिफाइनल की तरह चल रहे हैं, असल तैयारी बड़े मुकाबले की है। उस बड़े मुकाबले में बीजेपी को अगर फिर अपने दम पर सरकार बनानी है तो उसे कई राज्यों में पिछली बार से भी बेहतर प्रदर्शन करना होगा। इसकी वजह ये है कि 2019 के बाद से कई राज्यों में जमीन पर सियासी समीकरण बदल चुके हैं, बीजेपी की हालत कमजोर भी हुई है।

बंगाल में जारी बीजेपी छोड़ो अभियान

पश्चिम बंगाल इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने सभी को हैरान करते हुए ममता के गढ़ से 18 सीटें निकाली थीं। जिस राज्य में उसे कभी एक भी सीट नसीब नहीं होती थी, वहां उसने इतना शानदार प्रदर्शन किया। लेकिन उसके बाद 2021 के विधानसभा चुनाव हुए। बीजेपी ने टीएमसी को कड़ी टक्कर दी और पहली बार लेफ्ट को पछाड़ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी। उस चुनाव में बीजेपी को 77 सीटें मिल गई थीं। लेकिन सरकार बनाने का दावा हुआ था, जो पूरा नहीं हो सका। उस एक चुनावी हार ने बंगाल में बीजेपी में बड़ा बिखराव ला दिया। मुकुल रॉय से लेकर बाद में बाबुल सुप्रियो तक ने बीजेपी का साथ छोड़ टीएमसी के साथ जाने का फैसला किया। कई और विधायक भी पाला बदल टीएमसी में चले गए। इसी वजह से जो मजबूती बीजेपी को 2019 में बंगाल मिल गई थी, वो उसने 4 साल के अंदर काफी हद तक गंवा दी है।

नीतीश के पाला बदलते ही बिहार में बदले समीकरण

बीजेपी का कुछ ऐसा ही हाल बिहार में भी माना जा रहा है। जब तक नीतीश कुमार का साथ था, बीजेपी की राज्य में स्थिति सही चल रही थी, लेकिन अब क्योंकि सीएम एक बार फिर आरजेडी के साथ चले गए हैं, ऐसे में जो समीकरण बने हैं, वो बीजेपी के लिए बिल्कुल भी मुफीद साबित नहीं हो रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बिहार में जेडीयू के साथ मिलकर 40 में से 39 सीटें जीती थीं, लेकिन अब जब नीतीश साथ नहीं हैं, ये आंकड़ा काफी घट सकता है। इंडिया टुडे के एक सर्वे के मुताबिक आगामी लोकसभा चुनाव में यूपीए को बिहार में 25 सीटें मिल सकती हैं और बीजेपी का आंकड़ा 15 पर सिमट सकता है।

शिंदे का साथ महाराष्ट्र में काफी नहीं

इसी तरह महाराष्ट्र से भी लोकसभा की 48 सीटें निकलती हैं, पिछली बार बीजेपी ने 23 सीटों पर जीत दर्ज की थी, साथ में शिवसेना भी थी, ऐसे में उसके अच्छे प्रदर्शन का फायदा भी पार्टी को मिला। लेकिन अब महाराष्ट्र में शिवसेना में ही दो फाड़ है, शिंदे बीजेपी के साथ हैं तो उद्धव अपनी पार्टी को फिर अपने कब्जे में करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। बड़ी बात ये है कि मूड ऑफ द नेशन का सर्वे स्पष्ट कर रहा है कि इस बार महा विकास अघाड़ी अपने दम राज्य की 34 सीटें जीत सकती है, यानी कि बंगाल-बिहार के बाद यहां से भी बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है।

अब इन राज्यों का जिक्र करना जरूरी इसलिए था क्योंकि यहां हो रहे नुकसान की भरपाई बीजेपी को दूसरे राज्यों से करनी होगी। निकाय चुनाव के बाद जानकार यूपी में जरूर बीजेपी की स्थिति मजबूत मान रहे हैं, लेकिन बंगाल, महाराष्ट्र, बिहार, कर्नाटक जैसे राज्यों में उसके नुकसान की उम्मीद भी जताई गई है। ऐसे में अब पार्टी भरपाई कहा से करेगी, ये बड़ा सवाल है।

130 में से 102 सीटों पर बीजेपी का डब्बा गुल

दक्षिण भारत से लोकसभा की कुल 130 सीटें निकलती हैं, ये आंकड़ा किसी भी पार्टी के लिए हार-जीत तय कर सकता है। अभी तक दक्षिण में बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटें कर्नाटक से मिलती आ रही हैं, कुछ सीटें तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी मिल जाती हैं, लेकिन केरल, तमिलनाडु में पार्टी सूपड़ा साफ ही चल रहा है। ऐसे में अब जब कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी पार्टी की अप्रत्याशित हार हुई है, उसके लिए दक्षिण से भी भरपाई करना मुश्किल हो सकता है। बड़ी बात ये भी है कि बीजेपी दक्षिण में सिर्फ कर्नाटक में ही सरकार बना पाई है, यानी कि बाकी राज्यों में उसकी स्थिति और ज्यादा पतली है। अब जब कर्नाटक भी हाथ से जा चुका है, तो पार्टी विस्तार से पहले कैसे एक बार फिर दक्षिण में एंट्री की जाए, ये बड़ा सवाल बन गया है।

एक रणनीति, समान मुद्दे हर राज्य में आते काम

अब सीटों के समीकरण के लिहाज से तो बीजेपी के लिए चिंता बनी ही है, कई राज्यों में उसका डबल इंजन वाला दांव फेल होना भी उसे आत्ममंथन करने पर मजबूर कर रहा है। हिमाचल में सत्ता गंवाई गई है और अब कर्नाटक में एक करारी हार मिली है। दोनों ही राज्यों में एक इंजन पूरी तरह फेल हुआ है। इसी तरह बीजेपी की हर चुनाव में दिख रही समान रणनीति भी उसके लिए अब चिंता का सबब बन गया है। हर चुनाव को राष्ट्रवाद से जोड़ देना, हर चुनाव में सिर्फ ध्रुवीकरण पर फोकस करना, हर चुनाव में पीएम मोदी को ही सबसे बड़ा स्टार प्रचारक बनाना, ये फैक्टर अब पार्टी को उम्मीद के मुताबिक रिटर्न नहीं दे रहे हैं। जिस तरह से कांग्रेस ने लोकल मुद्दों को राज्यों में उठाना शुरू कर दिया है, आने वाले दिनों में ये भी बीजेपी के लिए बड़ी चिंता बन सकता है।