कर्नाटक चुनाव का सियासी शंखनाद हो चुका है, सभी पार्टियां जमीन पर प्रचार करने में व्यस्त हो चुकी हैं, समीकरण साधने पर जोर दिया जा रहा है, कैसे सभी समुदायों को अपने पाले में लाया जाए, इस पर फोकस है। इस समय चुनावी मैदान में सीधा मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच है। किंगमेकर बनने के सपने एक बार फिर जेडीएस देख रही है तो वहीं आम आदमी पार्टी भी इस बार दक्षिण के इस राज्य में अपनी सियासी किस्मत आजमाने जा रही है। अब कौन सी पार्टी कितनी मजबूत है, उसकी क्या कमजोरी है, वो किस तरह से अपने लिए नए अवसर बना सकती है, ये सब समझने की कोशिश करते हैं। एक SWOT के जरिए इन सभी सवालों के जवाब खोजे जा सकते हैं। SWOT यानी कि Strength, Weakness, Opportunity और Threat।
कर्नाटक की जैसी सियासत रही है, यहां पर हर पांच साल बाद सत्ता बदल दी जाती है। पिछले 38 सालों से लगातार ये ट्रेंड देखने को मिल रहा है। कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी सरकार बनाती रहती है। इस बार बीजेपी सरकार में चल रही है, ऐसे में सियासी पैटर्न को आधार बनाकर देखा जाए तो फिर सत्ता वापसी करने का कांग्रेस के पास सुनहरा मौका है। उसके पास अपना वोटबैंक है, एक लुभावना घोषणा पत्र है और मजबूत स्थानीय नेताओं की फौज है।आइए कांग्रेस का SWOT Analysis करते हैं
Strengths
कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की सबसे बड़ी ताकत उसके स्थानीय नेता हैं। एक तरफ पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया खड़े हैं तो वहीं दूसरी तरफ डीके शिवकुमार भी सियासी तौर पर काफी मजबूत हैं। समय-समय पर दोनों नेताओं की अनबन की खबरें आती रहती हैं, लेकिन इन दोनों का कांग्रेस में होना ही पार्टी के लिए एक बड़ा फायदा है। सिद्धारमैया की बात करें तो वे कोरबा समुदाय से आते हैं जिसे लिंगायत और वोक्कालिगा के बाद तीसरे प्रभावशाली वोटबैंक के तौर पर देखा जाता है। कहने को इस समुदाय की आबादी सिर्फ 7 फीसदी के करीब है, लेकिन दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर इसका सीधा असर रहता है, जेडीएस के गढ़ माने जाने वाले ओल्ड मैसूर में तो ये समुदाय और ज्यादा निर्णायक बन जाता है। इसी वजह से लंबे समय से कोरबा समुदाय कांग्रेस का एक कोर वोटबैंक बना हुआ है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के 9 विधायक जीते थे जो इसी समुदाय से आते हैं।
अब सिद्धारमैया की जाति तो कांग्रेस के लिए निर्णायक है ही, इसके अलावा क्योंकि वे खुद को पिछड़ा भी बताते हैं, ऐसे में दलितों के बीच भी उनकी अच्छी उपस्थिति है। डीके शिवकुमार की बात करें तो वे भी कांग्रेस के एक बड़े ट्रंप कार्ड हैं। उन्हें पार्टी का संकटमोचक तो कहा ही जाता है, इसके अलावा क्योंकि वे वोक्कालिगा समाज से आते हैं, ऐसे में जेडीएस के कोर वोटबैंक में भी वे कांग्रेस के लिए सेंधमारी कर सकते हैं। वर्तमान में कर्नाटक में 11 फीसदी वोक्कालिगा हैं, यानी कि वे 48 से ज्यादा सीटों पर अपना प्रभाव रखते हैं। अब कांग्रेस का टारगेट है कि डीके शिवकुमार को आगे कर जेडीएस के परंपरागत वोटबैंक में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई जाए। अब स्थानीय नेताओं के अलावा,राज्य में जो वर्तमान स्थिति चल रही है, उसका फायदा भी कांग्रेस को मिल सकता है।
कहने को बीजेपी ने केएस ईश्वरप्पा को मंत्री पद से पिछले साल ही हटा दिया था, कहने को उनको भ्रष्टाचार के एक मामले में क्लीन चिट भी मिल गई, लेकिन कांग्रेस ये छवि बनाने में सफल हो गई कि राज्य में चल रही सरकार 40% कमीशन वाली है। कांग्रेस के हर बड़े और छोटे नेता ने इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बना रखा है। 40% कमीशन वाली सरकार को एक सियासी नारे के तौर पर लगातार इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसे में भ्रष्टाचार के मुद्दे को कांग्रेस भुना सकती है। इस बार कांग्रेस के लिए ये भी एक फायदा है कि खुद बीएस येदियुरप्पा चुनावी मैदान में नहीं उतरने जा रहे हैं। वहीं बीजेपी के दिग्गज लिंगायत नेता जगदीश शेट्टार ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है, ऐसे में लिंगायत समुदाय का एक मजबूत चेहरा पार्टी के साथ जुड़ गया है।
Weakness
अब कांग्रेस की जो सबसे बड़ी ताकत है- सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार की जोड़ी, चुनावी मौसम में ये पार्टी के लिए एक बड़ी सिरदर्दी भी है। ये बात किसी से नहीं छिपी है कि कर्नाटक में कांग्रेस के दो धड़े पिछले काफी समय से सक्रिय चल रहे हैं। कर्नाटक के दो सबसे बड़े नेता, दोनों ही सीएम रेस में सबसे आगे, लेकिन बनेगा कौन, इसी पर सारा विवाद। अभी के लिए ऐसी खबर है कि कांग्रेस ने दोनों सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार को समझा दिया है और पार्टी के लिए काम करने के लिए कहा गया है, लेकिन जानकार मानते हैं कि सीएम वाली महत्वकांक्षा पार्टी के लिए आने वाले दिनों में बड़ी सिरदर्दी बन सकती है।
इसके अलावा हिंदुत्व के मुद्दे पर एक बार फिर बीजेपी, कांग्रेस को घेर सकती है। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भी बीजेपी ने एकतरफा सिद्धारमैया को अपने निशाने पर लिया था, टीपू सुल्तान की जयंती को लेकर उन पर तुष्टीकरण की राजनीति करने का आरोप भी लगा था। इस बार भी गृह मंत्री अमित शाह एक रैली में कह चुके हैं कि टीपू सुल्तान की विचारधारा में विश्वास रखने वाली कांग्रेस जनता के लिए कुछ नहीं कर सकती। ऐसे में नेरेटिव सेट करने की पूरी कोशिश हो रही है जो कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकती है। 1400 करोड़ से ज्यादा संपति रखने वाले डीके शिवकुमार सबसे अमीर नेताओं में गिने जाते हैं, भ्रष्टाचार के कई आरोप भी उन पर लगे हुए हैं, जांच एजेंसियों की जांच चल रही है, ऐसे में ये मुद्दा भी कांग्रेस के खिलाफ जा सकता है।
Opportunities
कर्नाटक चुनाव में इस बार कांग्रेस के लिए कई मौके भी बन रहे हैं। एक मौका लिंगायत वोट को इस बार अपने पाले में करने का है। असल में कांग्रेस के पक्ष में दो समीकरण बन रहे हैं। पहला तो ये कि बीएस येदियुरप्पा खुद इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं,दूसरा समीकरण ये कि जगदीश शेट्टार कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। अब इन दोनों ही बातों का सीधा कनेक्शन लिंगायत वोट के साथ है जो राज्य में करीब 17 फीसदी हैं। 100 से ज्यादा सीटों पर अपना असर रखने वाला समुदाय किसी भी पार्टी के लिए हार जीत तय कर जाता है। ऐसे में इस बार बीजेपी के कोर वोटबैंक में सेंधमारी करने का कांग्रेस के पास अच्छा मौका है। इस समय बीजेपी के खिलाफ जो एंटी इनकम्बेंसी चल रही है, वो भी अपने आप में कांग्रेस के पास एक बड़ा मौका है। पिछले 38 सालों से किसी भी पार्टी को दोबारा सत्ता में आने का मौका नहीं मिला है, ऐसे में कांग्रेस उसी सियासी पैटर्न के तहत फिर सरकार बना सकती है।
Threat
हर बार की तरह इस बार भी कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा सियासी खतरा तो वो बगावत है जो नाराजगी की वजह से कई मौकों पर देखने को मिल चुकी है। कहने को इस समय दोनों शिवकुमार और सिद्धारमैया गुट कुछ शांत दिखाई पड़ रहे हैं, लेकिन अगर पार्टी सरकार बनाने में कामयाब हो जाती है तो ये सीएम कुर्सी को लेकर अलग ही स्तर पर रस्साकशी देखने को मिल सकती है। इस बार कांग्रेस के लिए सियासी खतरा ये भी है कि वो अकेले चुनावी मैदान में उतरने जा रही है। उसने कई बार किंगमेकर बनने का काम कर चुकी जेडीएस से हाथ नहीं मिलाया है। ओल्ड मैसूर और बेंगलुरु सिटी से कुल 89 सीटें निकलती हैं, जहां पर जेडीएस की अच्छी उपस्थिति है। वहीं वोक्कालिगा समाज के बीच भी जेडीएस काफी मजबूत है। ऐसे में वोटों का ये बंटवारा चुनावी मौसम में कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकता है।