भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के दावों के मुताबिक अब कर्नाटक भी कांग्रेसमुक्त हो गया है। चुनाव परिणामों के ताजा रुझान में बीजेपी बहुमत के करीब है और अपने दम पर सरकार बनाती दिख रही है। साल 2013 के विधान सभा चुनावों में कांग्रेस को 122 सीटें मिली थीं, जबकि बीजेपी को 40 सीटें मिली थीं। इस बार भी कांग्रेस दावा कर रही थी कि राज्य में फिर से उसकी वापसी होगी लेकिन ऐसा नहीं हो सका। राजनीतिक समीक्षकों के मुताबिक कर्नाटक विधान सभा चुनाव से ऐन पहले सिद्धारमैया सरकार द्वारा खेला गया लिंगायत कार्ड और क्षेत्रीय अस्मिता का कार्ड भी काम नहीं आया।
बता दें कि कांग्रेस सरकार ने राज्य के करीब 18 फीसदी लिंगायतों को लुभाने के लिए उसे धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने का फैसला किया था और गेंद केंद्र की बीजेपी सरकार के पाले में डाल दिया था। तब कई लिंगायत मठों के संतों ने बैठक कर कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने की अपील की थी लेकिन चुनाव आते-आते लिंगायत समुदाय के बड़े नेता कहे जाने वाले येदुरप्पा ने कांग्रेस के मंसूबों पर पानी फेर दिया और लिंगायतों को फिर से अपने पाले में कर लिया। लिंगायत लंबे समय से बीजेपी के कोर वोटर रहे हैं।
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने क्षेत्रीय कन्नड़ अस्मिता को जगाते हुए राज्य के लिए अलग झंडा की मांग की थी लेकिन बीजेपी की राष्ट्रीय अस्मिता उस पर भारी पड़ी। कांग्रेस ने टीपू सुल्तान की जयंती मनाकर भी कोशिश की कि अल्पसंख्यकों का ध्रुवीकरण उसके पक्ष में हो लेकिन ऐसा नहीं हो सका। इसके अलावा दलित-पिछ़ड़े मतदाता जो कांग्रेस के पारंपरिक वोटर्स रहे हैं, वो भी इस बार छिटक गए। उधर, जेडीएस ने अपनी स्थिति बरकरार रखी और कांग्रेस के दलित-अल्पसंख्यक वोटों में भी सेंध लगाने में कामयाब रही है।
मैसूर इलाके में कांग्रेस का अच्छा प्रभाव माना जाता रहा है लेकिन मायावती की बीएसपी और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी से दोस्ती कर जेडीएस दलित और मुस्लिम वोटरों को कांग्रेस से छीन अपने पाले में करने में कामयाब रही है। कांग्रेस के लिए आंतरिक गुटबाजी भी हार के कारणों में एक है। वरिष्ठ नेताओं के अपने-अपने गुट हैं। पार्टी नेतृत्व इस पर अंकुश नहीं लगा सका। इसके अलावा सिद्धारमैया के मंत्रियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप भी वोटरों को बीजेपी के पक्ष में लामबंद करने में कारगर साबित हुए।
बता दें कि कर्नाटक विधान सभा की 224 सीटों में से 222 पर शनिवार (12 मई) को चुनाव हुए थे। दो सीटों (आरआर नगर और विजयनगर) पर चुनाव टल गए हैं। वहां बाद में चुनाव होंगे। मतदाताओं ने करीब 72 फीसदी मतदान किए थे। एक-दो छोड़ तमाम एग्जिट पोल के मुताबिक त्रिशंकु विधान सभा के आसार जताए गए थे लेकिन चुनावी नतीजों और रुझान ने उसे गलत साबित कर दिया है।