झारखंड की दुमका संसदीय सीट झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है। वर्ष 1952 से 2019 तक हुए 18 लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन ने 1989 से 1996 और 2002 से 2014 आठ दफा दुमका का संसद में प्रतिनिधित्व किया है। वर्ष 1998 व 1999 और 2019 में भाजपा जीती है। इस बार बीजेपी ने शिबू सोरेन की पुत्रवधू सीता सोरेन को चुनाव मैदान में उतारा है। सीता वर्ष 2009 से झामुमो की जामा से विधायक निर्वाचित हुईं। झामुमो ने नलिन सोरेन को चुनावी जंग में उतारा है। ये शिकारीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र के 2000 से अबतक पांच बार से विधायक और शिबू सोरेन के खासमखास हैं।
माना जा रहा है कि शिबू सोरेन के दोनों हाथ में लड्डू है।

बीजेपी उम्मीदवार के लिए भितरघात का खतरा

झामुमो से विद्रोह कर निकली उनके बड़े बेटे स्वर्गीय दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन जीतें या उनके विश्वासपात्र नलिन को विजयश्री हासिल हो। जीत तो शिबू सोरेन परिवार की ही मानी जा रही है। फिर भी चुनावी दंगल इन दोनों के बीच ही है। 2014 में भाजपा के सुनील सोरेन को झामुमो के शिबू सोरेन ने करीबन 39 हजार मतों से पराजित किया था। लेकिन 2019 के संसदीय चुनाव में सुनील सोरेन ने शिबू सोरेन को तकरीबन 47 हजार मतों से हराकर बदला ले लिया। लेकिन इस बार भाजपा ने सुनील को उम्मीदवार नहीं बनाया। नतीजतन भाजपा उम्मीदवार के लिए भितरघात का खतरा बना है।

संथाल आदिवासियों का विकास नहीं के बराबर हुआ

छह विधानसभा क्षेत्रों जामा, शिकारीपाड़ा, जामताड़ा, नाला, सारठ और दुमका क्षेत्र के 15 लाख 70 हजार मतदाता सातवें व अंतिम चरण एक जून को अपने मत का प्रयोग करेंगे। हालांकि दुमका झारखंड की उपराजधानी कहलाता है। मगर विकास का काम जितनी तेजी से रांची, बोकारो,जमशेदपुर वगैरह शहरों का हुआ उतना दुमका का नहीं हुआ। रेल सुविधाएं बढ़ी हैं, आवागमन के लिए सड़कों का विकास भी हुआ मगर संथाल आदिवासियों का विकास नहीं के बराबर हुआ है।

वर्ष 1952, 1962, 1967, 1971 और 1984 में कांग्रेस जीती। लेकिन इसके बाद कांग्रेस का पत्ता साफ हो गया। 1984 में कांग्रेस के पृथ्वीचंद्र किस्कू आखिरी सांसद जीते थे। कांग्रेस की जगह झामुमो ने ले ली। लेकिन झामुमो ने पहली दफा शिबू सोरेन परिवार से बाहर का आदमी चुनाव में उतारा है। लेकिन तीन बार भाजपा ने दुमका में कमल खिला कर झामुमो को दर्शाया है कि यह किला केवल झामुमो का नहीं है। लेकिन यह भी इत्तेफाक की बात है कि पहली बार झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन परिवार का कोई सदस्य भाजपा का भगवा झंडा थाम दशम गुरुजी को ही चुनौती दे रहा है। संथाल परगना में शिबू सोरेन को ‘दशम गुरुजी’ के नाम से भी पुकारते हैं।

दुमका से 1980 में बतौर निर्दलीय चुनाव लड़कर शिबू सोरेन सांसद बने थे। जामा के विद्यार्थी सिद्धहु हेम्ब्रम कहते हैं कि पथरीली इलाके वाले दुमका संसदीय क्षेत्र खेती का अभाव है। यहां के संथाल आदिवासी की दशा सुधरी नहीं है। यहां भाजपा धर्म परिवर्तन के खिलाफ आंदोलन चलाती रही है। मगर रोजगार देने की पहल में वह भी उतनी सफल नहीं है। हाल में दुमका के कुंजी गांव में स्पेन की एक महिला से सामूहिक बलात्कार की वारदात की वजह से सुर्खियों में आया। इस घटना से इलाके की बड़ी बदनामी हुई थी। लेकिन राजनीतिक दल चुप रहे। इसका खामियाजा भी चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।