आगामी विधान सभा चुनावों के मद्देनजर विपक्षी महागठबंधन की हवा निकल चुकी है। इससे भाजपा खेमे ने थोड़ी राहत की सांस ली है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने तीन दिन पहले ही साफ कर दिया है कि उनकी पार्टी एमपी और राजस्थान में कांग्रेस से गठबंधन नहीं करेगी। हालांकि, सूत्र बता रहे हैं कि कांग्रेस आलाकमान अंतिम समय तक मायावती से गठबंधन के पक्ष में थे। जिस दिन (03 अक्टूबर) मायावती ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह पर बीजेपी का एजेंट होने आरोप लगाया और गठबंधन नहीं करने का एलान किया, उस दिन तक कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी विपक्षी एकता को लेकर उत्साहित थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राहुल गांधी ने बुधवार (03 अक्टूबर) को मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ से फोन पर बातचीत की और गठबंधन पक्का करने का निर्देश दिया था। आलाकमान के निर्देश के बाद कमलनाथ और बसपा महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा के बीच बातचीत भी हुई। सूत्र बता रहे हैं कि कांग्रेस के डेटा एनालिटिक्स विभाग के हेड को निर्देश दे दिया गया था कि उन 30 सीटों का पूरा विवरण तैयार किया जाए, जिस पर मायावती अपने उम्मीदवार उतारनी चाहती थीं मगर जब तक कि ये सारे प्रयास किसी ठोस नतीजे तक पहुंचते मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर कांग्रेस की कोशिशों और मंसूबों पर पानी फेर दिया।
वैसे मायावती ने करीब दो हफ्ते पहले ही मध्य प्रदेश चुनावों में 22 उम्मीदवारों का एलान कर अपनी मंशा जाहिर कर दी थी कि हाथी अब एकला चलने वाला है। बावजूद इसके 12-13 दिनों तक कांग्रेस की तरफ से महागठबंधन की कोशिशें होती रहीं। दरअसल, कांग्रेस आलाकमान की चाहत थी कि बसपा से गठजोड़ कर मध्य प्रदेश और राजस्थान में भाजपा को सत्ता से बेदखल किया जाय लेकिन ऐसा नहीं हो सका। मायावती छत्तीसगढ़ में पहले ही अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ से गठबंधन कर चुकी है और राजस्थान में भी एकला उतरने का एलान कर चुकी है।
बता दें कि 230 सदस्यों वाली मध्य प्रदेश विधान सभा में साल 2013 के चुनावों में भाजपा ने 165 सीटें जीती थीं जबकि कांग्रेस 58 सीट जीतकर दूसरे नंबर पर थी। बसपा ने वहां चार सीटें जीती थीं और करीब 6.29 फीसदी वोट हासिल किए थे। कांग्रेस का वोट प्रतिशत 36.38 फीसदी था। बीजेपी का वोट प्रतिशत 44.88 फीसदी था। यह बात भी दीगर है कि राज्य में बसपा कुल 50 सीटों पर दावे कर रही थी लेकिन सूत्र बताते हैं कि 30 सीटों पर अंतिम दौर में बातचीत चल रही थी। कांग्रेस को उम्मीद थी कि विधान सभा चुनाव में गठबंधन से न केवल मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी कर सकेंगे बल्कि 2019 के लोकसभा चुनावों में महागठबंधन भी पक्का हो सकेगा।