मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा)के मत लेकर भारतीय जनता पार्टी अपना मत फीसद बढ़ाने में सफल रही। इन दोनों ही क्षेत्रीय दलों को इस चुनाव में एक सीट के लिए तरसना पड़ा। साथ ही चार सीटें न मिलने की वजह से सपा की कांग्रेस के साथ जो तल्खी पैदा हुई, वह अलग।
मध्य प्रदेश की 230 सीटों वाली विधानसभा में भाजपा ने 163 सीटें जीतीं। चुनाव में भाजपा ने 48.55 फीसद वोट हासिल किए, जो 2018 के 41.02 फीसद के मुकाबले 7.53 फीसद अधिक हैंं। वहीं, कांग्रेस के वोट फीसद में 0.49 फीसद की मामूली गिरावट आई। भाजपा को मिले अधिक वोटों और इस आंशिक गिरावट की ही वजह से कांग्रेस की सीटें घटकर 66 रह गईं।
जबकि सपा और बसपा का इस चुनाव में खाता तक नहीं खुला। खास बात यह है कि पिछले चुनावों में दो सीटें जीतने वाली बसपा चार सीटों पर दूसरे स्थान पर रही। कुछ हद तक उसने मौजूदगी का अहसास भी कराया। जबकि समाजवादी पार्टी उस स्थिति तक भी नहीं पहुंच सकी।
मध्य प्रदेश में भाजपा को कुल 48.55 फीसद यानी 2.11 करोड़ वोट मिले। वहीं, कांग्रेस को 40.40 फीसद यानी 1.75 करोड़ वोट मिले। पिछले चुनावों के मुकाबले कांग्रेस को मिले वोट बढ़े ही हैं। कम नहीं हुए हैं। फीसद जरूर कुछ घटा है। इससे पहले 1977 की जनता लहर में जनता पार्टी को 47.28 फीसद वोट मिले थे। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर में कांग्रेस को 48.87 फीसद वोट मध्य प्रदेश में मिले थे।
सपा की मध्य प्रदेश में हुई करारी पराजय के बारे में पार्टी के वरिष्ठ नेता राजेंद्र चौधरी कहते हैं, चुनाव परिणाम पार्टी के पक्ष में नहीं आए। लेकिन साठ सीटें जहां सपा ने अपने प्रत्याशी उतारे थे, उनमें से कई जगह पार्टी के प्रत्याशियों को 32 हजार से लेकर 14 हजार वोट तक मिले। उन्होंने कहा कि सपा ने मध्य प्रदेश में बगैर पूरी तैयारी के चुनाव लड़ा।
दरअसल, मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के वोटों में सेंधमारी की। पार्टी का पारम्परिक मतदाता इस बार सरकार की घोषणाओं के कारण सपा-बसपा को छोड़ कर भाजपा के पाले में जा कर खड़ा हो गया। इसका बड़ा लाभ सीटों की शक्ल में भारतीय जनता पार्टी को विधानसभा चुनाव में मिला। रही बात कांग्रेस की तो उसे सीटें भले ही कम मिली हों लेकिन मत कम नहीं मिले।
बहुजन समाज पार्टी के एक नेता कहते हैं, मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बसपा आलाकमान को उम्मीद थी कि उसे चार सीटें तो मिलेंगी ही, लेकिन उसे निराशा हुई। दरअसल भाजपा की घोषणाओं के मोह में मतदाता फंस गया और उसने अपने पारम्परिक राजनीतिक दलों को छोड़ कर भाजपा को वोट कर दिया। इसका भारी नुकसान बहुजन समाज पार्टी को उठाना पड़ा।