मिजोरम की सियासत भी अजब गजब है। 1987 में पहला चुनाव हुआ और उसके बाद से सूबे की सियासत बीजेपी और कांग्रेस के इर्द गिर्द ही घूमती रही है। उससे भी खास बात ये है कि पिछले तीस सालों से सीएम की कुर्सी पर केवल दो नेता ही काबिज हो सके हैं। एक जाता है तो दूसरा आता है। उनके अलावा कोई और सीएम की कुर्सी के नजदीक भी नहीं पहुंच पाता। लेकिन इस दफा सियासत बदलती दिख रही है। भारत की प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी की सिक्योरिटी के चीफ रहे नेता सूबे की सियासत को तब्दील करके एक नई इबारत लिखने की कोशिश करते दिख रहे हैं।
मिजोरम ने 1993 के बाद से केवल दो मुख्यमंत्री देखे हैं। कांग्रेस से ललथनहवला और मिजो नेशनल फ्रंट से जोरमथांगा। 1987 में पहले विधानसभा चुनावों के बाद से सत्ता लगातार दोनों पार्टियों के बीच झूलती रही है। लेकिन इस दफा जोरम पीपुल्स मूवमेंट (ZPM) के लालडुहोमा मैदान में हैं।
IPS अफसर रहे लालदुहोमा ने नॉर्थ ईस्ट हिल यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद वह भारतीय पुलिस सेवा में आ गए। नौकरी के दौरान वह तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के सुरक्षा प्रभारी बन गए। उन्होंने 1984 में सेवा से इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस के झंडे तले राजनीति में कूद गए। उसी साल सांसद चुने गए। 1988 में कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद वह दल-बदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य घोषित होने वाले पहले सांसद बने। ZPM के गठन से पहले वह 2003 में अपनी खुद की पार्टी जोरम नेशनलिस्ट पार्टी से विधायक चुने गए थे।
निवर्तमान विधानसभा में उनके आठ विधायक हैं। 2018 में पार्टी के गठन के बाद उनकी पार्टी स्थानीय चुनावों में जीत हासिल कर चुकी है। ऐसा लगता है कि ZPM ने राज्य में अपने पैर जमा लिए हैं। इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक साक्षात्कार में लालदुहोमा ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि उनकी पार्टी बाहरी समर्थन के बिना अगली सरकार बना सकती है। उनका कहना था कि लोग उनके साथ हैं, किसी और की उनको जरूरत नहीं है।