बीरबल शर्मा
सवा साल पहले सत्ता के लिए अपने बेटे अनिल शर्मा को चुनाव से ठीक पहले भाजपा में शामिल करवाकर भाजपा सरकार में केबिनेट मंत्री बनाने से भी संतुष्ट नहीं हुए पंडित सुखराम ने एक बार फिर से पलटी मारी और अब सोमवार को पौत्र आश्रय शर्मा सहित कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सोमवार दोपहर सुखराम को कांग्रेस में शामिल करा कर प्रदेश भाजपा को बड़ा झटका दे दिया। समझा जा रहा है कि आलाकमान ने उनके पोते आश्रय शर्मा को टिकट देने का भरोसा दे दिया है। लेकिन इस बाबत किसी भी स्तर पर सार्वजनिक तौर पर कुछ भी नहीं कहा गया है।
हालांकि इसके साथ ही मंडी भाजपा ने सपष्ट कर दिया है कि सुखराम और आश्रय शर्मा भाजपा के सदस्य ही नहीं थे। केवल अनिल शर्मा ही भाजपा में शामिल हुए थे। अगस्त 2017 में हिमाचल विधानसभा चुनाव से पहले मंडी के विपाशा सदन में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने विपाशा सदन में मंच पर कांग्रेस के प्रभारी सुशील कुमार शिंदे और कई वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में पंडित सुखराम को आया राम-गया राम कहा तो मंडी के कार्यकर्ताओं और लोगों ने इसका खूब बुरा मनाया। सुखराम भी उस समय मंच पर मौजूद थे और वह हक्के-बक्के भी रह गए थे।
नाराज सुखराम ने इस पर सुशील कुमार शिंदे से वीरभद्र सिंह की शिकायत भी की थी। उस समय अनिल शर्मा वीरभद्र सिंह सरकार में मंत्री थे और उन्होंने भी इस टिप्पणी पर यही कहा था कि वीरभद्र सिंह बड़े और बुजुर्ग नेता हैं। कुछ भी कह देते हैं। इसके बाद ही सुखराम ने परिवार समेत भाजपा में शामिल होने की घोषणा कर दी थी। उस समय उनके पुत्र अनिल शर्मा भाजपा के टिकट पर मंडी से जीते और भाजपा सरकार में ऊर्जा मंत्री बने थे। मगर आज एक बार फिर से पंडित सुखराम परिवार ने दल बदला है और भाजपा से पलटी मार कर कांग्रेस में शामिल हुए हैं। इस बार दादा और पोते ने दलबदला है। पंडित सुखराम ने 1998 में भी कांग्रेस और वीरभद्र सिंह से खफा होकर अलग पार्टी हिमाचल विकास कांग्रेस (हिविकां) बनाई थी और कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने में बड़ी भूमिका अदा की थी। हिविकां 2004 में कांग्रेस में मिल गई थी।
प्रचार नहीं करेंगे अनिल :
सोमवार सुबह सुखराम के बेटे और आश्रय के पिता अनिल शर्मा, जो इस समय प्रदेश की भाजपा सरकार में ऊर्जा मंत्री हैं, मंडी के सर्किट हाउस में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मिले और उनसे कहा कि वह धर्मसंकट में आ गए हैं। उनका बेटा और पिता कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं मगर वह (अनिल) भाजपा नहीं छोड़ेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वह कांग्रेस उमीदवार बनने जा रहे अपने बेटे आश्रय शर्मा के लिए प्रचार भी नहीं करेंगे। भाजपा के प्रचार से भी दूर रहेंगे।
उधर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस बाबत कहा कि पंडित सुखराम को इस उम्र में ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए थे। भाजपा ने उन्हें पूरा मान सम्मान दिया।
उन्होंने कहा, विधानसभा चुनावों के दौरान मंडी की सभी दस सीटों पर कांग्रेस की हार का जो श्रेय सुखराम ले रहे हैं वह गलत है। प्रदेश में भाजपा की लहर थी और इसी कारण से मंडी जिले की दस सीटों पर कांग्रेस हारी भाजपा जीती। सुखराम फेक्टर न पहले था न अब है और न आगे रहेगा। एक सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा कि यदि अनिल शर्मा इस्तीफा देते हैं तो वह उसे मंजूर करेंगे। जहां तक उन्हें मंत्रिमंडल से हटाने की बात है तो इसे लेकर पार्टी के नेतृत्व के साथ विचार विमर्श चल रहा है, जल्द ही कोई निर्णय लिया जाएगा। यदि अनिल शर्मा अपने बेटे के लिए चुनाव प्रचार करते हैं तो उनकी सदस्यता जाएगी।
वीरभद्र से छत्तीस का आंकड़ा :
सुखराम के साथ वीरभद्र सिंह का शुरू से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है। 2004 में जब सुखराम ने मंडी सेरी मंच पर अपनी पार्टी हिविकां को वीरभद्र सिंह की गोद में डाल कर उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह की लोकसभा में जीत पक्की कर दी थी तब इन दो दिग्गजों में राजनीतिक खटास कुछ कम होने लगी थी। मगर जब 2014 में प्रतिभा सिंह भाजपा के रामस्वरूप शर्मा जैसे कमजोर उम्मीदवार से हार गईं, तो फिर से वीरभद्र सिंह के तेवर तीखे हो गए थे और उन्होंने बल्ह के कंसा चौक में सार्वजनिक तौर पर आरोप लगाया था कि मंडी में ब्राहमणवाद चला है जिसके चलते उनकी पत्नी हारीं। उनका इशारा फिर सुखराम की ओर था कि उन्होंने अंदरखाते इस चुनाव में रामस्वरूप शर्मा का साथ दिया। अब सुखराम फिर से कांग्रेस में लौट आए हैं तो वीरभद्र सिंह के लिए, जिन्हें कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश की चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष की जिम्मेवारी दी है, यह एक बड़ा धर्मसंकट होगा कि वे मंडी लोकसभा में कैसे और किस तरह से प्रचार करते हैं।