राहुल गांधी के लोकसभा क्षेत्र बदलने पर भाजपा नेताओं ने उनकी जमकर आलोचना की है। अतीत पर गौर करेंगे तो तमाम दलों के बडे नेता अपने संसदीय क्षेत्र बदलते रहे हैं। इस नाते राहुल गांधी ने कोई नई परंपरा स्थापित नहीं की है। राहुल गांधी 2019 में उत्तर प्रदेश की अपनी परंपरागत अमेठी और केरल की वायनाड दो सीटों से चुनाव लड़े थे। वायनाड से वे जीत गए थे पर अमेठी में भाजपा की स्मृति ईरानी ने उन्हें हराकर अपनी 2014 की पराजय का हिसाब बराबर कर लिया था।
राहुल गांधी की मां सोनिया गांधी ने इस बार रायबरेली से लोकसभा चुनाव न लड़ने का फैसला छह महीने पहले ही कर लिया था और वे राजस्थान से राज्यसभा के लिए निर्वाचित हो गई थी। अमेठी और रायबरेली दोनों सीटों से चूंकि नेहरू-गांधी परिवार का भावनात्मक लगाव रहा है, इस नाते उम्मीद की जा रही थी कि राहुल खुद अमेठी से ही लडेंगे और रायबरेली से कांग्रेस प्रियंका गांधी को उतार सकती है। पर ऐसा हुआ नहीं।
राहुल ने अपनी मां की रायबरेली सीट से नामांकन कर दिया और अमेठी में अपने पुराने विश्वासपात्र केएल शर्मा को उम्मीदवार बना दिया। चूंकि एक उम्मीदवार अधिकतम दो सीट से ही चुनाव लड़ सकता है। लिहाजा रायबरेली पहुंचने के कारण अमेठी में किसी और को उतारना ही पड़ता।
राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी ने भी तीन संसदीय क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व किया था।
वे 1967 और 1971 में तो रायबरेली से जीती थी पर 1977 में हार गई थी। लिहाजा 1980 में वे रायबरेली के साथ आंध्र प्रदेश की मेडक सीट से भी चुनाव लड़ी थी। दोनों जगह जीती थीं और मेडक से उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था। इससे पहले 1978 में वे कर्नाटक की चिकमगलूर सीट से उपचुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंच गई थी।
भाजपा के शिखर पुरुष रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने तो कुल मिलाकर सात लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ा। वे 1957 का पहला चुनाव तो एक साथ तीन सीट लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से लड़े थे। बाद में उन्होंने नई दिल्ली, गांधीनगर और विदिशा से भी लोकसभा चुनाव जीता। हालांकि ग्वालियर में वे 1984 में हार गए थे।
शरद यादव का सियासी सफर तो और भी रोचक रहा। जबलपुर के निवासी शरद 1974 में अपने संसदीय क्षेत्र में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के कद्दावर नेता सेठ गोविंददास के बेटे और कांग्रेस के उम्मीदवार रविमोहन दास को हराकर नायक बन गए थे। अगला चुनाव भी आपातकाल के बाद उन्होंने जबलपुर से ही जीता। लेकिन 1980 में हार के बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश का रुख किया। वे 1989 में बदायूं से जीतकर वीपी सिंह सरकार में मंत्री बने। लेकिन 1991 में हार गए। इसके बाद उन्होंने बिहार की मधेपुरा सीट को अपना संसदीय क्षेत्र बनाया और यहीं से चार बार विजयी हुए।
विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भी 1980 का लोकसभा चुनाव इलाहबाद से जीता था। वे इंदिरा गांधी की सरकार में मंत्री भी बन गए थे। लेकिन कुछ दिन बाद ही हुए विधानसभा के मध्यावधि चुनाव में पार्टी की विजय के बाद इंदिरा गांधी ने उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया था। विधानसभा उपचुनाव उन्होंनें बुंदेलखंड के बांदा जिले की राजपूत बहुल तिंदवारी सीट से लड़ा था। लेकिन वे लंबे समय तक मुख्यमंत्री नहीं रह पाए।
वीपी सिंह की जगह 1984 में राजीव गांधी ने इलाहबाद लोकसभा सीट से अमिताभ बच्चन को चुनाव लड़ाया। वीपी सिंह को उन्होंने राज्यसभा भेज दिया। वीपी सिंह ने राजीव गांधी से मतभेद के चलते मंत्री पद, राज्यसभा सदस्यता और कांग्रेस से 1987 में त्यागपत्र दे दिया। कुछ दिन बाद अमिताभ बच्चन ने भी लोकसभा से त्यागपत्र दे दिया। उपचुनाव हुआ तो विपक्ष के साझा उम्मीदवार की हैसियत से वीपी सिंह जीत गए।
वीपी सिंह ने 1989 में अपनी इलाहबाद सीट से नाता तोड़ फतेहपुर से चुनाव लड़ा और जीतकर प्रधानमंत्री बने। अगला चुनाव भी 1991 में वे इसी सीट से जीते। भाजपा की उमा भारती ने 1989 से 1998 तक के चारों चुनाव मध्यप्रदेश की खजुराहों सीट से जीते थे। लेकिन 1999 में वे भोपाल से चुनाव जीतकर वाजपेयी सरकार में मंत्री बनी।
फिर 2006 में भाजपा से अलग होकर भारतीय जनशक्ति पार्टी बनाई। कुछ साल बाद उसका भाजपा में विलय हुआ तो शिवराज चैहान ने उनके लिए मध्यप्रदेश के दरवाजे बंद कर दिए। लिहाजा 2012 में वे पहले तो झांसी की चरखारी सीट से विधानसभा चुनाव जीती और फिर 2014 में झांसी से लोकसभा चुनाव जीतकर मोदी सरकार में मंत्री रही।
रामविलास पासवान का संसदीय क्षेत्र तो बिहार का हाजीपुर था। पर वे उत्तर प्रदेश में हरिद्वार और बिजनौर की आरक्षित सीटों से उपचुनाव भी लड़े और हारे। लालकृष्ण आडवाणी पहली बार 1989 में नई दिल्ली सीट से लोकसभा पहुंचे थे। वे इस सीट के साथ 1991 का चुनाव गांधीनगर से भी लड़े। फिर नई दिल्ली को सदा के लिए अलविदा कह गांधीनगर को ही अपना लिया। सुषमा स्वराज भी दक्षिणी दिल्ली और विदिशा से लोकसभा सदस्य रही। वे 1999 में कर्नाटक की बेल्लारी सीट से भी सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ी और हारी थी।