प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के धुआंधार प्रचार और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति ने राजस्थान में भाजपा की प्रतिष्ठा को बचा लिया। प्रदेश में चुनाव की शुरुआत में ऐसा लग रहा था कि राजस्थान में भाजपा की बड़ी हार होगी। इस बड़ी हार को पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व अपनी कुशल रणनीति से टालने में सफल रहा। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदनलाल सैनी का भी कहना है कि कुछ कमियां रह गर्इं जिसकी वजह से हम सत्ता से दूर हो गए। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री ने जिस तरीके से प्रदेश में ताबड़तोड़ दौरे किए उससे हम एक बुरी हार से बच गए। इसमें भाजपा को कांग्रेसी बागी नेताओं के चुनाव मैदान में उतरने का भी लाभ मिला। बगावत भाजपा में भी हुई पर नतीजों से साफ हुआ कि कांग्रेस के बागियों के चलते भाजपा को फायदा पहुंचा। प्रदेश में निर्दलीय और छोटे दलों के 26 उम्मीदवार जीते। इनमें से एक दर्जन तो सीधे तौर पर कांग्रेस के ही बागी हैं। इसके अलावा एक दर्जन सीटों पर बागी नहीं जीते, तब भी उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवारों की हार में बड़ी भूमिका निभाई।

कांग्रेस के इस झगड़े को भी प्रचार के दौरान भाजपा के आला नेताओं ने खूब हवा दी और अपनी सीटें बढ़ा लीं। चुनाव से पहले ही जब कांग्रेस की स्थिति बेहतर लग रही थी तो कांग्रेस में टिकट के दावेदारों की कतारें लगने लगी थीं। प्रदेश कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडे का कहना है कि 50 हजार लोगों ने टिकट के लिए आवेदन कर दिया था। इसके चलते टिकट चयन प्रक्रिया मुश्किल रही और जिन्हें टिकट नहीं मिला वे निर्दलीय के रूप में चुनाव मैदान में उतर गए।

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने प्रचार अभियान में बागियों की वजह से बिगड़ रहे समीकरणों को लेकर चिंता भी जताई थी। पायलट ने कार्यकर्ताओं से कहा भी था कि जीत के अति आत्मविश्वास में नहीं रहें और मैदान में जमकर मेहनत करें। उनके आह्वान पर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने एकजुट होकर विधानसभा चुनाव में काम किया जिसका नतीजा सामने है।