देश की सियासत में रविवार का दिन पूरे विपक्ष के लिए कई सीख लेकर आया। चार राज्यों के जो चुनाव नतीजे आए हैं, उन्होंने कई चीजें साफ कर दी हैं। पहली ये कि हिंदी पट्टी राज्यों में अभी भी बीजेपी की लहर है, दूसरी बात ये कि कांग्रेस चाहकर भी उत्तर भारत में अपना विस्तार नहीं कर पा रही है। तीसरी बात ये है कि मोदी का चेहरा अभी भी बाकी सभी दूसरे फैक्टर पर भारी पड़ रहा है। अब ये संकेत तो नतीजों स्पष्ट हुए हैं, लेकिन चुनाव ना लड़ने वाले इंडिया गठबंधन के कई दलों के लिए भी बड़ी सीख छिपी हुई है। ये वो संकेत हैं 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर इन सभी दलों को मिल गए हैं।

OBC कार्ड नहीं चलने वाला, जातिगत जनगणना फिजूल मुद्दा

महिला आरक्षण बिल जब दोनों ही सदनों से पूर्ण बहुमत के साथ पारित हो गया था, उस समय बड़ी पॉलिटिक चाल चलते हुए कांग्रेस ने ओबीसी दांव चला था। तब मांग की गई कि एससी महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण रहना चाहिए। अब इसी मांग को विस्तार देते हुए पूरे देश में जातिगत जनगणना का मुद्दा भी चलने लगा। शायद ही विपक्ष का कोई नेता हो जिसने जातिगत जनगणना को मुद्दा बना बनाया हो। बिहार में तो हाल ही में इसका एक सर्वे भी जारी किया जा चुका है।

लेकिन तीन राज्यों से इस बार जो नतीजे आए हैं, उन्होंने साफ कर दिया जनता जातियों में ना बंटकर मुद्दों वाली राजनीति देखना ज्यादा पसंद करने वाली है। इंडिया गठबंधन जरूर ये सोच रहा था कि उन्होंने 2024 के चुनाव के लिए मास्टर स्ट्रोक मिल गया है। वे ओबीसी कार्ड के जरिए बीजेपी को इस बार परास्त कर देंगे। लेकिन कांग्रेस ने ये एक्सपेरिमेंट करके देख लिया है- राजस्थान से लेकर छत्तीसगढ़ तक पार्टी ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। खुद राहुल गांधी ने एमपी में जातिगत जनगणना का वादा तक कर दिया। लेकिन पीएम मोदी के पास इसका काउंटर पहले से मौजूद था।

उन्होंने जातियों के फेर में ना फंसते हुए अपनी विचारधारा के लिहाज से खुद ही चार जातियां निकाल दीं- किसान शक्ति, महिला शक्ति, युवा शक्ति और गरीब शक्ति। यानी कि पीएम मोदी ने जातियों से ऊपर उठकर लाभर्थी वोटबैंक पर फोकस किया और इसका सीधा फायदा पार्टी को चुनाव में मिल गया।

किसी भी सूरत में मुकाबला मोदी बनाम कौन नहीं करना

नरेंद्र मोदी जब से देश के प्रधानमंत्री बने हैं, उनकी अपनी लोकप्रियता लगातार चरम पर रही है। एक बार के लिए बीजेपी से लोगों को समस्या हो सकती है, लेकिन एक बड़ा वर्ग ऐसा सामने आया है जो पीएम मोदी को पसंद भी करता है और उनके खिलाफ कुछ सुनना बर्दाशत भी नहीं करता। लेकिन विपक्ष कई चुनावी हार के बाद भी ये बात नहीं समझ पाया है। अब कांग्रेस ने तीन राज्यों में सत्ता गंवाकर एक बार फिर पूरे इंडिया गठबंधन को ये सीख दे दी है कि चुनावी मौसम में किसी भी सूरत में मुकाबले को मोदी बनाम कौन नहीं करना है।

इसका कारण ये है कि पीएम मोदी की अपनी लोकप्रियता इतनी ज्यादा है कि जनता को उनके सामने कोई दूसरा विकल्प नहीं मिलता। कहने को इस बार विधानसभा के चुनाव थे, कोई पीएम का भी चयन नहीं होना था। लेकिन बीजेपी ने एक बार फिर तय रणनीति के तहत राजस्थान, एमपी और छत्तीसगढ़ में कोई भी सीएम फेस घोषित नहीं किया। इसके ऊपर जो भी चुनावी पोस्टर लगते हैं, उनमें ज्यादातर में पीएम मोदी की ही तस्वीर को रखा। इस वजह से जनता की नजरों में मुकाबला विपक्ष का पीएम मोदी से हो गया और इस सूरत में बीजेपी फायदा ले गई।

पीएम मोदी का प्रचार करने का तरीका भी इस बार कुछ ऐसा रहा कि जनता की लोकल लीडरशिप पर ज्यादा नजर नहीं गई। राजस्थान से लेकर एमपी तक में पीएम ने हर बार कहा- मोदी की गारंटी। अब जब कोई पीएम इतने विश्वास के साथ अपने दम पर वादे कर देता है, जनता का उस पर असर पड़ता ही है। अब जनता पर अगर इन फैक्टरों का असर पड़ा, बाकी कसर कांग्रेस के नेताओं ने पीएम पर निजी हमले कर पूरी कर दी। उस वजह से भी मुकाबला आसानी से मोदी बनाम ऑल का बन गया और बीजेपी को इसका फायदा हुआ।

काम नहीं आने वाला विक्टिम कार्ड

पिछले कुछ महीनों में और खास तौर पर चुनाव के समय ये देखा गया है कि जब भी किसी जांच एजेंसी द्वारा विपक्षी नेता के खिलाफ कोई एक्शन लिया जाता है, सीधे-सीधे आरोप लगता है कि केंद्र सरकार जांच एंजेसियों का दुरुपयोग कर रही है। विपक्ष की आवाज दबाने के लिए ये सब किया जा रहा है। लेकिन इस मामले में छत्तीसगढ़ के चुनाव ने ये बात साफ कर दी है कि अगर भ्रष्टाचार का कोई आरोप लगा है तो जनता उसे गंभीरता से लेती है। भूपेश बघेल पर सट्टेबाजी को लेकर आरोप लगे, कहा गया कि सट्टे के पैसे से ही कांग्रेस का चुनाव फंड हुआ।

अब कांग्रेस ने किसी भी तरह की सफाई देने से बेहतर विक्टिम कार्ड खेलना समझा। उसे लगा जनता आरोपों से ज्यादा इमोशनल पहलू पर जोर देगी और पार्टी आसानी से इस विवाद से बरी हो जाएगी। लेकिन ना जनता ने माफ किया और ना ही वोट टैली में इसकी कोई झलक दिखी। इसका मतलब साफ है कि जनता हर तरह के भ्रष्टाचार को गंभीरता से ले रही है और विपक्ष जो लगातार सिर्फ जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगा रहा है, उसे जल्द ही इस नेरेटिव से बाहर निकलना पड़ेगा।

एकता रखना जरूरी, एकला चलो से मिलेगी हार

कौन भूल सकता है कि उस समय को जब अखिलेश यादव ने कांग्रेस पर बड़ा आरोप लगाते हुए कह दिया था कि मद्य प्रदेश में पार्टी द्वारा पहले सीट शेयरिंग के लिए कई मीटिंग में बुलाया गया और फिर एक भी सीट पर लड़ने का मौका तक नहीं दिया। कौन भूल सकता है के जेडीयू की उस डिमांड को जहां पर उसने एमपी में कुछ ही सीटों पर टिकट मांगी थी। लेकिन इसे अब कांग्रेस का ओवर कॉन्फिडेंस कहा जाए या कोई रणनीति, उसने किसी भी इंडिया गठबंध के नेता को तवज्जो नहीं दी।

इसी तरह राजस्थान में भी पार्टी ने अपने सहयोगी दलों को ठेंगा दिखाने का काम किया। अब इस एकला चलो नीति का परिणाम ये रहा है कि कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली है। अब पूरे इंडिया को संदेश ये है कि आने वाले हर चुनाव में साथ में ही चुनाव लड़ना होगा, और अगर किसी तरह का गठबंधन नहीं हुआ है तो उतना तालमेल तो बैठाना ही पड़ेगा कि एक नेता दूसरे सहयोगी दल के नेता को निशाने पर ना ले।

अब सीख ये इंडिया गठबंधन को मिल तो रही है, लेकिन कांग्रेस की हार के बाद। असल में एमपी-राजस्थान में देखा गया कि अरविंद केजरीवाल ने काफी प्रचार किया। सीधे-सीधे कांग्रेस को उखाड़ फेंकने की बात कर दी, उस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा दिए। अब केजरीवाल की पार्टी को तो इन चुनावों में कोई फायदा नहीं हुआ, लेकिन ये जरूर रहा कि जनता के मन में सवाल आ गया कि एक ही साथ लोकसभा चुनाव लड़ने वाले इस समय एक दूसरे के पीछे ही क्यों पड़े हैं? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं था, ऐसे में जनता ने अपने वोट से इस धूमिल सियासी चश्मे को साफ करने का काम कर दिया।