Lok Sabha Election 2019: देश में 17वीं लोकसभा का चुनाव लगभग समाप्ति की ओर है। इस बीच उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं क्योंकि पिछले चुनाव में एनडीए ने यहां से 73 सीटों पर जीत दर्ज की थी। पूर्वी उत्तर प्रदेश में कई सीटें हाई प्रोफाइल हैं, जिनमें पीएम मोदी की वाराणसी सीट और सीएम योगी आदित्यनाथ का गढ़ गोरखपुर भी शामिल है। इस बार यूपी में नए किस्म का सियासी समीकरण बना है। लिहाजा, नए चुनाव परिणाम की भी उम्मीद की जा रही है। वहीं भाजपा अपने पुराने रिकॉर्ड को दोहराने की कोशिशों में जुटी है।

इस बीच, मशहूर चुनाव विश्लेषक, वरिष्ठ पत्रकार और एनडीटीवी के संस्थापक प्रणय रॉय ने वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता और दो अन्य लोगों के साथ अपने चैनल के ‘काउंटडाउन’ प्रोग्राम में विश्लेषण किया है कि उत्तर प्रदेश में इस बार तीन तरह के ध्रुवीकरण हैं। पहला ध्रुवीकरण धार्मिक है तो दूसरा जातीय आधारित लेकिन तीसरा धु्रवीकरण पीएम मोदी के नाम पर है। इसमें कुछ लोग या तो मोदी को बहुत पसंद करते हैं और उन्हें मसीहा मानते हैं जबकि दूसरा वर्ग मोदी को नापसंद करता है और सभी समस्याओं की जड़ उन्हें ही मानता है।

बतौर प्रणय रॉय इस बार के चुनाव में भी मोदी लहर नहीं है। उन्होंने बताया कि 2014 के चुनाव में भी मोदी लहर नहीं थी। प्रणय रॉय ने अपने चैनल पर प्रोग्राम पेश करते हुए कहा कि लहर तब होती है, जब किसी की लोकप्रियता चरम पर हो और उसे उनका वोट मिले लेकिन 2014 के चुनावों में मोदी को मात्र 31 फीसदी वोट ही मिले थे। सैफोलॉजिस्ट प्रणय रॉय ने समझाया कि दूसरी स्थिति होती है लैंडस्लाइड…जिसमें किसी भी पार्टी को अधिक संख्या में सीटें मिलती हैं। उन्होंने कहा कि 2014 के लोकसभा और 2017 के यूपी विधान सभा चुनाव के नतीजों के औसत से पता चलता है कि बीजेपी को 41 फीसदी वोट मिले जबकि उन्हें सीटें 85 फीसदी मिलीं।

प्रणय ने बताया कि 85 फीसदी सीटें भाजपा की झोली में जाने की वजह से लोगों में कन्फ्यूजन की स्थिति पैदा हो गई कि यह ‘वेव’ (लहर) था। जबकि असलियत यह है कि यह एलेक्टोरल गेन (चुनावी फायदा) था। उन्होंने कहा कि जब विपक्ष विभाजित होता है, और तब अधिकांश वोट किसी दल को मिलता है, तब वेव होता है। उन्होंने साफ किया कि 2014 और 2017 में कोई मोदी लहर (मोदी की लोकप्रियता) नहीं थी बल्कि मोदी और बीजेपी लैंडस्लाइड था। उन्होंने बताया कि 1977 के चुनावों में यूपी में लहर थी, जब जनता पार्टी को 48 फीसदी वोट मिले थे।